कि अभी उसे कितना जलना है
न उखडती हुई सांसों को देखो
कि अभी उन्हें कितना चलना है
गुजरा जो जिंदगी के हर मोड़ से
जिसके बोझिल कदम, ऑंखें नम हैं
उस से पूछो कहां गईं खुशियां
क्यों दफ़न दिल में अरमां हैं!
हर दिन किसी का उगता है सूरज
तो किसी की ढल जाती शाम है
जो मिट गए अपनों की खातिर
उनका देखो सुकूं भरा मुकाम है
..कविता रावत
51 टिप्पणियां:
आदरणीय कविता रावत जी
नमस्कार !
आपकी कविता कहीं गहरे सोच के लिए प्रेरित करती है |आप बहुत
अच्छा लिखती हैं |बहुत बहुत बधाई |
गुजरा जो जिंदगी के हर मोड़ से
जिसके बोझिल कदम, ऑंखें नम हैं
उस से पूछो कहां गईं खुशियां
क्यों दफ़न दिल में अरमां हैं!
चंद पंक्तियों में जिंदगी का बहुमूल्य उपहार ..... रचना अपने आप में गागर में सागर है. उत्कृष्ट रचना के लिए आभार
हर शब्द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिये बधाई
.
@-जो मिट गए अपनों की खातिर
उनका देखो सुकूं भरा मुकाम है ...
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बड़ा होना इसी को कहते हैं , जब हम दूसरों के लिए जीना सीख लेते हैं। जब हम दूसरों के दुःख महसूस करने लगते हैं और बिना किसी स्वार्थ के उस जरूरतमंद की मदद करते हैं।
अपने होठों पर मुस्कराहट तो आ ही जाती है जब हम किसी गैर को एक मुस्कान देने में सफल हो पाते हैं।
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न उखडती हुई सांसों को देखो
कि अभी उन्हें कितना चलना है....
shabdon or chitr ka behtrin taalmail,
उत्कृष्ट रचना के लिए आभार ,
गुजरा जो जिंदगी के हर मोड़ से
जिसके बोझिल कदम, ऑंखें नम हैं
उस से पूछो कहां गईं खुशियां
क्यों दफ़न दिल में अरमां हैं!
संवेदनशील अभिव्यक्ति .....!!
संवेदना के शब्द स्वयं चित्र बना लेते हैं
न बुझते हुए दीपक को देखो
कि अभी उसे कितना जलना है
न उखडती हुई सांसों को देखो
कि अभी उन्हें कितना चलना है
...
bas lakshy per dhyaan rakho, manzil tabhi ujaale deti hai
न बुझते हुए दीपक को देखो
कि अभी उसे कितना जलना है
न उखडती हुई सांसों को देखो
कि अभी उन्हें कितना चलना है
...
ek pyari aur bhaw purn rachna...:)
kash musukarhat dikhe.......!
हर दिन किसी का उगता है सूरज
तो किसी की ढल जाती शाम है
जो मिट गए अपनों की खातिर
उनका देखो सुकूं भरा मुकाम है
बहुत ही भावमय करते शब्द ।
उत्तम प्रस्तुति.
बेहतरीन रचना है कविता जी... बहुत खूब!
हर दिन किसी का उगता है सूरज
तो किसी की ढल जाती शाम है
जो मिट गए अपनों की खातिर
उनका देखो सुकूं भरा मुकाम है
गहन संवेदना से पूर्ण बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
किसी की सुकूं के खातिर कितनी मुश्किलें होती है, यही जिन्दगी है।
हर दिन किसी का उगता है सूरज
तो किसी की ढल जाती शाम है
जो मिट गए अपनों की खातिर
उनका देखो सुकूं भरा मुकाम है
कितना सही कहा आपने जीवनभर जो अपनों की खातिर एक मुकाम हासिल करते हैं उसका सुख वे नहीं उनकी आने वाली सन्ताने उठाती है भले ही वे उसके योग्य हों या अयोग्य! बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिए बधाई
न बुझते हुए दीपक को देखो
कि अभी उसे कितना जलना है
न उखडती हुई सांसों को देखो
कि अभी उन्हें कितना चलना है
लगातार चलते चलते कभी कभी न लक्ष्य मिल ही जाता है बस शर्त यही है कि कभी हार न माने .... सरल शब्दों में गहरी भावाभिव्यक्ति ..................बहुत प्रभावशाली ढंग है आपका.....
हर दिन किसी का उगता है सूरज
तो किसी की ढल जाती शाम है
जो मिट गए अपनों की खातिर
उनका देखो सुकूं भरा मुकाम है
सादगी भरी प्रभावशाली रचना बहुत कुछ सोचने के लिए प्रेरित कर मन में हलचल सी मचा रही है ...आपकी यह अपनी निराली शैली से प्रभावित हुआ... आपके ब्लॉग पर भटकते हुए आना हुआ, ब्लॉग देखकर मन प्रसन्न हुआ.......... बोले तो मुगाम्बो खुश हुआ ..अब चलता हूँ कुछ और ब्लॉग देख पढ़ लूँ..... फिर आता हूँ......
behtareen rachna hai aapki
...
mere blog par
"jharna"
"जो मिट गए अपनों की खातिर
उनका देखो सुकूं भरा मुकाम है"
प्रभावशाली और बेहतरीन रचना.
बधाई
कविता जी सकारात्मकता का संदेश देती आपकी ये कविता पसंद आयी.
धन्यवाद.
chalana hi jindagi hai !
आप मेरे ब्लॉग पर आईं ,धन्यवाद
सकारात्मक सोच की सार्थक और सुंदर अभिव्यक्ति
अच्छी क्षणिकायें हैं।
sach kahaa aapne.....bahut door chalnaa hai....
गुजरा जो जिंदगी के हर मोड़ से
जिसके बोझिल कदम, ऑंखें नम हैं
उस से पूछो कहां गईं खुशियां
क्यों दफ़न दिल में अरमां हैं
बहुत अच्छी लगी पंक्तियाँ..... सुंदर रचना
बहुत सुंदर जी, धन्यवाद
एक गहरी छाप छोड़्ती है यह कविता मन पर!!
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
राजभाषा हिन्दी
विचार
गहन और सकारातमक सोच से भरपूर रचना ....बहुत अच्छी लगी
हर दिन किसी का उगता है सूरज
तो किसी की ढल जाती शाम है
जो मिट गए अपनों की खातिर
उनका देखो सुकूं भरा मुकाम है ...
सच कहा ... किसी के लिए जो मर मिटता है उसे दिल से शान्ति मिलती है ... बाकी तो समय का खेल है चलता रहता है ...
गुजरा जो जिंदगी के हर मोड़ से
जिसके बोझिल कदम, ऑंखें नम हैं
उस से पूछो कहां गईं खुशियां
क्यों दफ़न दिल में अरमां हैं!
कविता जी! सच कहा अपने न जाने आखिर में कितने अरमान दिल में ही दफ़न हो जाते हैं सब होते हुए भी कोई नहीं देखने वाला होता है .
बहुत गहरी सोच से उपजी रचना ...
गुजरा जो जिंदगी के हर मोड़ से
जिसके बोझिल कदम, ऑंखें नम हैं
उस से पूछो कहां गईं खुशियां
क्यों दफ़न दिल में अरमां हैं!
ज़िदगी के अनेक मोड़ों से गुजरते हुए क़दम बोझिल हो ही जाते हैं।
इन बोझिल क़दमों का दर्द भुक्तभोगी ही जान सकता है।
अत्यंत प्रभावशाली पंक्तियां।
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण है। बधाई!
गुजरा जो जिंदगी के हर मोड़ से
जिसके बोझिल कदम, ऑंखें नम हैं
उस से पूछो कहां गईं खुशियां
क्यों दफ़न दिल में अरमां हैं!
बहुत ही भावपूर्ण कविता ......... सुंदर प्रस्तुति.
बुलंद हौसले का दूसरा नाम : आभा खेत्रपाल
हर दिन किसी का उगता है सूरज
तो किसी की ढल जाती शाम है
जो मिट गए अपनों की खातिर
उनका देखो सुकूं भरा मुकाम है...
बहुत खूबसूरत और भावपूर्ण अभिव्यक्ति कविता जी ....
जो मिट गए अपनों की खातिर
उनका देखो सुकूं भरा मुकाम है
ये जीने के लिये सुन्दर सूत्र है। अच्छी लगी रचना बधाई।
हर दिन किसी का उगता है सूरज
तो किसी की ढल जाती शाम है
जो मिट गए अपनों की खातिर
उनका देखो सुकूं भरा मुकाम है ...
गहन और सकारातमक सोच से भरपूर रचना ....बहुत अच्छी लगी
बहुत ही बढ़िया रचना है.भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
'जो मिट गए अपनों की खातिर
उनका देखो सुकूं भरा मुकाम है '
अच्छी सोच से प्रेरित बहुत अच्छी रचना है. भविष्य में भी उत्तम सर्जनात्मकता के लिए शुभकामनाएँ.
गुजरा जो जिंदगी के हर मोड़ से
जिसके बोझिल कदम, ऑंखें नम हैं
उस से पूछो कहां गईं खुशियां
क्यों दफ़न दिल में अरमां हैं!
बहुत ही भावपूर्ण कविता
बहुत अच्छी लगी
हर दिन किसी का उगता है सूरज
तो किसी की ढल जाती शाम है
जो मिट गए अपनों की खातिर
उनका देखो सुकूं भरा मुकाम है ...
mar mitne walon ka yahi baaki nishan hai... bahut asarkarak rachna..gahri soch, gahare bhav...
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 25-01-2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
हर दिन किसी का उगता है सूरज
तो किसी की ढल जाती शाम है
जो मिट गए अपनों की खातिर
उनका देखो सुकूं भरा मुकाम है
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
सुन्दर भाव समन्वय्।
परमार्थ मे यदि ढूंढ ले अपना स्वार्थ तो निश्चय ही "जो मिट गए अपनों की खातिर
उनका देखो सुकूं भरा मुकाम है" साकार होगा। सुंदर रचना।
न बुझते हुए दीपक को देखो
कि अभी उसे कितना जलना है
न उखडती हुई सांसों को देखो
कि अभी उन्हें कितना चलना है
बहुत अच्छी रचना...
बेहद शानदार और दर्द के भाव से परिपूर्ण
वाकई वे ही सार्थक जीवन बिता गए जो अपनों के काम आये अन्यथा अपना पेट तो सभी भरते हैं ! शुभकामनायें आपको !
कविता रावत जी ,
रसबतिया में आपका स्वागत है . रसबतिया की रसिक बनने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद । आपका परिचय पढ़ा मन को छू गया । भोपाल गैस त्रासदी के दुख से जो सृजन आपने शुरू किया उसकी जितनी प्रशंसा की जाए कम हैं । आप को माघ मास पर पोस्ट अच्छी लगी उसके लिए धन्यवाद । आप सब पुराने महारथी ब्लॉगर्स हैं । मैं अभी नयी हूं ना कवियत्री हूं ना लेखिका हूं । फिर भी आप सबका स्नेह मिल रहा है ष आशा है आप समय समय पर मेरे लेखन की कमियों की तरफ भी ध्यान आकर्षित करायेंगें ।
और हां आपकी कविता की अंतिम पंक्तियां -- जो मिट गए अपनों की खातिर , उनका देखो सुकूं भरा मुकाम है । आपके व्यक्तिव का भरपूर परिचय देता है । आपसे मिल कर बेहद खुशी हुई ।
bahut acchi rachna...
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