राष्ट्र का स्वाभिमान: सैनिक - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, geet, bhajan, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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मंगलवार, 23 दिसंबर 2025

राष्ट्र का स्वाभिमान: सैनिक


शिखर हिमालय की गोदी हो, या तप्त मरुस्थल की धारा,
जिसके दम पर सुरक्षित रहता, देश का कोना-कोना सारा।
तन पर वर्दी, मन में भारत, आँखों में अंगारे हैं,
सीना ताने सरहद पर खड़ा, हम जिसके सहारे हैं।

सेवा परमो धर्म है उसका, जीवन का मूल मंत्र है,
उसकी सजगता में ही फलता, सुखद हमारा गणतंत्र है।
जय-जय सैनिक, जय-जय वीर, तिरंगे का अभिमान,
भारत माता की शान वही, सैनिक है स्वाभिमान।

न जाति की कोई दीवार, न पंथों का कोई भेद,
तिरंगे की शीतल छाया में, मिलता उसे मोद-स्वेद।
सियाचीन की हिमाच्छादित रातें, कच्छ की प्रखर दोपहरी,
कर्तव्य की वेदी पर अर्पित, उसकी हर सांस सुनहरी,।

घर-आँगन के सुख त्यागे, रिश्तों का मोह बिसराया,
शत्रु हेतु जो वज्र बना, अपनों के लिए शीतल साया।
मृत्यु का आलिंगन कर जो, माँ भारती की जय गाता,
अमर शहीदों की गाथा में, पावन नाम लिखा जाता।

वह केवल रक्षक नहीं, वह भारत का गौरव-गान है,
कोटि-कोटि भारतीय हृदयों का, वह जीवित प्रमाण है।
त्याग, पराक्रम, अनुशासन ही, सैनिक का सत्य स्वरूप है,
कारगिल से लेकर रणभूमि तक, वह माँ का अमर सपूत है।

गूँजे धरा पर 'जय जवान', हर हृदय में वह स्वर रहे,
बलिदानों की पावन गाथा, युग-युगांतर अमर रहे।
जय-जय सैनिक, जय-जय वीर, तिरंगे का अभिमान,
भारत माता की शान वही, सैनिक है स्वाभिमान।
.. कविता रावत 

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