औषधि रूपी अमृत बनकर, जीवन को सुख पाऊँ।
वन तुलसी ब्रह्म तुलसी, कठेरक नाम तुम्हारा,
रामा-श्यामा से बढ़कर, औषधि रूप तुम्हारा।
बारह फीट की ऊँचाई से, आँगन को सजाया,
हर मौसम में हरी भरी, अमृत रस बरसाया।
चरक कहे विष हरनी, भाव प्रकाश बताए,
कफ-वात-पित्त नाशिनी, रोग सभी मिटाए।
जहाँ रहे तुलसी का पौधा, देव सभी विराजें,
ब्रह्मा विष्णु महेश वहाँ, भक्त सुख से साजें।
तुलसी माता वंदन करूँ, हरि चरणों में गाऊँ,
औषधि रूपी अमृत बनकर, जीवन को सुख पाऊँ।
... कविता रावत

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