अभी कितना चलना है - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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गुरुवार, 20 जनवरी 2011

अभी कितना चलना है

न बुझते हुए दीपक को देखो
कि अभी उसे कितना जलना है
न उखडती हुई सांसों को देखो
कि अभी उन्हें कितना चलना है

गुजरा जो जिंदगी के हर मोड़ से
जिसके बोझिल कदम, ऑंखें नम हैं
उस से पूछो कहां गईं खुशियां
क्यों दफ़न दिल में अरमां हैं!

हर दिन किसी का उगता है सूरज
तो किसी की ढल जाती शाम है
जो मिट गए अपनों की खातिर
उनका देखो सुकूं भरा मुकाम है

   ..कविता रावत

51 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

आदरणीय कविता रावत जी
नमस्कार !
आपकी कविता कहीं गहरे सोच के लिए प्रेरित करती है |आप बहुत
अच्छा लिखती हैं |बहुत बहुत बधाई |

बेनामी ने कहा…

गुजरा जो जिंदगी के हर मोड़ से
जिसके बोझिल कदम, ऑंखें नम हैं
उस से पूछो कहां गईं खुशियां
क्यों दफ़न दिल में अरमां हैं!

चंद पंक्तियों में जिंदगी का बहुमूल्य उपहार ..... रचना अपने आप में गागर में सागर है. उत्कृष्ट रचना के लिए आभार

संजय भास्‍कर ने कहा…

हर शब्‍द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्‍यक्ति के लिये बधाई

ZEAL ने कहा…

.

@-जो मिट गए अपनों की खातिर
उनका देखो सुकूं भरा मुकाम है ...

----

बड़ा होना इसी को कहते हैं , जब हम दूसरों के लिए जीना सीख लेते हैं। जब हम दूसरों के दुःख महसूस करने लगते हैं और बिना किसी स्वार्थ के उस जरूरतमंद की मदद करते हैं।

अपने होठों पर मुस्कराहट तो आ ही जाती है जब हम किसी गैर को एक मुस्कान देने में सफल हो पाते हैं।

.

.

पी.एस .भाकुनी ने कहा…

न उखडती हुई सांसों को देखो
कि अभी उन्हें कितना चलना है....
shabdon or chitr ka behtrin taalmail,
उत्कृष्ट रचना के लिए आभार ,

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

गुजरा जो जिंदगी के हर मोड़ से
जिसके बोझिल कदम, ऑंखें नम हैं
उस से पूछो कहां गईं खुशियां
क्यों दफ़न दिल में अरमां हैं!

संवेदनशील अभिव्यक्ति .....!!

गिरधारी खंकरियाल ने कहा…

संवेदना के शब्द स्वयं चित्र बना लेते हैं

रश्मि प्रभा... ने कहा…

न बुझते हुए दीपक को देखो
कि अभी उसे कितना जलना है
न उखडती हुई सांसों को देखो
कि अभी उन्हें कितना चलना है
...
bas lakshy per dhyaan rakho, manzil tabhi ujaale deti hai

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

न बुझते हुए दीपक को देखो
कि अभी उसे कितना जलना है
न उखडती हुई सांसों को देखो
कि अभी उन्हें कितना चलना है
...


ek pyari aur bhaw purn rachna...:)
kash musukarhat dikhe.......!

सदा ने कहा…

हर दिन किसी का उगता है सूरज
तो किसी की ढल जाती शाम है
जो मिट गए अपनों की खातिर
उनका देखो सुकूं भरा मुकाम है
बहुत ही भावमय करते शब्‍द ।

Sushil Bakliwal ने कहा…

उत्तम प्रस्तुति.

Shah Nawaz ने कहा…

बेहतरीन रचना है कविता जी... बहुत खूब!

Kailash Sharma ने कहा…

हर दिन किसी का उगता है सूरज
तो किसी की ढल जाती शाम है
जो मिट गए अपनों की खातिर
उनका देखो सुकूं भरा मुकाम है

गहन संवेदना से पूर्ण बहुत सुन्दर प्रस्तुति..

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

किसी की सुकूं के खातिर कितनी मुश्किलें होती है, यही जिन्दगी है।

Surya ने कहा…

हर दिन किसी का उगता है सूरज
तो किसी की ढल जाती शाम है
जो मिट गए अपनों की खातिर
उनका देखो सुकूं भरा मुकाम है
कितना सही कहा आपने जीवनभर जो अपनों की खातिर एक मुकाम हासिल करते हैं उसका सुख वे नहीं उनकी आने वाली सन्ताने उठाती है भले ही वे उसके योग्य हों या अयोग्य! बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिए बधाई

Dolly ने कहा…

न बुझते हुए दीपक को देखो
कि अभी उसे कितना जलना है
न उखडती हुई सांसों को देखो
कि अभी उन्हें कितना चलना है
लगातार चलते चलते कभी कभी न लक्ष्य मिल ही जाता है बस शर्त यही है कि कभी हार न माने .... सरल शब्दों में गहरी भावाभिव्यक्ति ..................बहुत प्रभावशाली ढंग है आपका.....

Unknown ने कहा…

हर दिन किसी का उगता है सूरज
तो किसी की ढल जाती शाम है
जो मिट गए अपनों की खातिर
उनका देखो सुकूं भरा मुकाम है


सादगी भरी प्रभावशाली रचना बहुत कुछ सोचने के लिए प्रेरित कर मन में हलचल सी मचा रही है ...आपकी यह अपनी निराली शैली से प्रभावित हुआ... आपके ब्लॉग पर भटकते हुए आना हुआ, ब्लॉग देखकर मन प्रसन्न हुआ.......... बोले तो मुगाम्बो खुश हुआ ..अब चलता हूँ कुछ और ब्लॉग देख पढ़ लूँ..... फिर आता हूँ......

deepti sharma ने कहा…

behtareen rachna hai aapki
...
mere blog par
"jharna"

रचना दीक्षित ने कहा…

"जो मिट गए अपनों की खातिर
उनका देखो सुकूं भरा मुकाम है"

प्रभावशाली और बेहतरीन रचना.

बधाई

सोमेश सक्सेना ने कहा…

कविता जी सकारात्मकता का संदेश देती आपकी ये कविता पसंद आयी.
धन्यवाद.

Unknown ने कहा…

chalana hi jindagi hai !

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

आप मेरे ब्लॉग पर आईं ,धन्यवाद

सकारात्मक सोच की सार्थक और सुंदर अभिव्यक्ति

शरद कोकास ने कहा…

अच्छी क्षणिकायें हैं।

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

sach kahaa aapne.....bahut door chalnaa hai....

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

गुजरा जो जिंदगी के हर मोड़ से
जिसके बोझिल कदम, ऑंखें नम हैं
उस से पूछो कहां गईं खुशियां
क्यों दफ़न दिल में अरमां हैं
बहुत अच्छी लगी पंक्तियाँ..... सुंदर रचना

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर जी, धन्यवाद

सम्वेदना के स्वर ने कहा…

एक गहरी छाप छोड़्ती है यह कविता मन पर!!

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
राजभाषा हिन्दी
विचार

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

गहन और सकारातमक सोच से भरपूर रचना ....बहुत अच्छी लगी

दिगम्बर नासवा ने कहा…

हर दिन किसी का उगता है सूरज
तो किसी की ढल जाती शाम है
जो मिट गए अपनों की खातिर
उनका देखो सुकूं भरा मुकाम है ...


सच कहा ... किसी के लिए जो मर मिटता है उसे दिल से शान्ति मिलती है ... बाकी तो समय का खेल है चलता रहता है ...

vijay ने कहा…

गुजरा जो जिंदगी के हर मोड़ से
जिसके बोझिल कदम, ऑंखें नम हैं
उस से पूछो कहां गईं खुशियां
क्यों दफ़न दिल में अरमां हैं!
कविता जी! सच कहा अपने न जाने आखिर में कितने अरमान दिल में ही दफ़न हो जाते हैं सब होते हुए भी कोई नहीं देखने वाला होता है .
बहुत गहरी सोच से उपजी रचना ...

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

गुजरा जो जिंदगी के हर मोड़ से
जिसके बोझिल कदम, ऑंखें नम हैं
उस से पूछो कहां गईं खुशियां
क्यों दफ़न दिल में अरमां हैं!

ज़िदगी के अनेक मोड़ों से गुजरते हुए क़दम बोझिल हो ही जाते हैं।
इन बोझिल क़दमों का दर्द भुक्तभोगी ही जान सकता है।

अत्यंत प्रभावशाली पंक्तियां।

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

बहुत सुन्दर और भावपूर्ण है। बधाई!

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

गुजरा जो जिंदगी के हर मोड़ से
जिसके बोझिल कदम, ऑंखें नम हैं
उस से पूछो कहां गईं खुशियां
क्यों दफ़न दिल में अरमां हैं!
बहुत ही भावपूर्ण कविता ......... सुंदर प्रस्तुति.
बुलंद हौसले का दूसरा नाम : आभा खेत्रपाल

Dr Xitija Singh ने कहा…

हर दिन किसी का उगता है सूरज
तो किसी की ढल जाती शाम है
जो मिट गए अपनों की खातिर
उनका देखो सुकूं भरा मुकाम है...

बहुत खूबसूरत और भावपूर्ण अभिव्यक्ति कविता जी ....

निर्मला कपिला ने कहा…

जो मिट गए अपनों की खातिर
उनका देखो सुकूं भरा मुकाम है
ये जीने के लिये सुन्दर सूत्र है। अच्छी लगी रचना बधाई।

pratibha ने कहा…

हर दिन किसी का उगता है सूरज
तो किसी की ढल जाती शाम है
जो मिट गए अपनों की खातिर
उनका देखो सुकूं भरा मुकाम है ...

गहन और सकारातमक सोच से भरपूर रचना ....बहुत अच्छी लगी

विशाल ने कहा…

बहुत ही बढ़िया रचना है.भावपूर्ण अभिव्यक्ति.

Bharat Bhushan ने कहा…

'जो मिट गए अपनों की खातिर
उनका देखो सुकूं भरा मुकाम है '
अच्छी सोच से प्रेरित बहुत अच्छी रचना है. भविष्य में भी उत्तम सर्जनात्मकता के लिए शुभकामनाएँ.

shailendra ने कहा…

गुजरा जो जिंदगी के हर मोड़ से
जिसके बोझिल कदम, ऑंखें नम हैं
उस से पूछो कहां गईं खुशियां
क्यों दफ़न दिल में अरमां हैं!
बहुत ही भावपूर्ण कविता
बहुत अच्छी लगी

Unknown ने कहा…

हर दिन किसी का उगता है सूरज
तो किसी की ढल जाती शाम है
जो मिट गए अपनों की खातिर
उनका देखो सुकूं भरा मुकाम है ...
mar mitne walon ka yahi baaki nishan hai... bahut asarkarak rachna..gahri soch, gahare bhav...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 25-01-2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

http://charchamanch.uchcharan.com/

Anamikaghatak ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति

Amit Chandra ने कहा…

हर दिन किसी का उगता है सूरज
तो किसी की ढल जाती शाम है
जो मिट गए अपनों की खातिर
उनका देखो सुकूं भरा मुकाम है


बहुत सुन्दर प्रस्तुति

vandana gupta ने कहा…

सुन्दर भाव समन्वय्।

सूर्यकान्त गुप्ता ने कहा…

परमार्थ मे यदि ढूंढ ले अपना स्वार्थ तो निश्चय ही "जो मिट गए अपनों की खातिर
उनका देखो सुकूं भरा मुकाम है" साकार होगा। सुंदर रचना।

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

न बुझते हुए दीपक को देखो
कि अभी उसे कितना जलना है
न उखडती हुई सांसों को देखो
कि अभी उन्हें कितना चलना है

बहुत अच्छी रचना...

Unknown ने कहा…

‌‌‌बेहद शानदार और दर्द के भाव से प​रिपूर्ण

Satish Saxena ने कहा…

वाकई वे ही सार्थक जीवन बिता गए जो अपनों के काम आये अन्यथा अपना पेट तो सभी भरते हैं ! शुभकामनायें आपको !

-सर्जना शर्मा- ने कहा…

कविता रावत जी ,
रसबतिया में आपका स्वागत है . रसबतिया की रसिक बनने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद । आपका परिचय पढ़ा मन को छू गया । भोपाल गैस त्रासदी के दुख से जो सृजन आपने शुरू किया उसकी जितनी प्रशंसा की जाए कम हैं । आप को माघ मास पर पोस्ट अच्छी लगी उसके लिए धन्यवाद । आप सब पुराने महारथी ब्लॉगर्स हैं । मैं अभी नयी हूं ना कवियत्री हूं ना लेखिका हूं । फिर भी आप सबका स्नेह मिल रहा है ष आशा है आप समय समय पर मेरे लेखन की कमियों की तरफ भी ध्यान आकर्षित करायेंगें ।
और हां आपकी कविता की अंतिम पंक्तियां -- जो मिट गए अपनों की खातिर , उनका देखो सुकूं भरा मुकाम है । आपके व्यक्तिव का भरपूर परिचय देता है । आपसे मिल कर बेहद खुशी हुई ।

नीलांश ने कहा…

bahut acchi rachna...