सत्ता के सामने कभी सयानापन नहीं चलता है
जिसके हाथ बाजी उसकी बात में दम होता है
कोई जंजीर सबसे कमजोर कड़ी से ज्यादा मजबूत नहीं होती है
हर कोई भाग खड़ा होता जहाँ दीवार सबसे कमजोर दिखती है
जब बड़े घंटे बजने लगे तब छोटी घंटियों की आवाज दब जाती है
जब घर में सांप घुस आये तब बोलती बंद होते देर नहीं लगती है
अपनी गलती का पता लगा लेना बहुत बड़ी समझदारी होती है
वक्त को पहचानने के लिए समझदारी की जरुरत पड़ती है
जहाज डूब जाने के बाद हर कोई बचाने का उपाय जानता है
अक्सर दूसरों के मामले में समझदार बनना आसान होता है
नासमझ लोग बाज़ार गए तो घटिया माल भी खूब बिकता है
वहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है!
...कविता रावत
वहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है! very good.
ReplyDeleteवक्त को पहचानने के लिए समझदारी की जरुरत पड़ती हैsarv saty baat...
ReplyDeleteबहुत खूब...........
ReplyDeleteसुन्दर. नासमझ बने रहें तो ज़िन्दगी आसान होती है.
ReplyDeleteहर कोई भाग खड़ा होता जहाँ दीवार सबसे कमजोर दिखती है
ReplyDeleteबहुत बहुत सार्थक अभिव्यक्ति....
सादर.
नासमझ लोग बाज़ार गए तो घटिया माल भी खूब बिकता है
ReplyDeleteवहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है!
बहुत बढ़िया सार्थक सुंदर रचना,...
RESENT POST...काव्यान्जलि ...: तब मधुशाला हम जाते है,...
अक्सर दूसरों के मामले में समझदार बनना आसान होता है ...
ReplyDeleteसच कहा है ... बहुत आसान होता है ऐसा करना ... हर पंक्ति सटीक है ... दुनियादारी की बातों से लबरेज है ये रचना ...
नासमझ लोग बाज़ार गए तो घटिया माल भी खूब बिकता है
ReplyDeleteवहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है!
वाह क्या बात है !
बहुत खूब, जोरदार लिखा है
कोई जंजीर सबसे कमजोर कड़ी से ज्यादा मजबूत नहीं होती है
ReplyDeleteहर कोई भाग खड़ा होता जहाँ दीवार सबसे कमजोर दिखती है
जब बड़े घंटे बजने लगे तब छोटी घंटियों की आवाज दब जाती है
जब घर में सांप घुस आये तब बोलती बंद होते देर नहीं लगती है
/////
बहुत सुन्दर गंभीर व विचारणीय रचना
कमाल की ज्ञान की बातें!!
ReplyDeleteपैसा/सत्ता की बोली में व्याकरण की गलतियां नहीं देखी जातीं.
ReplyDeleteEKDAM SACH ....BADHAI
ReplyDeleteजब बड़े घंटे बजने लगे तब छोटी घंटियों की आवाज दब जाती है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सृजन !
आभार !
नासमझ लोग बाज़ार गए तो घटिया माल भी खूब बिकता है
ReplyDeleteवहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है!
एकदम सटीक हालात बयां किये हैं.....आपने कविता जी
सत्ता के सामने कभी सयानापन नहीं चलता है
ReplyDeleteजिसके हाथ बाजी उसकी बात में दम होता है
......
पर देश में सयानों को कमी कहाँ है एक से एक बढ़कर पटे पड़े हैं ..
अति सुन्दर सार्थक सृजन ...
सच कहा, अपने व्यक्तित्व के गढ्ढे कहाँ दिखते हैं।
ReplyDeletejo bheed ke peechhe bhaagte hein
ReplyDeleteunke saath aisaa hee hotaa hai
dhruv satya
ReplyDeleteवहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है!...
ReplyDeleteसही कहा आपने, बहुत खूब.
सही कहा आपने ....
ReplyDeleteशुभकामनायें !
जब बड़े घंटे बजने लगे तब छोटी घंटियों की आवाज दब जाती है
ReplyDeleteजब घर में सांप घुस आये तब बोलती बंद होते देर नहीं लगती है
वाह भई क्या जबरदस्त बात कही आपने....बहुत अच्छे
बहुत सार्थक लोकोक्तियाँ लिखी हैं ।
ReplyDeleteSACH ...BAHUT SAHI LIKHA HAI AAPNE ,BADHAI:)
ReplyDeleteदूसरों के मामले में समझदार बनना आसान होता है!
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया बात कही है अपने..
नासमझ लोग बाज़ार गए तो घटिया माल भी खूब बिकता है
वहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है!
एकदम सटीक और बेहतरीन सुवाक्य....
बहुत बढ़िया रचना....
waah itani sari uktiyon ko ek sath padhna bhi ruchikar lga .....
ReplyDeleteaabhar...........!!
हकीकत को बयां करता एक करारा व अच्छा व्यंग्य. आभार !
ReplyDeleteरचना का संदेश लाजवाब है।
ReplyDeletebahut accha .
ReplyDeleteबहुत खूब...
ReplyDeleteवहां बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मुर्खता से काम चलता है !
ReplyDeleteएक- एक पंक्ति सार्थक है !
बहुत ही सुंदर
ReplyDeleteअच्छा कहा।
ReplyDeleteबरछी सी तीखी , निशाने पर लगती हुई..
ReplyDeleteनासमझ लोग बाज़ार गए तो घटिया माल भी खूब बिकता है
ReplyDeleteवहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है!
..बहुत खूब!
हर एक पंक्ति सुन्दर और सार्थक .
पूरा का पूरा झक्कास ..
ReplyDeleteलिखा है लाजवाब!!
superb..
ReplyDeleteयह मौका कोई गंवाना नहीं चाहता
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
बहुत सुन्दर लिखा है...हर पंक्ति में एक कशिश भी एक कटाक्ष भी
ReplyDeletebahut badhiya likha hai aapne ...
ReplyDeletehttp://jadibutishop.blogspot.com
सार्थक अभिव्यक्ति...
ReplyDeletewah wah
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!!
ReplyDeleteवहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है! ..
ReplyDeleteऔर अगर वहां बुद्धिमानी दिखाई तो मूर्खों की जमात में बैठा दिए जाओगे :)
बहुत खूब
नासमझ लोग बाज़ार गए तो घटिया माल भी खूब बिकता है.......
ReplyDeleteप्रेरक प्रस्तुति .........
जहाज डूब जाने के बाद हर कोई बचाने का उपाय जानता है
ReplyDeleteअक्सर दूसरों के मामले में समझदार बनना आसान होता है
....बहुत सुंदर और सटीक प्रस्तुति...
वाह सुंदर ☺
ReplyDeleteनासमझ लोग बाज़ार गए तो घटिया माल भी खूब बिकता है
ReplyDeleteवहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है!
PAR UPADESH KUSHAL BAHUTERE.
waah bahut sunder वहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है! ..............sunder satik kataksh
ReplyDeleteसभी वाक्य सुन्दर और शिक्षाप्रद !
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति.....बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeletewah
ReplyDeleteअक्सर दूसरों के मामले में समझदार बनना आसान होता है
ReplyDeleteनासमझ लोग बाज़ार गए तो घटिया माल भी खूब बिकता है.सुन्दर प्रस्तुति.
वहां बुद्दिमानी किस काम की जहां मूर्खता से काम चलता है। वाह! क्या आनंददायक बात कही आपने।
ReplyDeleteवहां बुद्दिमानी किस काम की जहां मूर्खता से काम चलता है।
ReplyDeletewah
bahut khoob likha hai
नासमझ लोग बाज़ार गए तो घटिया माल भी खूब बिकता है
ReplyDeleteवहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है!
सभी वाक्य सुन्दर और शिक्षाप्रद !
अफ़सोस की यह जंगल राज शहर में भी चलता है
ReplyDeleteआप के शब्दों के पीछे जो भाव है वो व्यथित कर देनेवाला भाव है.
ReplyDeleteअपनी गलती का पता लगा लेना बहुत बड़ी समझदारी होती है
ReplyDeleteवक्त को पहचानने के लिए समझदारी की जरुरत पड़ती है
बहुत बहुत सार्थक अभिव्यक्ति....
सादर.
नासमझ लोग बाज़ार गए तो घटिया माल भी खूब बिकता है
ReplyDeleteवहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है!
कविता जी बेहतरीन अभिव्यक्ति...
वहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है!
ReplyDeletevaah prajatantra me ek murkhta karte han (vot nahi dalne ki) phir sari budimani dhari rah jati hai jangal raj ho jata hai. bahut khoob
कोई जंजीर सबसे कमजोर कड़ी से ज्यादा मजबूत नहीं होती है
ReplyDeleteसच कहा आपने
बहुत बहुत धन्यवाद् की आप मेरे ब्लॉग पे पधारे और अपने विचारो से अवगत करवाया बस इसी तरह आते रहिये इस से मुझे उर्जा मिलती रहती है और अपनी कुछ गलतियों का बी पता चलता रहता है
ReplyDeleteदिनेश पारीक
मेरी नई रचना
कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: माँ की वजह से ही है आपका वजूद: एक विधवा माँ ने अपने बेटे को बहुत मुसीबतें उठाकर पाला। दोनों एक-दूसरे को बहुत प्यार करते थे। बड़ा होने पर बेटा एक लड़की को दिल दे बैठा। लाख ...
http://vangaydinesh.blogspot.com/2012/03/blog-post_15.html?spref=bl
नासमझ लोग बाज़ार गए तो घटिया माल भी खूब बिकता है
ReplyDeleteवहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है!
बहुत बढ़िया सार्थक सुंदर रचना,...
bahut khoob.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया,बेहतरीन करारी अच्छी प्रस्तुति,..
ReplyDeleteनवरात्र के ४दिन की आपको बहुत बहुत सुभकामनाये माँ आपके सपनो को साकार करे
आप ने अपना कीमती वकत निकल के मेरे ब्लॉग पे आये इस के लिए तहे दिल से मैं आपका शुकर गुजर हु आपका बहुत बहुत धन्यवाद्
मेरी एक नई मेरा बचपन
कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: मेरा बचपन:
http://vangaydinesh.blogspot.in/2012/03/blog-post_23.html
दिनेश पारीक
" नासमझ लोग बाज़ार गए तो घटिया माल भी खूब बिकता है
ReplyDeleteवहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है! "
या यों कहें :
" कद्र दानों की तबियत का अजब रंग है आज,
बुलबुलों को है यह हसरत कि हम उल्लू न हुए "
उत्तम कविता !
जहाज डूब जाने के बाद हर कोई बचाने का उपाय जानता है
ReplyDeleteअक्सर दूसरों के मामले में समझदार बनना आसान होता है
नासमझ लोग बाज़ार गए तो घटिया माल भी खूब बिकता है
वहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है!
..........
.बहुत खूब!
नासमझ लोग बाज़ार गए तो घटिया माल भी खूब बिकता है
ReplyDeleteवहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है!
बेहतरीन अभिव्यक्ति...
बहुत खूब लिखा है
ReplyDeleteनवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनाएँ|
अति सुन्दर प्रस्तुति। अनुभब व
ReplyDeleteअनुभूति का सुन्दर समन्वय।
बहुत अच्छा सन्देश देती रचना।
धन्यवाद
आनन्द विश्वास
कविता जी
ReplyDeleteनमस्कार.
नासमझ लोग बाज़ार गए तो घटिया माल भी खूब बिकता है
वहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है!
सच्ची... तल्ख़ बात मगर सच यही है.....वाह वाह !!!!
वाह!!
ReplyDeleteविरोधाभाष की विडम्बना!!
सत्ता के सामने कभी सयानापन नहीं चलता है
जिसके हाथ बाजी उसकी बात में दम होता है
जब बड़े घंटे बजने लगे तब छोटी घंटियों की आवाज दब जाती है
ReplyDeleteजब घर में सांप घुस आये तब बोलती बंद होते देर नहीं लगती है
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समय की सही पहचान बताती सार्थक रचना..
अच्छे शब्द संयोजन के साथ सशक्त अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसंजय भास्कर
आदत....मुस्कुराने की
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
पिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...
ReplyDelete....... रचना के लिए बधाई स्वीकारें.
हमारा भी यही हाल है... क्षमा जैसी कोई बात नहीं ...
ReplyDeleteKavita Rawat
बहुत सुंदर । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteजहाज डूब जाने के बाद हर कोई बचाने का उपाय जानता है
ReplyDeleteकथनी और करनी ...
बहुत सुन्दर
नासमझ लोग बाज़ार गए तो घटिया माल भी खूब बिकता है
ReplyDeleteवहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है! ................मजा आ गया .............कोई हमारे ब्लॉग पर भी आ जाए
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
ReplyDeleteइंडिया दर्पण की ओर से शुभकामनाएँ।
sach kaha दूसरों के मामले में समझदार बनना आसान होता है!..bahut khoob
ReplyDeleteसत्ता के सामने कभी सयानापन नहीं चलता है
ReplyDeleteजिसके हाथ बाजी उसकी बात में दम होता है
आजकी बात बहुत सुन्दर धाग से कही है आपने
शत प्रतिशत सच....
ReplyDeleteसच कहा आपने...
ReplyDeleteसटीक बात...सुंदर विचार। गहन चिन्तन के लिए बधाई।
अक्सर दूसरों के मामले में समझदार बनना आसान होता है
ReplyDeleteनासमझ लोग बाज़ार गए तो घटिया माल भी खूब बिकता है
ReplyDeleteवहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है!
खूब कहा आपने...
अपनी गलती का पता लगा लेना बहुत बड़ी समझदारी होती है
ReplyDeleteवक्त को पहचानने के लिए समझदारी की जरुरत पड़ती है
very nice!
"सत्ता के सामने कभी सयानापन नहीं चलता है
ReplyDeleteजिसके हाथ बाजी उसकी बात में दम होता है"
बहुत सही कहा आपने ! जिसकी लाठी उसकी भैंस वाला मंजर ही हर जगह नज़र आता है! सारगर्भित प्रस्तुति !
आपकी सभी प्रस्तुतियां संग्रहणीय हैं। .बेहतरीन पोस्ट .
ReplyDeleteमेरा मनोबल बढ़ाने के लिए के लिए
अपना कीमती समय निकाल कर मेरी नई पोस्ट मेरा नसीब जरुर आये
दिनेश पारीक
http://dineshpareek19.blogspot.in/2012/04/blog-post.html
सचमुच,हम सबके जीवन का यही फलसफा है।
ReplyDeleteसत्ता के सामने कभी सयानापन नहीं चलता है
ReplyDeleteजिसके हाथ बाजी उसकी बात में दम होता है"
बहुत सही
सारगर्भित प्रस्तुति !
नासमझ लोग बाज़ार गए तो घटिया माल भी खूब बिकता है
ReplyDeleteवहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है!
सुंदर...! सारगर्भित...!
बहुत सटीक प्रस्तुति.वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार
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