सत्ता के सामने कभी सयानापन नहीं चलता है
जिसके हाथ बाजी उसकी बात में दम होता है
कोई जंजीर सबसे कमजोर कड़ी से ज्यादा मजबूत नहीं होती है
हर कोई भाग खड़ा होता जहाँ दीवार सबसे कमजोर दिखती है
जब बड़े घंटे बजने लगे तब छोटी घंटियों की आवाज दब जाती है
जब घर में सांप घुस आये तब बोलती बंद होते देर नहीं लगती है
अपनी गलती का पता लगा लेना बहुत बड़ी समझदारी होती है
वक्त को पहचानने के लिए समझदारी की जरुरत पड़ती है
जहाज डूब जाने के बाद हर कोई बचाने का उपाय जानता है
अक्सर दूसरों के मामले में समझदार बनना आसान होता है
नासमझ लोग बाज़ार गए तो घटिया माल भी खूब बिकता है
वहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है!
...कविता रावत
91 टिप्पणियां:
वहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है! very good.
वक्त को पहचानने के लिए समझदारी की जरुरत पड़ती हैsarv saty baat...
बहुत खूब...........
सुन्दर. नासमझ बने रहें तो ज़िन्दगी आसान होती है.
हर कोई भाग खड़ा होता जहाँ दीवार सबसे कमजोर दिखती है
बहुत बहुत सार्थक अभिव्यक्ति....
सादर.
नासमझ लोग बाज़ार गए तो घटिया माल भी खूब बिकता है
वहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है!
बहुत बढ़िया सार्थक सुंदर रचना,...
RESENT POST...काव्यान्जलि ...: तब मधुशाला हम जाते है,...
अक्सर दूसरों के मामले में समझदार बनना आसान होता है ...
सच कहा है ... बहुत आसान होता है ऐसा करना ... हर पंक्ति सटीक है ... दुनियादारी की बातों से लबरेज है ये रचना ...
नासमझ लोग बाज़ार गए तो घटिया माल भी खूब बिकता है
वहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है!
वाह क्या बात है !
बहुत खूब, जोरदार लिखा है
कोई जंजीर सबसे कमजोर कड़ी से ज्यादा मजबूत नहीं होती है
हर कोई भाग खड़ा होता जहाँ दीवार सबसे कमजोर दिखती है
जब बड़े घंटे बजने लगे तब छोटी घंटियों की आवाज दब जाती है
जब घर में सांप घुस आये तब बोलती बंद होते देर नहीं लगती है
/////
बहुत सुन्दर गंभीर व विचारणीय रचना
कमाल की ज्ञान की बातें!!
पैसा/सत्ता की बोली में व्याकरण की गलतियां नहीं देखी जातीं.
EKDAM SACH ....BADHAI
जब बड़े घंटे बजने लगे तब छोटी घंटियों की आवाज दब जाती है
बहुत सुन्दर सृजन !
आभार !
नासमझ लोग बाज़ार गए तो घटिया माल भी खूब बिकता है
वहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है!
एकदम सटीक हालात बयां किये हैं.....आपने कविता जी
सत्ता के सामने कभी सयानापन नहीं चलता है
जिसके हाथ बाजी उसकी बात में दम होता है
......
पर देश में सयानों को कमी कहाँ है एक से एक बढ़कर पटे पड़े हैं ..
अति सुन्दर सार्थक सृजन ...
सच कहा, अपने व्यक्तित्व के गढ्ढे कहाँ दिखते हैं।
jo bheed ke peechhe bhaagte hein
unke saath aisaa hee hotaa hai
dhruv satya
वहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है!...
सही कहा आपने, बहुत खूब.
सही कहा आपने ....
शुभकामनायें !
जब बड़े घंटे बजने लगे तब छोटी घंटियों की आवाज दब जाती है
जब घर में सांप घुस आये तब बोलती बंद होते देर नहीं लगती है
वाह भई क्या जबरदस्त बात कही आपने....बहुत अच्छे
बहुत सार्थक लोकोक्तियाँ लिखी हैं ।
SACH ...BAHUT SAHI LIKHA HAI AAPNE ,BADHAI:)
दूसरों के मामले में समझदार बनना आसान होता है!
बहुत ही बढ़िया बात कही है अपने..
नासमझ लोग बाज़ार गए तो घटिया माल भी खूब बिकता है
वहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है!
एकदम सटीक और बेहतरीन सुवाक्य....
बहुत बढ़िया रचना....
waah itani sari uktiyon ko ek sath padhna bhi ruchikar lga .....
aabhar...........!!
हकीकत को बयां करता एक करारा व अच्छा व्यंग्य. आभार !
रचना का संदेश लाजवाब है।
bahut accha .
बहुत खूब...
वहां बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मुर्खता से काम चलता है !
एक- एक पंक्ति सार्थक है !
बहुत ही सुंदर
अच्छा कहा।
बरछी सी तीखी , निशाने पर लगती हुई..
नासमझ लोग बाज़ार गए तो घटिया माल भी खूब बिकता है
वहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है!
..बहुत खूब!
हर एक पंक्ति सुन्दर और सार्थक .
पूरा का पूरा झक्कास ..
लिखा है लाजवाब!!
superb..
यह मौका कोई गंवाना नहीं चाहता
बहुत सुन्दर लिखा है...हर पंक्ति में एक कशिश भी एक कटाक्ष भी
bahut badhiya likha hai aapne ...
http://jadibutishop.blogspot.com
सार्थक अभिव्यक्ति...
wah wah
बहुत सुन्दर!!
वहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है! ..
और अगर वहां बुद्धिमानी दिखाई तो मूर्खों की जमात में बैठा दिए जाओगे :)
बहुत खूब
नासमझ लोग बाज़ार गए तो घटिया माल भी खूब बिकता है.......
प्रेरक प्रस्तुति .........
जहाज डूब जाने के बाद हर कोई बचाने का उपाय जानता है
अक्सर दूसरों के मामले में समझदार बनना आसान होता है
....बहुत सुंदर और सटीक प्रस्तुति...
वाह सुंदर ☺
नासमझ लोग बाज़ार गए तो घटिया माल भी खूब बिकता है
वहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है!
PAR UPADESH KUSHAL BAHUTERE.
waah bahut sunder वहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है! ..............sunder satik kataksh
सभी वाक्य सुन्दर और शिक्षाप्रद !
सुन्दर प्रस्तुति.....बहुत बहुत बधाई...
wah
अक्सर दूसरों के मामले में समझदार बनना आसान होता है
नासमझ लोग बाज़ार गए तो घटिया माल भी खूब बिकता है.सुन्दर प्रस्तुति.
वहां बुद्दिमानी किस काम की जहां मूर्खता से काम चलता है। वाह! क्या आनंददायक बात कही आपने।
वहां बुद्दिमानी किस काम की जहां मूर्खता से काम चलता है।
wah
bahut khoob likha hai
नासमझ लोग बाज़ार गए तो घटिया माल भी खूब बिकता है
वहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है!
सभी वाक्य सुन्दर और शिक्षाप्रद !
अफ़सोस की यह जंगल राज शहर में भी चलता है
आप के शब्दों के पीछे जो भाव है वो व्यथित कर देनेवाला भाव है.
अपनी गलती का पता लगा लेना बहुत बड़ी समझदारी होती है
वक्त को पहचानने के लिए समझदारी की जरुरत पड़ती है
बहुत बहुत सार्थक अभिव्यक्ति....
सादर.
नासमझ लोग बाज़ार गए तो घटिया माल भी खूब बिकता है
वहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है!
कविता जी बेहतरीन अभिव्यक्ति...
वहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है!
vaah prajatantra me ek murkhta karte han (vot nahi dalne ki) phir sari budimani dhari rah jati hai jangal raj ho jata hai. bahut khoob
कोई जंजीर सबसे कमजोर कड़ी से ज्यादा मजबूत नहीं होती है
सच कहा आपने
नासमझ लोग बाज़ार गए तो घटिया माल भी खूब बिकता है
वहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है!
बहुत बढ़िया सार्थक सुंदर रचना,...
bahut khoob.
बहुत बढ़िया,बेहतरीन करारी अच्छी प्रस्तुति,..
नवरात्र के ४दिन की आपको बहुत बहुत सुभकामनाये माँ आपके सपनो को साकार करे
आप ने अपना कीमती वकत निकल के मेरे ब्लॉग पे आये इस के लिए तहे दिल से मैं आपका शुकर गुजर हु आपका बहुत बहुत धन्यवाद्
मेरी एक नई मेरा बचपन
कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: मेरा बचपन:
http://vangaydinesh.blogspot.in/2012/03/blog-post_23.html
दिनेश पारीक
" नासमझ लोग बाज़ार गए तो घटिया माल भी खूब बिकता है
वहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है! "
या यों कहें :
" कद्र दानों की तबियत का अजब रंग है आज,
बुलबुलों को है यह हसरत कि हम उल्लू न हुए "
उत्तम कविता !
जहाज डूब जाने के बाद हर कोई बचाने का उपाय जानता है
अक्सर दूसरों के मामले में समझदार बनना आसान होता है
नासमझ लोग बाज़ार गए तो घटिया माल भी खूब बिकता है
वहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है!
..........
.बहुत खूब!
नासमझ लोग बाज़ार गए तो घटिया माल भी खूब बिकता है
वहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है!
बेहतरीन अभिव्यक्ति...
बहुत खूब लिखा है
नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनाएँ|
अति सुन्दर प्रस्तुति। अनुभब व
अनुभूति का सुन्दर समन्वय।
बहुत अच्छा सन्देश देती रचना।
धन्यवाद
आनन्द विश्वास
कविता जी
नमस्कार.
नासमझ लोग बाज़ार गए तो घटिया माल भी खूब बिकता है
वहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है!
सच्ची... तल्ख़ बात मगर सच यही है.....वाह वाह !!!!
वाह!!
विरोधाभाष की विडम्बना!!
सत्ता के सामने कभी सयानापन नहीं चलता है
जिसके हाथ बाजी उसकी बात में दम होता है
जब बड़े घंटे बजने लगे तब छोटी घंटियों की आवाज दब जाती है
जब घर में सांप घुस आये तब बोलती बंद होते देर नहीं लगती है
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समय की सही पहचान बताती सार्थक रचना..
अच्छे शब्द संयोजन के साथ सशक्त अभिव्यक्ति।
संजय भास्कर
आदत....मुस्कुराने की
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
पिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...
....... रचना के लिए बधाई स्वीकारें.
हमारा भी यही हाल है... क्षमा जैसी कोई बात नहीं ...
Kavita Rawat
बहुत सुंदर । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
जहाज डूब जाने के बाद हर कोई बचाने का उपाय जानता है
कथनी और करनी ...
बहुत सुन्दर
नासमझ लोग बाज़ार गए तो घटिया माल भी खूब बिकता है
वहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है! ................मजा आ गया .............कोई हमारे ब्लॉग पर भी आ जाए
sach kaha दूसरों के मामले में समझदार बनना आसान होता है!..bahut khoob
सत्ता के सामने कभी सयानापन नहीं चलता है
जिसके हाथ बाजी उसकी बात में दम होता है
आजकी बात बहुत सुन्दर धाग से कही है आपने
शत प्रतिशत सच....
सच कहा आपने...
सटीक बात...सुंदर विचार। गहन चिन्तन के लिए बधाई।
अक्सर दूसरों के मामले में समझदार बनना आसान होता है
नासमझ लोग बाज़ार गए तो घटिया माल भी खूब बिकता है
वहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है!
खूब कहा आपने...
अपनी गलती का पता लगा लेना बहुत बड़ी समझदारी होती है
वक्त को पहचानने के लिए समझदारी की जरुरत पड़ती है
very nice!
"सत्ता के सामने कभी सयानापन नहीं चलता है
जिसके हाथ बाजी उसकी बात में दम होता है"
बहुत सही कहा आपने ! जिसकी लाठी उसकी भैंस वाला मंजर ही हर जगह नज़र आता है! सारगर्भित प्रस्तुति !
आपकी सभी प्रस्तुतियां संग्रहणीय हैं। .बेहतरीन पोस्ट .
मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए के लिए
अपना कीमती समय निकाल कर मेरी नई पोस्ट मेरा नसीब जरुर आये
दिनेश पारीक
http://dineshpareek19.blogspot.in/2012/04/blog-post.html
सचमुच,हम सबके जीवन का यही फलसफा है।
सत्ता के सामने कभी सयानापन नहीं चलता है
जिसके हाथ बाजी उसकी बात में दम होता है"
बहुत सही
सारगर्भित प्रस्तुति !
नासमझ लोग बाज़ार गए तो घटिया माल भी खूब बिकता है
वहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है!
सुंदर...! सारगर्भित...!
बहुत सटीक प्रस्तुति.वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार
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