अभी कितना चलना है - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
ब्लॉग के माध्यम से मेरा प्रयास है कि मैं अपने विचारों, भावनाओं को अपने पारिवारिक दायित्व निर्वहन के साथ-साथ कुछ सामाजिक दायित्व को समझते हुए सरलतम अभिव्यक्ति के माध्यम से लिपिबद्ध करते हुए अधिकाधिक जनमानस के निकट पहुँच सकूँ। इसके लिए आपके सुझाव, आलोचना, समालोचना आदि का स्वागत है। आप जो भी कहना चाहें बेहिचक लिखें, ताकि मैं अपने प्रयास में बेहत्तर कर सकने की दिशा में निरंतर अग्रसर बनी रह सकूँ|

गुरुवार, 20 जनवरी 2011

अभी कितना चलना है

न बुझते हुए दीपक को देखो
कि अभी उसे कितना जलना है
न उखडती हुई सांसों को देखो
कि अभी उन्हें कितना चलना है

गुजरा जो जिंदगी के हर मोड़ से
जिसके बोझिल कदम, ऑंखें नम हैं
उस से पूछो कहां गईं खुशियां
क्यों दफ़न दिल में अरमां हैं!

हर दिन किसी का उगता है सूरज
तो किसी की ढल जाती शाम है
जो मिट गए अपनों की खातिर
उनका देखो सुकूं भरा मुकाम है

   ..कविता रावत