न उखडती हुई सांसों को देखो कि अभी उन्हें कितना चलना है - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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गुरुवार, 7 नवंबर 2024

न उखडती हुई सांसों को देखो कि अभी उन्हें कितना चलना है


न बुझते हुए दीपक को देखो
कि अभी उसे कितना जलना है
न उखडती हुई सांसों को देखो
कि अभी उन्हें कितना चलना है

गुजरा जो जिंदगी के हर मोड़ से
जिसके बोझिल कदम, ऑंखें नम हैं
उस से पूछो कहां गईं खुशियां
कहां दफ़न दिल में अरमां हैं!

हर दिन किसी का उगता है सूरज
तो किसी की ढल जाती शाम है
जो मरते मिटते रहे अपनों के लिए
उन्हें देखो मिला कितना आराम है?

   ..कविता रावत
19/10/2024