कुछ ऐसा हो नूतनवर्षाभिनंदनहर घर आँगन खुशियाँ छाएँ, झूमे सारा आँगन,
कुछ ऐसा हो नूतनवर्षाभिनंदन।
न रहे बैर, न रहे द्वेष, टूटे जात की बेड़ी,
नफरत वाली गिरें दीवारें, ऊँची हो या टेढ़ी।
प्रेम की गंगा बहे जगत में, महके सारा जीवन
कुछ ऐसा हो नूतनवर्षाभिनंदन...
छोड़ें स्वार्थ और संकीर्णता, श्रेष्ठ मार्ग अपनाएँ,
मिटे बुराई इस दुनिया से, सद्भाव के गीत सुनाएँ।
मधुर गान से गूँज उठे, ये धरती और गगन,
कुछ ऐसा हो नूतनवर्षाभिनंदन...
सदाचरण का दीप जलाएँ, मिटे घमंड का साया,
धन-बल और ये बुद्धि-बल, सब है आनी-जानी माया।
शालीनता की जोत जले, और हटे अनैतिक तम-मन,
कुछ ऐसा हो नूतनवर्षाभिनंदन...
मरुथल में संवेदना फूटे, मन में हो उदारता,
त्याग और सहयोग बढे, और फैले प्रेम सरसता।
विरोध-विग्रह दूर भगाएँ, सुखी हो जन-जन,
कुछ ऐसा हो नूतनवर्षाभिनंदन...
बीज गले तो वृक्ष बने, परमार्थ से सृजन जगाएँ,
दुःख हो या सुख, समभाव से सबको गले लगाएँ।
मंगल गान हो घर-घर में, पावन होवे मन,
कुछ ऐसा हो नूतनवर्षाभिनंदन...
हो... कुछ ऐसा हो नूतनवर्षाभिनंदन,
हर घर आँगन में रहे खुशहाली,
कुछ ऐसा हो नूतनवर्षाभिनंदन।
... कविता रावत
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