हमारे लिए यह गर्व और आनंद का क्षण है कि हमने पहली बार अपने भोपाल स्थित बगीचे में उत्तराखंड का बहुमूल्य औषधीय पौधा किंगोड़ा (स्थानीय बोली में किल्मोड़ा), जिसे वैज्ञानिक भाषा में दारुहल्दी (Berberis aristata) कहा जाता है, सफलतापूर्वक उगाया है। वर्षों से इस पौधे को अपने बगीचे में देखने की हमारी इच्छा थी, जो अब जाकर पूरी हो पाई है। इसकी छोटी-छोटी पत्तियाँ और खट्टे-मीठे हरे, नीले, पीले और लाल रंग के फल अत्यंत आकर्षक लगते हैं।
दारुहल्दी एक कांटेदार झाड़ीनुमा पौधा है, जिसकी ऊँचाई लगभग 3–4 मीटर तक होती है। यह उत्तराखंड की पहाड़ियों में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है और औषधीय गुणों से भरपूर है।
इस पौधे में बर्बेरिन (Berberine) नामक रसायन पाया जाता है, जिसका उपयोग कई फार्मा कंपनियाँ करती हैं। इसके फल, बीज, जड़ और तना सभी औषधीय हैं। पारंपरिक मान्यता के अनुसार यह:
- आँखों की रोशनी बढ़ाने में सहायक
- डायबिटीज नियंत्रित करने वाला
- पाचन तंत्र को मजबूत करने वाला
- त्वचा रोगों में लाभकारी
- ज्वर और सूजन कम करने वाला
- एंटीबैक्टीरियल और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों से युक्त है
किंगोड़ा केवल औषधि ही नहीं, बल्कि प्रकृति सेवा और पारंपरिक चिकित्सा का प्रतीक भी है।
- गढ़वाली लोककथाओं और परंपराओं में इसका उल्लेख मिलता है।
- पहाड़ी समुदाय इसे खाद्य फल और औषधि दोनों रूपों में उपयोग करते हैं।
- खेतों की बाड़ के लिए भी इसका प्रयोग होता है।
आज यह पौधा अत्यधिक दोहन और जानकारी के अभाव में धीरे-धीरे विलुप्ति की ओर बढ़ रहा है। वैज्ञानिक और पर्यावरणविद इसके संरक्षण और उत्पादन पर जोर दे रहे हैं। यदि इसे संरक्षित किया जाए तो आने वाली पीढ़ियाँ भी इसके औषधीय और सामाजिक लाभ उठा सकेंगी।
भोपाल में हमने अपने बगीचे से पहली बार इस बहुमूल्य औषधीय पौधे किंगोड़ा को उगाकर एक नई शुरुआत की है, जो न केवल व्यक्तिगत संतोष देती है बल्कि समाज को भी प्रेरित करती है। यह पौधा उत्तराखंड की प्राकृतिक धरोहर है, जो स्वास्थ्य लाभ और सांस्कृतिक महत्व दोनों में अहम भूमिका निभाता है। इसके संरक्षण और प्रसार की आवश्यकता है ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इसके औषधीय और सामाजिक लाभ उठा सकें।
... कविता रावत

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