
पकाने का सलीका नहीं जिसे वह देगची का कसूर बताता है।।
कातना न जाने जो वह चर्खे को दुत्कारने चला।
लुहार बूढ़ा हुआ तो लोहे को कड़ा बताने लगा।।
जिसका मुँह टेढ़ा वह आइने को तमाचा मारता है।
कायर सिपाही हमेशा हथियार को कोसता है।।
जो लिखना नहीं जानता वह कलम को खराब बताता है।
भेड़िए को मेमना पकड़ने का कारण अवश्य मिल जाता है।।
कायर अपने आप को सावधान कहता है।
कंजूस अपने आप को मितव्ययी बताता है।।
बहानेबाजों के पास कभी बहानों की कमी नहीं रहती है।
गुनाहगार को बहाना बनाने में दिक्कत पेश नहीं आती है।।
अनाड़ी निशानेबाज के पास हमेशा झूठ तैयार रहता है।।
तानाशाह का काम किसी भी बहाने से चल सकता है।।
....कविता रावत