आज रविवार है यानि छुट्टी का दिन, कामकाजी महिलाओं के लिए दफ्तर को भुलाकर देर तक सुख स्वप्नों में विचरण करते रहने का दिन। इसलिए आज दैनिक दिनचर्या से हटकर बहुत देर बाद जागना हुआ। अब भले ही हर छुट्टी के दिन दफ्तर ताले में बंद कर दिए जाते हों, लेकिन घर में किचन एक ऐसी जगह है, जहाँ घरवालों को यदि भूले से भी ताला लगाने की बात भर कह दी जाय तो हाहाकार मचने में देर नहीं लगेगी। खैर ऐसी नौबत न आये इसलिए हर छुट्टी के दिन की तरह ही मैंने जल्दी-जल्दी नहा-धोकर सबसे पहले नाश्ता-पानी तैयार कर फुर्सत पा ली और फिर सीढ़ियों में जहाँ दिन में लगभग एक बजे तक ही धूप रहती है, वहाँ सर्दी की गुनगुनी धूप का आनंद उठाते हुए अभी मोबाइल से व्हाट्सअप, फेसबुक और ब्लॉग की दुनिया में कुछ क्षण विचरण किया था कि हमारे 1760 काम वाले भैया टपक पड़े। अरे वही भैया जिनके बारे में मैंने पिछले रविवार को बताया था, जिनको घर बसाने के लिए एक लड़की की तलाश है। खैर कुशलक्षेम पूछने के बाद जैसे ही मैंने इंदौर के परिचय सम्मेलन वाली पसंद की लड़की से बात करना की बात कही तो वह एक ही सांस में बोल उठा- " लड़की तो मुझे बहुत पसंद है और मैने बात भी की है लेकिन लड़की ने अभी एक सप्ताह तक देख-समझने के बाद अपना निर्णय सुनाने का कहकर एक पेंच लगा छोड़ा है, बस उसी का खटका मन में है ।" उसके मन की खटकन दूर करने के हिसाब से जैसे ही मैंने चिंता न कर, सब ठीक हो जाएगा, कहा तो वह फिर सुनाने लगा- " हाँ, ऐसी उम्मीद तो है लेकिन भाभी जी अब पहले जैसी बात तो रही नहीं कि लड़की के माँ-बाप ने उसे जिस लड़के के साथ शादी तय की हो, लड़की ने चुपचाप उसी से शादी कर ली हो।" मेरे हां ये बात तो है कहने पर वह फिर आगे बताने लगा- "आज परिवार से पहले लड़की की मर्जी जरुरी समझी जाती है, नहीं तो क्या-क्या नाटक हो जाते हैं, यह किसी से छुपे तो नहीं हैं। इसलिए मन से आशंका के मँडराते बादल छंटने का नाम ही नहीं ले रहे हैं। अब भगवान जाने उसका क्या जवाब आएगा ।" खैर अब मैं उसकी पैरवी करते हुए आज रात को लड़की से बात करने वाली हूँ और उसकी हमारे 1760 काम वाले भैया के बारे में राय जानना चाहती हूँ, अब वह इस बारे में क्या कहती है, वह अगले चरण में, फिलहाल निष्कर्ष रूप में यही कहूँगी कि-
अभी उसकी कुछ बात हुई है
पहली पहल मुलाक़ात हुई है
दो दिलों में अभी बड़ी दूरी है
अभी बात उसकीअधूरी है
... कविता रावत