अनाड़ी कारीगर अपने औजारों में दोष निकालता है।
पकाने का सलीका नहीं जिसे वह देगची का कसूर बताता है।।
कातना न जाने जो वह चर्खे को दुत्कारने चला।
लुहार बूढ़ा हुआ तो लोहे को कड़ा बताने लगा।।
जिसका मुँह टेढ़ा वह आइने को तमाचा मारता है।
कायर सिपाही हमेशा हथियार को कोसता है।।
जो लिखना नहीं जानता वह कलम को खराब बताता है।
भेड़िए को मेमना पकड़ने का कारण अवश्य मिल जाता है।।
कायर अपने आप को सावधान कहता है।
कंजूस अपने आप को मितव्ययी बताता है।।
बहानेबाजों के पास कभी बहानों की कमी नहीं रहती है।
गुनाहगार को बहाना बनाने में दिक्कत पेश नहीं आती है।।
अनाड़ी निशानेबाज के पास हमेशा झूठ तैयार रहता है।।
तानाशाह का काम किसी भी बहाने से चल सकता है।।
पकाने का सलीका नहीं जिसे वह देगची का कसूर बताता है।।
कातना न जाने जो वह चर्खे को दुत्कारने चला।
लुहार बूढ़ा हुआ तो लोहे को कड़ा बताने लगा।।
जिसका मुँह टेढ़ा वह आइने को तमाचा मारता है।
कायर सिपाही हमेशा हथियार को कोसता है।।
जो लिखना नहीं जानता वह कलम को खराब बताता है।
भेड़िए को मेमना पकड़ने का कारण अवश्य मिल जाता है।।
कायर अपने आप को सावधान कहता है।
कंजूस अपने आप को मितव्ययी बताता है।।
बहानेबाजों के पास कभी बहानों की कमी नहीं रहती है।
गुनाहगार को बहाना बनाने में दिक्कत पेश नहीं आती है।।
अनाड़ी निशानेबाज के पास हमेशा झूठ तैयार रहता है।।
तानाशाह का काम किसी भी बहाने से चल सकता है।।
....कविता रावत
13 टिप्पणियां:
तभी तो मेमने सी जनता पर बाघ से तानाशाह का सुशासन चलता है.... सूंदर 'कविता'। बधाई!!!
वैसे भी कहा जाता है कि हम अपनी नाकामयाबी का ठीकरा दूसरों पर ही फोड़ते है। सुंदर प्रस्तुति।
वैसे भी कहा जाता है कि हम अपनी नाकामयाबी का ठीकरा दूसरों पर ही फोड़ते है। सुंदर प्रस्तुति।
वाह..
हर श़ेर मे एक सीख
सादर
बहुत खूब.....
लाजवाब प्रस्तुति..
नाच न जाने आँगन टेढा..।
सुन्दर।
बहुत सुन्दर, सार्थक और सटीक प्रस्तुति....
वाह ... हर बात सटीक ... साफ़ आइने की तरह ... लोहे की तरह कड़क ... नया अन्दाज़ में सटीक सामयिक और दुरुस्त बात की प्रखरता से रखते हुए ... बहुत बधाई ...
हर छंद में सीख देती रचना, बहुत बढ़िया कविता जी
हमारे जीवन में कई पात्र हमसे टकराते रहते हैं जिनकी सूक्ष्म पड़ताल करती यह रचना विचारोत्तेजक है। बधाई कविता जी।
उम्दा रचना
आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है http://rakeshkirachanay.blogspot.in/2017/06/22.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
कातना न जाने जो वह चर्खे को दुत्कारने चला।
लुहार बूढ़ा हुआ तो लोहे को कड़ा बताने लगा।।
बहुत ख़ूब ! आदरणीय जीवन का सही अर्थ बताती आपकी सुन्दर व विचारणीय रचना आभार। "एकलव्य"
एक टिप्पणी भेजें