नवरात्रि : भक्ति और शक्ति का उत्सव - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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मंगलवार, 17 अक्तूबर 2023

नवरात्रि : भक्ति और शक्ति का उत्सव



सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवी दुर्गे देवि नमोsस्तु ते ।।

सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि।
गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोsस्तु ते ।।

गणेशोत्सव के बाद नौ दिन तक चलने वाला शक्ति और भक्ति का अनुपम उत्सव दुर्गोत्सव सर्वाधिक धूम-धाम से मनाया जाने वाला उत्सव है। अकेले मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में दुर्गा उत्सव के अवसर पर लगभग डेढ़ हजार स्थानों पर माँ दुर्गा की भव्य प्रतिमाएं आकर्षक साज-सज्जा के साथ स्थापित की जाती हैं। वहीँ दुर्गा मंदिरों में नौ दिन तक माता रानी की अखंड ज्योत जलाकर पूजा अर्चना, हवनादि होता रहता है। नवरात्र उत्सव का विशेष आकर्षण भव्यतम झाँकियाँ जो पौराणिक गाथाओं के साथ-साथ सामयिक सामाजिक व्यवस्थाओं को प्रदर्शित कर नव जागरण का सन्देश देती हैं, सभी जाति, धर्म सम्प्रदाय के लोगों को समान रूप से आकृष्ट करती है। शाम ढलते ही माँ दुर्गे की भव्य प्रतिमाओं और आकर्षक झाँकियों के दर्शन के लिए जन समूह एक साथ उमड़ पड़ता है। जगह-जगह नौ दिन तक हर दिन मेला लगा रहता है।
नवरात्र में यंत्रस्थ कलश, गणेश, नवग्रह, मातृका, वास्तु, सप्तर्षि, सप्तचिरंजीव, ६४ योगिनी, ५० क्षेत्रपाल तथा अन्यान्य देवताओं की वैदिक विधि के साथ पूजा करने का विधान है। अखंड दीप की व्यवस्था के साथ देवी प्रतिमा की अंग-न्यास और अग्नुत्तारण आदि विधि के साथ विधिवत पूजा का भी विधान प्रचलित है। नव दुर्गा पूजा,ज्योतिपूजा, वटुक-गणेशादि सहित कुमारी पूजा, अभिषेक, नान्दीश्राद्ध, रक्षाबंधन, मंगलपाठ, गुरुपूजा, मंत्र-स्नान आदि के अनुसार अनुष्ठान होता है। इस प्रकार विस्तृत विधि से पूजा करने वाले भक्तों पर भगवती अपनी असीम कृपा कर उनके दुःख, भय, रोग, शोकादि दूर कर शक्ति और समृद्धि प्रदान करती है।

सर्वज्ञ महात्मा वेद भगवान के द्वारा प्रतिपादित नौ देवियों का स्वरुप 'नवदुर्गा' कहलाती हैं, जिनको पृथक-पृथक शक्ति रूप से जाना जाता है।

माँ दुर्गा की प्रथम शक्ति है शैलपुत्री :  माता  सती के अगले जन्म मैं शैलराज हिमालय के यहाँ पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनकी स्तुति शैलपुत्री के रूप में करते हैं । माता शैलपुत्री की आराधना से आत्मसम्मान, चिंतन और उच्च विचारों का आविर्भाव होता है।

माँ की दूसरी शक्ति है ब्रह्मचारिणी :  सच्चिदानन्दमय ब्रह्मस्वरूप की प्राप्ति कराना जिनका स्वभाव हो, वे ब्रह्मचारिणी कहलाई।

माँ की तीसरी शक्ति है 
चंद्रघंटा : इस देवी के मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चन्द्र है, इसलिए इन्हें चन्द्रघंटा कहा जाता है। इनका शरीर स्वर्ण के समान चमकीला है। दस हाथ वाली खडग और अन्य अस्त्र=शस्त्र से सज्जित सिंह पर सवार यह देवी युद्ध के लिए उद्धत मुद्रा में विराजमान रहती हैं। इनके दर्शन से अलौकिक वस्तु दर्शन, दिव्य सुगंधियों का अनुभव और कई तरह की घंटियाँ सुनायी देती हैं। इनकी आराधना से साधक  में वीरता, निर्भयता के साथ सौम्यता और विनम्रता का विकास होता है। 

माँ की चौथी शक्ति है कूष्मांडा : यह देवी चराचर जगत की अधिष्ठात्री है। अष्टभुजा युक्त होने से इन्हें देवी अष्टभुजा के नाम से भी जाना जाता है। इस देवी की आराधना से अधियों-व्याधियों से मुक्ति और सुख- समृद्धि की प्राप्ति होती है।  


माँ की पांचवीं शक्ति है स्कंदमाता:  नवरात्रि के पाँचवें दिन माता स्कंदमाता की पूजा की जाती है।  भगवान् कार्तिकेय  का एक नाम "स्कंद कुमार" भी है। स्कन्द माता कार्तिकेय की माता हैं। इसलिए इन्हें स्कंदमाता नाम से पुकारा जाता है। 
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।  
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
 मान्यता है कि माता का यह स्वरुप स्वयं देवी गायत्री का रूप है। स्कन्द माता का सौंदर्य अनुपम है।  इनकी चार भुजाएं हैं, जिसमें दो हाथोँ में कमल का फूल सुशोभित हैं तो वहीँ एक हाथ में बालरूपी स्कन्द जी विराजित हैं।  स्कन्द माता को शांति, सद्भाव और सादगी का प्रतीक  सफ़ेद रंग अतिप्रिय है। माँ स्कन्दमाता भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।  माता का यह अद्भुत स्वरुप चार भुजाधारी कमल के पुष्प पर विराजमान हैं, जिससे इनको पद्मासन देवी भी कहा जाता है। ये मोक्ष के द्वार खोलने वाली माँ है।  भगवान कार्तिकेय बाल रूप में इनकी गोद में विराजित हैं।  पौराणिक कथानुसार तारकासुर वध के दौरान माँ पार्वती  ने अपने पुत्र कार्तिकेय को युद्ध के लिए प्रशिक्षित करने के लिए स्कंदमाता का रूप लिया था।    अपने वाहन शेर पर सवार माता का यह स्वरुप एकाग्र रहकर जीवन को सफल और निर्भीक होकर चलाने और दूसरों की मदद करने की सीख देता है। क्योँकि मनुष्य जीवन सुख-दुःख, अच्छाई-बुराई से भरा देवासुर संग्राम जैसा है, जहाँ हम स्वयं इसके सेनापति हैं, ऐसे में स्कंदमाता की आराधना से हमें जीवन में सैन्य-संचालन करने की शक्ति मिलती हैं।  माँ स्कन्द माता मातृत्व और सन्तानोँ के प्रति देखभाल की सीख देती है। 


माँ की छठवीं शक्ति है कात्यायनी :  देवताओं के कार्यसिद्धि हेतु महर्षि कात्यायन के आश्रम में प्रकट हुई, जिससे उनके द्वारा अपने पुत्री मानने से कात्यायनी नाम से प्रसिद्द हुई. 

मां की सातवीं शक्ति है कालरात्रि : काल की भी रात्रि (विनाशिका) होने से उनका नाम कालरात्रि कहलाई।

मां Kalratri की प्रार्थना

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।

लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥

वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा।

वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥

मां की सातवीं शक्ति के रूप में देवी कालरात्रि का पूजन किया जाता है। देवी का यह नाम उनके स्वरूप के कारण है। इस स्वरूप में माता काजल के समान काले रंग में होती है। मान्यता है कि #शुंभू #निशुंभु और उसकी सेना देख देवी को भयंकर क्रोध आया जिससे उनका वर्ण काला हो गया। इसी स्वरूप में माता प्रकट हुई। मां चतुर्भुज रूप में, जिसमें वह एक हाथ खड्ग, एक में कंटीला मूसल, एक भक्तों को वर देती और एक हाथ से अभय दान देती दिखाई देती है। गले में विद्युत् माला और नासिका से क्रोध में आग उगलती माता राक्षसों के काल रूप में और भक्तों के प्रति ममतमई होने से शुभंकरी भी कहलाती है।

मां कालरात्रि को खीर का भोग और ऋतु फल अर्पित किए जाते हैं। संध्याकाल में खिचड़ी का भोग लगाकर गुड़हल के लाल फूलों से पूजा जाता है।


माँ की आठवीं शक्ति है
 महागौरी : मां का आठवां स्वरूप है महागौरी। मां दुर्गा जब काली बनी तो गिर से अपना गौरवर्ण पाने के लिए मां ने तपस्या कर अपना गौर वर्ण प्राप्त किया। मां भगवती गौरी के मस्तक पर चन्द्र का मुकुट है, मणिकांत मणि जैसी कांति लिए चार भुजाएं हैं, जिनमें शंख, चक्र, धनुष के साथ वर मुद्रा है। कानों में रत्नजड़ित कुंडल की शोभा है। मां का वाहन बैल है। नैवेद्य में हलवा प्रिय है। मां के कवच, स्त्रोत आदि के पाठ से सोमचक्र जाग्रत होता है, जो मनुष्य को जीवन में आने वाले संकटों में अपनी जिम्मेदारी निभाने में सक्षम बनाकर आर्थिक लाभ पहुंचाती है।  मां का पूजन फलदायी है, इससे उनके तमाम पाप धुल जाते हैं। मां गौरी की कृपा से अलौकिक सिद्धियां प्राप्त होती हैं। मां को पूजन में कुमकुम का टीका लगाकर सफेद रंग के वस्त्र और सफेद फूल अर्पित किए जाते हैं। मां को पंच मेवा के साथ काले चने का भोग लगाया जाता है। इस दिन कन्या भोजन का विशेष महत्व है।


माँ की नौवीं शक्ति है सिद्धिदात्री : सिद्धि अर्थात मोक्षदायिनी होने से सिद्धिदात्री कहलाती है।
नाना प्रकार के आभूषणों और रत्नों से सुशोभित ये देवियाँ क्रोध से भरी हुई और रथ पर आरूढ़ दिखाई देती हैं. ये शंख, चक्र, गदा, शक्ति, हल, मुसल, खेटक, तोमर, परशु, पाश, कुंत, त्रिशूल एवं उत्तम शांर्गधनुष आदि अस्त्र-शस्त्र अपने हाथों में धारण किए रहती हैं, जिसका उद्देश्य दुरात्माओं का नाश कर भक्तों को अभयदान देते हुए उनकी रक्षा कर लोक में शांति व्याप्त करना है।
मान्यता है कि भगवान शिव ने मां सिद्धिरात्री की कृपा से ही आठ सिध्दियां- अणिमा, महिमा, गरिमा, लाधिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, ईशित्व और वशित्व का वरदान पाया। इन्ही सिद्धियों के कारण भगवान शिव का आधा शरीर देवी का बना और वे अर्धनारीश्वर कहलाए। हिमाचल का नंदा पर्वत इनका प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। मान्यता है कि मां के सिद्धि रात्रि रूप पूजन से अष्ट सिद्धि और नव निधि, बुद्धि और विवेक की प्राप्ति होती है। 
मां का पूजन घी का दीपक जलाकर कमल के फूल के साथ ही नारियल, फल और भोग लाल कपड़े में लपेटकर अर्पित किए जाते है।  मां के भोजन में  खीर, पुआ और पंचामृत तैयार कर उन्हें भोग लगाते हुए कन्या भोज कराने से मां प्रसन्न होती है और भक्तों की अज्ञानता दूर करती है।
नवरात्रि के अवसर पर भक्तों का शक्ति की अधिष्ठात्री देवी दुर्गा की आराधना के मूल में शक्तिशाली और विजयी होने की भावना के साथ-साथ विश्वव्यापी विपत्तियों के नाश और भय-नाश ही सर्वोपरि परिलक्षित होती है।

माँ दुर्गा अपने नामानुकूल सभी पर माँ जैसी समान कृपा बनाये रखे इसी नेक भावना के साथ मेरी ओर से सभी को भक्ति और शक्ति के द्योतक दुर्गोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ।