पेड़-पौधे प्रकृति की आत्मा और प्राकृतिक सुंदरता के घर होते हैं - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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सोमवार, 5 जून 2023

पेड़-पौधे प्रकृति की आत्मा और प्राकृतिक सुंदरता के घर होते हैं

हमारा घर चार मंजिला इमारत के भूतल पर स्थित है। प्रायः भूतल पर स्थित सरकारी मकानों की स्थिति ऊपरी मंजिलों में रहने वालों के जब-तब घर भर का कूड़ा-करकट फेंकते रहने की आदत के चलते किसी कूड़ेदान से कम नहीं रहती है, फिर भी एक अच्छी बात यह रहती है कि यहां थोड़ी-बहुत मेहनत मशक्कत कर पेड़-पौधे लगाने के लिए जगह निकल आती है, जिससे बागवानी का शौक और पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने का काम एक साथ हो जाता है। बचपन में जब भी बरसात का मौसम आता तो हम बच्चे खेल-खेल में इधर-उधर उग आये छोटे-छोटे पौधे लाकर अपने घर के आस-पास रोपकर खुश हो लेते थे। तब हमें पता नहीं था कि पेड़-पौधे पर्यावरण के लिए कितना महत्व रखते हैं, किन्तु आज जब महानगरों के विकास के नाम पर पेड़-पौधों  की अंधाधुंध कटाई से पर्यावरण संकट गहराया है तो यह बात अच्छे से समझ आयी है कि पेड़-पौधें होंगे तो हम सुरक्षित और स्वस्थ रह सकेंगे। बचपन से प्रकृति के साथ मेरा जो लगाव रहा है वह आज भी वैसा ही है। मैं आज न केवल अपने घर के आस-पास, बल्कि दूसरी जगह भी पेड़-पौधे लगाने और दूसरे लोगों को ऐसा करने के लिए प्रेरित करने में पीछे नहीं रहती हूँ। यह मेरा प्रकृति से जुड़ाव और पर्यावरण को बचाने का परिणाम है कि आज हमारा घर-आंगन ग्रीनलैंड बना हुआ है। एक तरफ मेरे घर की सीढ़ियों पर रखे गमलों में सदाबहार, गुलाब, सेवंती, गेंदा, गुलाब, मोगरा आदि की खुशबू फैली है तो दूसरी तरफ हमने घर के सामने जिस बंजर जमीन में बाड़ी लगाकर हमने आम, अमरूद, पपीता, आँवला, मौसम्बी,  मुनगा, नीबू, नीम, पारिजात इत्यादि पेड़ लगाये हैं, वह वर्षा की अमृत बूंदे पड़ते ही खिलखिला उठे हैं। इसके साथ ही बाड़ी में गिलोय के साथ-साथ लौकी, कद्दू, ककड़ी, गिलकी, सेम, करेले आदि की बेलों से बहार छायी हुई है, जिसे देख मन खुशी से झूम उठता है। इसके अलावा हम घर से थोड़ी दूर स्थित श्यामला हिल्स के पहाड़ी पर बने भगवान शंकर के मंदिर “जलेश्वर मंदिर“ में भी पेड़-पौधे लगाकर निरंतर उनकी देख-रेख करते हैं। मुझसे प्रेरित होकर कई लोग भी पेड़-पौधे लगाकर उनकी स्वयं रेखरेख का जिम्मा उठाना सीख गए हैं, यह  देख मुझे अपार प्रसन्नता होती है। 
आज सोचती हूँ पेड़-पौधों के प्रति प्रेम-भावना तो हमारे देश में बहुत प्राचीन काल से है। हम तो पेड-पौधों को लकड़ी की साधारण ठूंठ ही नहीं, बल्कि उन्हें देवता मानते आए हैं। भगवान शंकर का निवास मानकर हम वट की पूजा तो आमलकी एकादशी को आंवला की पूजा करते हैं। पीपल और तुलसी की पूजा तो प्रतिदिन होती है। फिर आखिर क्यों हमने लालच में ईश्वरीय सृष्टि की अलौकिक, अद्भुत, असीम एवं विलक्षण कलास्वरूप प्रकृति-सौंदर्य के कोश को लूटने के लिए उससे शत्रुता मोल लेकर उसके हरे-भरे खेत नष्ट किए, वन-उपवन काटे, हरियाली उजाडी, पहाड़ों को तोड़ा और नदियों को मरोड़ने का दुस्साहस किया? क्यों उसके हरे-भरे खेतों के स्थान पर बड़ी-बड़ी इमारतें तानकर, अमूल्य-बहुमूल्य पदार्थों के कोश वनों के स्थान पर बडे-बड़े औद्योगिक संस्थान खड़े करके सुगंधित वायुमंडल को दूषित कर और विषैली गैसों से पावन जल को अपवित्र कर विकसित होने का दंभ भर रहे हैं? हम क्यों भूल रहे हैं कि पेड़-पौधे तो प्राकृतिक सुंदरता के घर हैं, हरियाली का स्रोत हैं, स्वास्थ्य वृद्धि की बूटी हैं, वर्षा के निमंत्रणदाता हैं, प्रकृति के रक्षक हैं, प्रदूषण के नाशक हैं, प्राणिमात्र के पोषक हैं। वे अपने पत्तों, फल-फूल, छाया, छाल, मूल, वल्कल, काष्ठ, गंध, दूध, भस्म, गुठली और कोमल अंकुर से प्राणि-मात्र को लाभ पहुंचाते हैं। बावजूद इसके आज यह गंभीर चिंतन का विषय बना है कि-  
“बरगद, पीपल, नीम को, काट ले गये लोग।
हवा भी जहरी हुई, फैला जहरी रोग।।“ 

पेड़-पौधे प्रकृति की आत्मा और प्राकृतिक सुंदरता के घर होते  हैं। प्रकृति इस भौतिक जगत् की उत्पत्ति का मूल कारण है तो मनुष्य को इसका एक महत्वपूर्ण प्राणी माना जाता है। प्रकृति माँ रूप में ऑक्सीजन रूपी आहार प्रदान कर पर्यावरण को स्वस्थ रखती है। विषैली गैसों तथा कार्बनडाइआक्साइड का भक्षण कर पर्यावरण को प्रदूषण से बचाती है। पेड़-पौधों की अंधाधुंध तथा बेरहमी से हो रही कटाई से पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है, जिससे तापमान बढ़ने से हिमखंड पिघलने लगे हैं, बाढ़ की स्थिति निर्मित हो रही है। पृथ्वी की ऊर्जा शक्ति बढ़ाने के चक्कर में उपज की पौष्टिक शक्ति क्षीण हो रही है। अब न अनाज में ताकत न फलों में पहले जैसा स्वाद मिल पा रहा है। खनिज पदार्थों की अत्यधिक खुदाई ने उसके कोष को खाली होने की नौबत तक पहुंचा दिया है।            
        विष्णु-धर्म-सूत्र के अनुसार, ‘एक व्यक्ति द्वारा पालित-पोषित वृक्ष एक पुत्र के समान या उससे भी कहीं अधिक महत्व रखता है क्योंकि संतान तो पथभ्रष्ट भी हो सकती है, लेकिन वृक्ष पथभ्रष्ट नहीं होते। वृक्ष यदि फलदार है तो वह अवश्य फल देगा और यदि नहीं है तो भी छाया और ऑक्सीजन के साथ ही बूटी, पत्ते और लकड़ी तो अवश्य देती ही है। मनुष्य और प्रकृति का संतुलन बना रहे, इसके लिए आज प्रत्येक देश के हर एक नागरिक को अपने आसपास के क्षेत्र में पेड़-पौधे लगाने की आवश्यकता है, ताकि शुद्ध वायु मिलने से आयु बढ़े। जब धरती पर पेड़-पौधे लगेंगे और हरियाली छायेगी तो पर्यावरण-संकट के बादल स्वतः ही छंट जायेंगे और मनुष्य स्वस्थ जीवन जी सकेगा। 
इसी उद्देश्य से आज हम आपको हमारे घर से थोड़ी दूर स्थित #श्यामला हिल्स की पहाड़ी पर बने भगवान शंकर के मंदिर “जलेश्वर मंदिर“ में हमारे द्वारा लगभग 200,-250 जिसमें #फलदार पेड़ों में #आम #अमरूद #जामुन #केला #बादाम #नींबू #नारियल #कटहल #सीताफल #आंवला #अनार #शहतूत #बेर तो #छायादार पेड़ों में #बरगद #पीपल #नीम #गूलर #अशोक और फूलों में #चांदनी #गुड़हल #कनेर #चंपा #गेंदा तो #पूजा और औषधि गुण से भरपूर पौधों में #तुलसी #बेलपत्र #शम्मी #हरसिंगार या #पारिजात एवं अन्य जगली पेड़-पौधों में #जंगल जलेबी #चंदन#,मेहंदी आदि के पेड़ पौधे लगाए हैं, जो आज जंगल जैसा नजर आता है। हमारे इस प्रकृति सेवा से #प्रेरित होकर कई लोग भी पेड़-पौधे लगाकर उनकी स्वयं रेखरेख का जिम्मा उठाना सीख गए हैं, यह  देख हमें अपार प्रसन्नता होती है।  इस प्रेरक प्रस्तुति देखने हेतु हमारे नीचे दिए यूट्यूब चैनल लिंक को क्लिक करें और उसे Like Share और Subscribe करना न भूलें -