ब्लॉग के माध्यम से मेरा प्रयास है कि मैं अपनी कविता, कहानी, गीत, गजल, लेख, यात्रा संस्मरण और संस्मरण द्वारा अपने विचारों व भावनाओं को अपने पारिवारिक और सामाजिक दायित्व निर्वहन के साथ-साथ सरलतम अभिव्यक्ति के माध्यम से लिपिबद्ध करते हुए अधिकाधिक जनमानस के निकट पहुँच सकूँ। इसके लिए आपके सुझाव, आलोचना, समालोचना आदि का हार्दिक स्वागत है।
आज सुबह-सुबह दरवाजे के घंटी बजी तो देखा कि हमारे पड़ोस की बिल्डिंग में रहने वाली एक महिला खड़ी थी। उसे देखकर मैंने उसे बैठने को कहा तो वे कहने लगी कि वह नहा-धोकर सीधे हमारे घर आयी है, फुर्सत में कभी बैठेगी, अभी उसे पूजा करनी है और हरियाली अमावस्या होने के कारण उसे घर में लगाने लिए एक तुलसी का पौधा चाहिए, जो वह मांगने आयी है। उसकी बातें सुनकर मुझे आश्चर्य के साथ में खुशी हुई कि चलिए इसी बहाने वह कम से कम पर्यावरण के प्रति जागरूक हुई हैं। क्योँकि मैंने उन्हें कभी कोई पेड़-पौधा लगाते कभी नहीं देखा, उसे तो हमेशा मैं हमारे लगाए पेड़-पौधों में लगे फूल-पत्ती तोड़ते जरूर देखते आयी हूँ। बावजूद इसके वह हमेशा हर किसी से हमारे हरे-भरे बगीचे की लोगों से बुराई करती कि हमने जंगल बना के रखा है, जिससे उन्हें सांप-बिच्छू के साथ ही मच्छरों का डराते रहते है, जिससे उन्हें बड़ी शिकायत है। इस बारे में मैंने कई बार उन्हें समझाने की कोशिश की कि उन्हें डरने की जरुरत है, क्योंकि वे बिना उन्हें छेड़े कुछ नहीं करते, उल्टा वे तो हम इंसानों से ज्यादा डरते और बचते फिरते रहते हैं। वे तो हमारे पर्यावरण संरक्षण के लिए जरुरी भी हैं, लेकिन वह कई लोगों की तरह ही मेरी बात समझ ही नहीं पाई। खैर मैंने उसे अपने बगीचे से एक तुलसी का पौधा तो दिया ही साथ में एक आवंला का पौधा भी यह कहकर दिया कि उसे भी वे किसी अच्छी जगह देखकर जरूर लगाना। वे ख़ुश होकर पौधे लेकर गई तो मेरे मन को सुकून मिला कि हरियाली अमावस्या के दिन पौधे दान का यह काम बहुत अच्छा रहा।
पड़ोसन की जाने के बाद मैंने भी जल्दी से स्नान किया और एक्टिवा में तुलसी, आँवला और एक नींबू का पौधा लेकर भगवान शिव की पूजा के लिए जलेश्वर मंदिर पहुंची। जहाँ पहले भगवान् शिव और माता पार्वती की विधि-विधान से श्रृंगार किया। शिवलिंग का पंचामृत से अभिषेक करते हुए बेलपत्र,धतूरा, सफ़ेद फूल और फल अर्पित किये। पूजा के बाद वहीँ मंदिर के पिछले भाग में तीनों पौधों को लगाया, क्योँकि वहां मैंने अपनी पति के साथ मंदिर के चारों ओर खाली बंजर पड़ी जमीन पर बगीचा बनाया है, जहाँ सैकड़ों पेड़ लगाकर हम उनकी देखरेख करते हैं। इन पेड़-पौधों को पलते-बढ़ते देख मन को बड़ा सुकून मिलता है।
मान्यता है कि हरियाली अमावस्या का दिन पितरों को समर्पित होता है, इसलिए इस दिन उनका तर्पण और पिंडदान करने से उनका आशीष मिलता है, जिससे घर में सुख-समृद्धि और शांति का आगमन होता है। हरियाली अमावस्या के दिन विशेष रूप से भगवान शिव और माँ पार्वती की पूजा की जाती है। इस दिन किसान अपने कृषि यंत्रों की पूजा करते हैं तो लोग पीपल, बरगद, केला, नीबूं, तुलसी,आंवला आदि पेड़-पौधे लगाकर इसके धार्मिक महत्व को बल देते हैं।
हरियाली अमावस्या के बारे में आपका क्या कहना है जरूर बताएं।
मैं शैल-शिला, नदिका, पुण्यस्थल, देवभूमि उत्तराखंड की संतति, प्रकृति की धरोहर ताल-तलैयों, शैल-शिखरों की सुरम्य नगरी भोपाल मध्यप्रदेश में निवासरत हूँ। मैंने बरकतउल्ला विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त की है। वर्तमान में स्कूल शिक्षा विभाग, भोपाल में कर्मरत हूँ। भोपाल गैस त्रासदी की मार झेलने वाले हजारों में से एक हूँ। ऐसी विषम परिस्थितियों में मेरे अंदर उमड़ी संवेदना से लेखन की शुरुआत हुई, शायद इसीलिए मैं आज आम आदमी के दुःख-दर्द, ख़ुशी-गम को अपने करीब ही पाती हूँ, जैसे वे मेरे अपने ही हैं। ब्लॉग मेरे लिए एक ऐसा सामाजिक मंच है जहाँ मैं अपने आपको एक विश्वव्यापी परिवार के सदस्य के रूप में देख पा रही हूँ, जिस पर अपने मन/दिल में उमड़ते-घुमड़ते खट्टे-मीठे, अनुभवों व विचारों को बांट पाने में समर्थ हो पा रही हूँ।