अब आने वाला युग महिलाओं के नाम - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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सोमवार, 8 मार्च 2021

अब आने वाला युग महिलाओं के नाम

मुझे याद है जब हम बहुत छोटे थे तो हमारे घर- परिवार की तरह ही गांव से कई लोग रोजी-रोटी की खोज में शहर आकर धीरे-धीरे बसते चलते गए। शहर आकर किसी के लिए भी घर बसाना, चलाना आसान काम नहीं रहता है। घर-परिवार चलाने के लिए पैसों की आवश्यकता होती है। उसके बिना न रहने का ठिकाना, न पेट भरना और नहीं तन ढ़कना संभव होता है। तब पैसा कमाना पुरुष का काम और घर चलाना नारी का दायित्व समझा जाता था। पैसे पर पुरुष अपना अधिकार समझता, अगर नारी ने उस पर अपना अधिकार समझा, तो घर में लड़ाई-झगड़े और उत्पीड़न की स्थिति निर्मित होकर घर की सुख-शांति को फुर्र से उड़ते देर नहीं लगती।
           जहाँ कहीं भी स्त्री जीवन की समस्त सुख-सुविधाओं के लिए पुरुष पर आश्रित रही, वहीं उस पर अत्याचार, अनाचार बढ़ा। उसे बात-बात में झिड़की, फटकार सुनने को मिली। उसे आंखे दिखाई गई। मारा-पीटा गया। मानसिक व शारीरिक यातनाएं दी गई। लेकिन स्त्री की सहनशक्ति तो देखिए वह इतना होने के बाद भी- "एक धरम एक व्रत नेमा, करम, वचन, मन पति पद प्रेमा" का आदर्श प्रस्तुत करते हुए सब कुछ चुपचाप सहती रही। कारण स्पष्ट था, वह जानती थी कि उसने यदि घर की लक्ष्मण रेखा लांघने की कोशिश की तो, उस पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ेगा। क्योंकि इसके मूल में गोल-गोल पैसा था। 
          यद्यपि पुरुष ने नारी को प्रसन्न रखने के लिए उसे अनेक विश्लेषणों से अलंकृत किया। संतति की जन्मदात्री होने के कारण ‘जननी’, धर्म कार्यों में उसकी सहभागिता देकर ‘सहधर्मिणी’, गृह व्यवस्थापिका बनाकर ‘गृह लक्ष्मी‘ पद दिया, तो “यत्र नार्यस्तु पूज्यते, रमन्ते तत्र देवता“ और “तुम विश्व की पालनी शक्ति धारिता हो, शक्तिमय माधुरी के रूप में“ कहकर सम्मान दिया, किन्तु धन के क्षेत्र में उसे परतन्त्र ही रखा। धन-सम्पदा की चाबी देकर भी उसे तिजोरी को हाथ न लगाने की चेतावनी दी। कारण, पुरुष भयभीत रहता कि यदि उसने हाथ लगाया तो वह सच्चे अर्थों में गृह लक्ष्मी बन बैठेगी और वह लक्ष्मी जी के वाहन  उल्लू की तरह उल्लू बनकर बस देखता रह जायेगा।
            आज परिस्थितयां  बदली हैं, प्रतिदिन बढ़ती मंहगाई ने घर-परिवार के बजट को फेल कर दिया है और एकाकी पुरुष आय से घर चलाने में असमर्थता उत्पन्न कर दी है।  नारी भी आज घर-परिवार चलाने में समान रूप से अपनी भूमिका निभा रही है। अब नारी के लिए नौकरी या व्यवसाय न फैशन है, न अर्थ स्वातन्त्रय की ललक, अपितु यह जीवन जीने अर्थात् जीवकोपार्जन की अनिवार्यता बन गया है। अब ऐसे में कैसे उस नारी का एक दिन हो सकता है, जिसे मानवता की धुरी, मानवीय मूल्यों की संवाहक और मानवता की गरिमा माना गया है। यदि धरती का पुण्य उसकी सौन्दर्यता से व्यक्त होता है तो सृष्टि का पुण्य नारी में है। तभी तो प्रसाद जी कहते हैं- “नारी! तुम केवल श्रद्धा हो। विश्वास रजत नग पग तल में, पीयूष स्रोत सी बहा करो जीवन के सुन्दर समतल में।“
          अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के संदर्भ में मैं इतना ही कहूँगी कि वर्तमान परिदृश्य में भले ही एक दिन महिला दिवस मनाने की धूम मचाई जा रही हो, लेकिन आज जिस तरह से नारी हर क्षेत्र में आगे बढ़कर अपना परचम फहराकर लोहा मनवा रही है, उसे देख निश्चित रूप से यह कहना अतिश्योक्ति न होगी कि आने वाला युग महिलाओं के नाम होगा और फिर वह दिन दूर नहीं, जिस दिन इसी तरह हम पुरुष दिवस मनाते नजर आएंगे तो इसमें कोई संशय नहीं होना चाहिए। इस प्रसंग में आज की पीढ़ी को ही देख लीजिए स्कूल हो या काॅलेज  लड़कियों का लड़कों से कई गुना बेहतर परिणाम देखने को मिलता है। इसी तरह यदि एक बार लिंग-भेद और जातिगत आरक्षण का दंश समाप्त कर सबको समानता का अधिकार दे दिया जाए, तो फिर क्या राजनीति, नौकरी या व्यवसाय, हर जगह महिलाएं आगे-आगे नज़र आएँगी। 
...कविता रावत