अब उसका MBBS का द्वितीय वर्ष प्रारम्भ हो गया, जो कि डेढ़ वर्ष होता है। इसमें विषय भी ज्यादा थे- फार्मा, माइक्रोबायोलॉजी, फॉरेंसिक मेडिसिन पैथोलॉजी और पीएसएम। इस समय उसके सामने मुख्य दो समस्याएँ थी। एक तो किताबों की और दूसरी खर्चा-पानी के लिए पैसों की। किताबें तो जैसे-तैसे उसने अपने एक सीनियर से जुगाड़ ली थी, अगर वह खरीदता तो एक बुक ही उसे कम से दो ढाई हज़ार से कम की नहीं पड़ती। कहाँ से इतने पैसे आते। अब उसे थोड़ा समझ आने लगा कि किस तरह पढ़ाई करनी है। अब उसे किताबें पढ़ने में बहुत अधिक कठिनाई नहीं होती थी। पढ़ने में उसके दोस्त और टीचर्स उसकी मदद कर लेते थे। उसकी पढ़ाई तो ठीक चलने लगी, लेकिन उसके सामने सबसे विकराल समस्या कॉलेज की लाखों की फीस भरने की थी । पहले साल तो घरवालों से अपना सबकुछ दाँव पर लगाकर एक जुआ खेल लिया था। अब उनसे एक पैसे की मदद की उम्मीद करना बेमानी थी। फिर वही 6 लाख रुपए पर आकर घड़ी की सुई अटक गई। उसने सुना था कि बैंक लोन देते हैं तो उसने कई बैंक के चक्कर काटे लेकिन सबने उसे एक ही शर्त पर लोन देने की बात की कि वह अपनी प्रॉपर्टी के कागजात उन्हें लाकर दें। अब उसके पास न तो जमीन थी, न मकान था, न दुकान था। माँ-बाप मेहनत मजदूरी करके जैसे-तैसे एक झोपड़ी में रहकर अपना गुजर बसर कर रहे थे, तो प्रॉपर्टी के कागजात कहाँ से आ जाते? लेकिन कॉलेज की फीस तो जमा करने ही थी, वे उस पर जल्दी फीस भरने का दबाव बना रहे थे। उसने फिर भोपाल और होशंगाबाद दोनों जगह के करीब 3 माह तक हर बैंक खंगाल डाला। इस दौरान परीक्षा भी नजदीक आ रही थी। उसे परेशान देख उसके कॉलेज के मित्रों ने उसे कॉलेज के छात्रों से कंट्रीब्यूशन के माध्यम से पैसे इकठ्ठा करने का प्लान बनाया तो वह हमेशा से उसके साथ देने वाले 'दादू सर' के घर गया। जहाँ दादू सर ने अपनी पत्नी के साथ मिलकर उसकी व्यथा-कथा का उल्लेख कर एक मर्मस्पर्शी अपील का नोटिस बनाकर उसे कॉलेज के नोटिस बोर्ड पर चस्पा करने को कहा और साथ ही वह नोटिस उन्होंने अपनी पत्नी के वेबसाइट kavitarawat.com और फेसबुक पर पोस्ट करवा कर उसकी मदद के लिए अपील की। कॉलेज में जब वह मर्मस्पर्शी अपील छात्रों ने नोटिस बोर्ड पर पढ़ी तो देखते-देखते कॉलेज के कई छात्रों, टीचर्स और स्टाफ ने जिससे जो बना दिया और इस तरह ढाई लाख रुपए जमा हो गए। कुछ पैसे दादू सर ने अपनी ओर से और कुछ अपने परिचित लोगों के और कुछ उसके दोस्त अमित और गोविन्द ने दिए तो लगभग 50-55 हज़ार के करीब इकठ्ठा हुए। लेकिन अभी भी उसे 3 लाख जरुरत थी। रकम बड़ी थी, वह बड़ा परेशान था। कॉलेज में उसके बारे में बड़ी चर्चा हुई तो उसके एक सीनियर सार्थक लुनावत ने उसे अपने पास बुलाया और उसकी कहानी सुनी और उसे अपने घर ले गया। जहाँ उसके पापा और चाचा शैलेश लुनावत और ब्रजेश लुनावत ने उसे 3 लाख रुपए की व्यवस्था कराई तो उसके सिर से फीस का बोझ उतर गया।
अब वह पूरे मन से पढ़ाई में जुट गया। दूसरे वर्ष की परीक्षा हुई और वह पास हो गया तो उसके सभी चाहने वालों को ख़ुशी हुई तो वह भी बहुत खुश था।
अब उसने तीसरे वर्ष में प्रवेश किया। जहाँ उसे चार विषय पढ़ने थे- ईएनटी, पीएसएम, ओफ्थल्मोलॉजी। लेकिन पढ़ने से पहले उसे फिर फीस की व्यवस्था करनी थी। यह समय उसके लिए बहुत भारी था। उसके सामने यह एक बड़ी जटिल समस्या थी कि उसे लोन कोई दे नहीं रहा था, कंट्रीब्यूशन भी कर चुका था और अपने जान-पहचान वालों से भी वह कुछ न कुछ ले चुका था। अब ऐसे में 6 लाख की रकम कौन देगा। एक साल की इतनी फीस देखकर तो अच्छे खासे घर-परिवार और पैसे वाले भी अपने बच्चों को प्रायवेट से MBBS नहीं करा पाते हैं, फिर यह कौन खेत की मूली थी।
अब वह क्या करे, कहाँ जाए। उसे कुछ सूझ नहीं रहा था। फिर अचानक उसे अपने संकटमोचक 'दादू सर' की याद आई तो वह दौड़ा-दौड़ा उनके पास आया और अपनी समस्या उन्हें बताई। इतनी बड़ी रकम देना उनके बस की भी बात नहीं थी, इसलिए उन्होंने उसे आश्वासन दिया कि वे कोई न कोई रास्ता ढूंढ लेंगे वह अपनी पढाई पर ध्यान दें। उन्होंने उसके नाम से आवेदन बनाये और उसे साथ लेकर कई MLA, MP और मंत्रियों के पास ले जाकर मदद की गुहार लगाई, लेकिन एक ने भी मदद तो दूर आश्वासन तक नहीं दिया। वह आवेदन लेकर कई बार सीएम से मिलने सीएम हाउस गया, लेकिन वहां उसे उसकी गुहार सुने बिना बाहर से ही भगा दिया जाता। बहुत से नेताओं ने उसे बताया कि वह अपने क्षेत्र के एमएलए से मिले, वही उसकी मदद कर सकता है, तो वह दादू सर के साथ होशंगाबाद गया और वहां अपने क्षेत्र सुहागपुर के एमएलए से मिला। MLA साहब उसे होशंगाबाद के कलेक्टर के पास ले गया और उसे सम्बल योजना के माध्यम से उसकी फीस जमा करने को कहकर अपने बंगले चला गया। कलेक्टर ने उससे आवेदन लिया और उसे आश्वासन दिया कि उसकी फीस सम्बल योजना के तहत एक हफ्ते के अंदर कॉलेज में जमा करवा ली जाएगी। वह बेफिक्र होकर अपनी पढाई करें। वह वहां से खुश होकर लौटा लेकिन कुछ दिन बाद जब कॉलेज में सम्बल योजना के तहत फीस जमा नहीं हुई तो कॉलेज वालों ने उस पर फीस भरने के लिए दबाव बनाया तो उसने दादू सर को बताया। दादू सर ने होशंगाबाद कलेक्टर से लेकर सीएम हाउस तक संपर्क कर पता लगाया, तो ज्ञात हुआ कि इस योजना का लाभ लेने के लिए सतपुड़ा भवन के चिकित्सा शिक्षा विभाग जाना होगा। दादू सर उसे लेकर सतपुड़ा भवन ले गए और वे वहां के अधिकारियों से मिले, लेकिन उन्होंने बताया कि इसके लिए उन्हें पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन करना होगा और उस रजिस्ट्रेशन के लिए उन्हें तकनीकी शिक्षा विभाग से सम्पर्क करना होगा। वे दोनों अब तकनीकी शिक्षा विभाग गए तो वहां उन्होंने बताया कि वह सम्बल योजना के पोर्टल पर रजिस्ट्रशन करा ले, उन्हें इसका लाभ मिल जाएगा। लेकिन जब पोर्टल खोलकर देखा तो वहां केवल नए छात्रों के लिए सुविधा थी और सेकंड या थर्ड में पढ़ने वालों के लिए कोई विकल्प नहीं दे रखा था। ऐसे में रजिस्ट्रेशन कैसे करें इसके लिए जब तकनीकी शिक्षा को बताया तो उन्होंने साफ़ इंकार कर दिया कि यह उनका बनाया पोर्टल नहीं है एनआईसी ने बनाया है, जिसमें वे किसी भी तरह की मदद नहीं कर सकते हैं। थक हार कर जब वे वहां से लौट रहे थे तो वहीँ पिछड़ा वर्ग का ऑफिस था। दादू सर उसे वहां ले गए जहाँ उन्हें एक अधिकारी ने बताया कि उनकी एक पोस्ट मैट्रिक स्कालरशिप योजना के तहत उसे योजना का लाभ मिल सकता है। दादू सर ने वहीँ बैठकर उसका एक आवदेन बनाया और उससे हस्ताक्षर कर जमा कर आ गए।
शेष अगले अंक में .............
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