क्या दीवाली लक्ष्मी जयन्ती है? - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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गुरुवार, 19 अक्तूबर 2017

क्या दीवाली लक्ष्मी जयन्ती है?

एक मान्यता के अनुसार दीपावली ‘लक्ष्मी जयन्ती’ अर्थात् लक्ष्मी के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है। निश्चित ही यह कल्पना अर्वाचीन है, क्योंकि प्राचीन देवताओं की जयन्ती या जन्मदिन की अवधारणा वैदिक काल में नहीं थी। लक्ष्मी एक वैदिक देवता है जो मूलतः भूदेवी या पृथ्वी का प्रतीक थी। इन्द्र और वरुण आदि वैदिक देवों की जयन्ती जिस प्रकार नहीं मनाई जाती उसी प्रकार लक्ष्मी के भी जन्मदिन का प्रश्न नहीं उठता। किन्तु बाद के समय में इस दिन लक्ष्मी के जन्म होने की कल्पना विकसित हुई हो सकती है। इसके आधार क्या रहे होंगे, इस पर विचार किया जाए तो कार्तिक कृष्ण अमावस्या की रात्रि को लक्ष्मी की उत्पत्ति की कल्पना के मूल में निम्नलिखित वैज्ञानिक तथ्य विचारणीय है-
           लक्ष्मी, चन्द्रमा आदि चतुर्दश रत्न समुद्र मंथन से उत्पन्न हुए, ऐसा माना जाता है। समुद्र मंथन की तिथि क्या रही होगी, इसका उल्लेख नहीं मिलता। किन्तु यह वैज्ञानिक तथ्य है कि कार्तिक कृष्ण अमावस्या के दिन आने वाला ज्वार वर्ष भर के सबसे बड़े ज्वारों में से एक है। इस समय विशाल समुद्र के जल का विक्षुब्ध होना, कोलाहल सहित लहरों का उत्थान-पतन समुद्रमंथन का ही दृश्य उपस्थित करते हैं। कुछ वर्ष पूर्व देवर्षि कलानाथ शास्त्री ने इसी आधार पर प्राचीन मान्यताओं का विश्वलेषण करते हुए बताया था कि संभव है, हमारे पौराणिक युग में समुद्र मंथन की कल्पना उन्हीं भयंकर ज्वारों को देखकर की गई हो। रूपकप्रिय वैदिक ऋषियों और पुराणकारों ने इसी रूपक के लेकर सूर्य आदि देवताओं द्वारा मथे जाने वाले समुद्र की कल्पना की हो और इस समुद्र मंथन के दूसरे ही दिन निकले वाले चन्द्रमा को (जो कार्तिक शुक्ल द्वितीया को निकलता है) समुद्र मंथन से उत्पन्न माना हो यह स्वाभाविक है। चन्द्रमा की बहिन लक्ष्मी भी (पृथ्वी का प्रतीक) समुद्र मंथन से उत्पन्न हुई मानी जाती है, इसलिए कार्तिक कृष्ण अमावस्या को लक्ष्मी जयन्ती मानना भी इसी दृष्टि से सुसंगत लगता है।
          पुराणों में लक्ष्मीपूजा के अलावा दीवाली के दिन दीपक जलाने का जो विधान मिलता है उसका भी एक समाज-वैज्ञानिक पक्ष उन्होंने स्पष्ट किया है। जिस प्रकार बरसात में आई अस्वच्छता को दूर कर सफाई और घरों की लिपाई-पुताई का विधान मिलता है उसी प्रकार न केवल घरों में बल्कि देवालयों में ‘दीपवृक्ष’ समर्पित करने तथा बाजारों और सार्वजनिक स्थानों में दीप पंक्ति रखने के विधान का स्पष्ट आश्य यही है कि गृहस्वामी अपने घर को हर प्रकार से जगमगाने से भी अधिक महत्व सार्वजनिक स्थानों पर प्रकाश करने को दें। यमत्रयोदशी से लेकर दीवाली तक चौराहों, गलियों और रास्तों में दीप जलाने को विशेष महत्व दिया जाता है। सामान्यतः व्यक्ति जिन स्थानों पर दीपक नहीं जलाता, वहां भी इस दिन दिए जलाये जाएं, यही इस परम्परा का उद्देश्य प्रतीत होता है।      "पर्व पारिजात से साभार"
सबको दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं!