तिहरे धागे को तोड़ना आसान नहीं है - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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मंगलवार, 23 अगस्त 2011

तिहरे धागे को तोड़ना आसान नहीं है

जो अपने आप गिर जाता है वह चीख़-पुकार नहीं मचाता है। 
जो धरती पर टिका हो वह कभी उससे नीचे नहीं गिरता है। । 

नदी पार करने वाले उसकी गहराई बखूबी जानते हैं। 
सदा लदकर चलने के आदी बेवक्त औंधे मुहं गिरते हैं। । 

सही वक्त पर बददुआ भी दुआ का काम कर जाता है । 
वक्त आने पर छोटा पत्थर भी बड़ी गाडी पलटा देता है। । 

जो शेर पर सवार हो उसे नीचे उतरने से डर लगता है। 
एक बार डंक लगने पर आदमी दुगुना चौकन्ना रहता है । । 

मजबूरी के आगे किसी का कितना जोर चल पाता है। 
गड्ढे में गिरे हाथी को भी चमगादड़ लात मारता है । ।  

बड़े-बड़े भार छोटे-छोटे तारों पर लटकाए जाते हैं । 
बड़े-बड़े यंत्र भी छोटी से धुरी पर घूमते हैं । । 

निर्बल वस्तु जुड़कर कमजोर नहीं रहती है । 
एकता निर्बल को भी शक्तिशाली बना देती है। । 

एक के मुकाबले दो लोग सेना के समान है। 
तिहरे धागे को तोड़ना आसान नहीं है। । 
           
    ..कविता रावत