एक बेचारा 1760 काम का मारा
इधर-उधर मारा-मारा फिरता है
कोई तो ढूंढों एक सयानी बहू
अक्सर यही कहता रहता है
इस शहर से उस गांव तक
इसको देखा उसको देखा
पर किस्मत उसकी ऐसी
मिल न पाती कोई रेखा
कहता थक-हार गया हूँ मैं
अब व्यथा किसे सुनाऊँ मैं
गोरी-काली सब चलाऊँ
नखरे उसके सब उठाऊँ
पर शर्त यही की हो पढ़ी-लिखी
बताना जरूर यदि कहीं दिखी
परिवार संग घुलमिल रहे वह ऐसी
सब कहे बहू हो तो शैलू की जैसी
... कविता रावत
कोई तो ढूंढों एक सयानी बहू
अक्सर यही कहता रहता है
इस शहर से उस गांव तक
इसको देखा उसको देखा
पर किस्मत उसकी ऐसी
मिल न पाती कोई रेखा
कहता थक-हार गया हूँ मैं
अब व्यथा किसे सुनाऊँ मैं
गोरी-काली सब चलाऊँ
नखरे उसके सब उठाऊँ
पर शर्त यही की हो पढ़ी-लिखी
बताना जरूर यदि कहीं दिखी
परिवार संग घुलमिल रहे वह ऐसी
सब कहे बहू हो तो शैलू की जैसी
... कविता रावत