फायदे अक्सर आदमी को गुलाम बना देते हैं - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
ब्लॉग के माध्यम से मेरा प्रयास है कि मैं अपने विचारों, भावनाओं को अपने पारिवारिक दायित्व निर्वहन के साथ-साथ कुछ सामाजिक दायित्व को समझते हुए सरलतम अभिव्यक्ति के माध्यम से लिपिबद्ध करते हुए अधिकाधिक जनमानस के निकट पहुँच सकूँ। इसके लिए आपके सुझाव, आलोचना, समालोचना आदि का स्वागत है। आप जो भी कहना चाहें बेहिचक लिखें, ताकि मैं अपने प्रयास में बेहत्तर कर सकने की दिशा में निरंतर अग्रसर बनी रह सकूँ|

मंगलवार, 14 अगस्त 2018

फायदे अक्सर आदमी को गुलाम बना देते हैं

सोने की बेड़ियां हों तो भी उसे कौन चाहता है?
स्वतंत्रता स्वर्ण से अधिक मूल्यवान होता है

बंदी  राजा  बनने से आजाद पंछी बनना भला
जेल के मेवे-मिठाई से रूखा-सूखा भोजन भला

स्वतंत्रता का अर्थ खुली छूट नहीं होती है
अत्यधिक स्वतंत्रता सबकुछ चौपट करती है

लोहा हो या रेशम दोनों बंधन एक जैसे होते हैं
फायदे अक्सर आदमी को गुलाम बना देते हैं

13 टिप्‍पणियां:

yashoda Agrawal ने कहा…

सच, सच एकदम सच
सादर

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

बहुत सुंदर |
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें

radha tiwari( radhegopal) ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (15-08-2018) को "स्वतन्त्रता का मन्त्र" (चर्चा अंक-3064) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
स्वतन्त्रतादिवस की पूर्वसंध्या पर
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी

Jyoti Dehliwal ने कहा…

लोहा हो या रेशम दोनों बंधन एक जैसे होते हैं
फायदे अक्सर आदमी को गुलाम बना देते हैं
बहुत सही कहा कविता दी।

Unknown ने कहा…

बंदी राजा बनने से आजाद पंछी बनना भला
जेल के मेवे-मिठाई से रूखा-सूखा भोजन भला...........

सही कहती हैं आप, गुलामी से अच्छा है आजादी से जो कुछ मिले

UK Samaj BM ने कहा…

बहुत सही बात कही हैं

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर

Rohitas Ghorela ने कहा…

उत्तम विचारों की अभिव्यक्ति

Alaknanda Singh ने कहा…

आपकी साइट बहुत अच्‍छी लगी, और रचना तो गजबै हइ कविता जी

व्याकुल पथिक ने कहा…

स्वतंत्रता का अर्थ खुली छूट नहीं होती है
अत्यधिक स्वतंत्रता सबकुछ चौपट करती है

आज जो हालात हैं, उस पर सटीक बैठ रही हैं ये पक्तियां। शिक्षाप्रद रचना हैं।

Gyani Pandit ने कहा…

बहुत सुंदर रचना पहले की 2 पक्तियां काफी अच्छी लगी.

गिरधारी खंकरियाल ने कहा…

सब कुछ बिलकुल सच- सच।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सहमत आपकी बात से ।।।
आज़ादी की सूखी रोटी भी अलग स्वाद देती है ...
आपके हर शेर में ग़ज़ब का अन्दाज़ है ... तीखी और प्रखर बात ...