तम्बाकू ऐसी मोहिनी जिसके लम्बे-चौड़े पात - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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सोमवार, 30 मई 2016

तम्बाकू ऐसी मोहिनी जिसके लम्बे-चौड़े पात




कभी गांव में जब रामलीला होती और उसमें राम वनवास प्रसंग के दौरान केवट और उसके साथी रात में नदी के किनारे ठंड से ठिठुरते हुए आपस में हुक्का गुड़गुड़ाकर बारी-बारी से एक-एक करके-
“ तम्बाकू नहीं हमारे पास भैया कैसे कटेगी रात, 
भैया कैसे कटेगी रात, भैया............ 
तम्बाकू ऐसी मोहिनी जिसके लम्बे-चौड़े पात, 
भैया जिसके लम्बे चौड़े पात....
भैया कैसे कटेगी रात। 
हुक्का करे गुड़-गुड़ चिलम करे चतुराई, 
भैया चिलम करे चतुराई, 
तम्बाकू ऐसा चाहिए भैया 
जिससे रात कट जाई, 
भैया जिससे रात कट जाई" 
सुनाते तो हम बच्चों को बड़ा आनंद आता और हम भी उनके साथ-साथ गुनागुनाते हुए किसी सबक की तरह याद कर लेते। जब कभी हमें शरारत सूझती तो किसी के घर से हुक्का-चिलम उठाकर ले आते और बड़े जोर-जोर से चिल्ला-चिल्ला कर बारी-बारी गाना सुनाया करते। हम बखूबी जानते कि गांव में तम्बाकू और बीड़ी पीना आम बात है और कोई रोकने-टोकने वाला नहीं है। इसलिए हम तब तक हुक्का-चिलम लेकर एक खिलाने की तरह उससे खेलते रहते, जब तक कि कोई बड़ा-सयाना आकर हमसे हुक्का-चिलम छीनकर, डांट-डपटकर वहाँ से भगा नहीं लेता।  डांट-डपट से भी हम बच्चों की शरारत यहीं खत्म नहीं हो जाती। कभी हम सभी अलग-अलग घरों में दबे पांव, लुक-छिपकर घुसते हुए वहाँ पड़ी बीड़ी के छोटे-छोटे अधजले टुकड़े बटोर ले आते और फिर उन्हें एक-एक कर जोड़ते हुए एक लम्बी बीड़ी तैयार कर लेते, फिर उसे माचिस से जलाकर बड़े-सयानों की नकल करते हुए बारी-बारी से कस मारने लगे। यदि कोई बच्चा धुंए से परेशान होकर खूं-खूं कर खांसने लगता तो उसे पारी से बाहर कर देते, वह बेचारा मुंह फुलाकर चुपचाप बैठकर करतब देखता रहता। हमारे लिए यह एक सुलभ खेल था, जिसमें हमें  बारी-बारी से अपनी कला प्रदर्शन का सुनहरा अवसर मिलता। कोई नाक से, कोई आंख से तो कोई आकाश में बादलों के छल्ले बनाकर धुएं-धुएं का खेल खेलकर खुश हो लेते।  
          हमारे देश में आज भी हम बच्चों की तरह ही बहुत से बच्चे इसी तरह बचपन में बीड़ी, हुक्का-चिलम का खेल खेलते हुए बड़े तो हो जाते हैं, लेकिन वे इस मासूम खेल से अपने को दूर नहीं कर पाते हैं। आज गांव और शहर दोनों जगह नशे का कारोबार खूब फल-फूल रहा है। गाँव में भले ही आज हुक्का-चिलम का प्रचलन लगभग खत्म होने की कगार पर है, लेकिन शहरों में बकायदा इसके संरक्षण की तैयारी जोर-शोर से चल रही है, जिसके लिए हुक्का लाउंज खुल गए हैं, जहाँ हमारे नौनिहाल खुलेआम धुआँ-धुएं का खेल खेलकर धुआँ हुए जा रहे हैं। गांव में पहले जहांँ सिर्फ बीड़ी और हुक्का-चिलम पीने वाले हुआ करते थे, वहीं आज वे शहरी रंग में रंगकर गुटखा, सुपारी, पान-मसाला, खैनी, मिश्री, गुल, बज्जर, क्रीमदार तम्बाकू पाउडर, और तम्बाकू युक्त पानी खा-पीकर मस्त हुए जा रहे हैं।
हर वर्ष विश्व तम्बाकू निषेध दिवस आकर गुजर जाता है। इस दौरान विभिन्न  संस्थाएं कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों को तम्बाकू से होने वाली तमाम बीमारियों के बारे में समझाईश देते है, जिसे कुछ लोग उस समय गंभीर होकर छोड़ने की कसमें खा भी लेते है, लेकिन कुछ लोग हर फिक्र को धुंए में उड़ाने की बात कहकर उल्टा ज्ञान बघार कर- “कुछ नहीं होता है भैया, हम तो वर्षों से खाते आ रहे हैं, एक दिन तो सबको ही मरना ही है, अब चाहे ऐसे मरे या वैसे, क्या फर्क पड़ता है“  हवा निकाल देते हैं। कुछ ज्ञानी-ध्यानी ज्यादा पढ़े-लिखे लोग तो दो कदम आगे बढ़कर “सकल पदारथ एही जग माही, कर्महीन नर पावत नाही“ कहते हुए खाने-पीने वालों को श्रेष्ठ और इन चीजों से दूर रहने वालो को कर्महीन नर घोषित करने में पीछे नहीं रहते। उनका मानना है कि-
बीडी-सिगरेट, दारू, गुटका-पान 
आज इससे बढ़ता मान-सम्मान 
 दाल-रोटी की चिंता बाद में करना भैया 
 पहले रखना इनका पूरा ध्यान! 
मल-मल कर गुटका मुंह में डालकर 
 हुए हम चिंता मुक्त हाथ झाड़कर 
 जब सर्वसुलभ वस्तु अनमोल बनी यह 
 फिर क्यों छोड़े? क्या घर, क्या दफ्तर!        
          एक दिन विश्व तम्बाकू निषेध दिवस पर ही नहीं बल्कि इस बुरी लत को जड़मूल से नष्ट करने के अभियान में सबको हर दिन अपने आस पड़ोस, घर-दफ्तर और गांव-शहर से दूर भगाने के लिए संकल्पित होना होगा और ईश्वर ने हमें जो निःशुल्क उपहार दिए हैं- स्वस्थ शरीर, पौष्टिक भोजन, स्वच्छ हवा, निर्मल जल, उर्वरा शक्ति संपन्न भूमि व विविध वनस्पतियां, जीव-जन्तु व मानसिक बौद्धिक क्षमता जिनसे हमें  निरन्तर आगे बढ़ने को प्रेरणा मिलती हैं, उसे सुरक्षित, संरक्षित कर अपनाना होगा।

...कविता रावत 





        
     

15 टिप्‍पणियां:

गिरधारी खंकरियाल ने कहा…

वास्तव मे तम्बाकू का सेवन नितान्त हानिकारक है।

kuldeep thakur ने कहा…

जय मां हाटेशवरी...
अनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 31/05/2016 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।

RAJ ने कहा…

तम्बाकू नहीं हमारे पास भैया कैसे कटेगी रात.....यह भी एक संस्कृति है गांव में ..

हाल बुरा है दिन भी तम्बाकू से और रात में ..कोई मल मल कर कोई फूंक फूंक कर उड़े जा रहे है धुएं में बेफिक्र ..

Madhulika Patel ने कहा…

जी बहुत सार्थक पोस्ट है । इन नशे की चीजो पर पाबन्दी लगाना बहुत जरुरी है ।

sameer ने कहा…

अब RS 50,000/महीना कमायें
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आइये Digital India से जुड़िये..... और घर बैठे लाखों कमाये....... और दूसरे को भी कमाने का मौका दीजिए... कोई इनवेस्टमेन्ट नहीं है...... आईये बेरोजगारी को भारत से उखाड़ फैंकने मे हमारी मदद कीजिये.... 🏻 🏻 बस आप इस whatsApp no 8017025376 पर " INFO " लिख कर send की karo or

बेनामी ने कहा…

निहायत सूंदर - सार्थक और प्रेरक प्रस्तुति

Unknown ने कहा…

super post...

Jyoti Dehliwal ने कहा…

बुरी आदतो को छोड़ना बहुत ही मुश्किल होता है। बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

Jyoti Dehliwal ने कहा…

बुरी आदतो को छोड़ना बहुत ही मुश्किल होता है। बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

राजीव कुमार झा ने कहा…

बहुत सुंदर प्रस्तुति.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत ही विस्तार से आपने तम्बाकू के नुक्सान और रोचक तरीके से इस पोस्ट को तैयार किया है ... ये सच है की बुरी आदतें मुश्किल से जाती हैं पर कोशिश हो तो छुटकारा संभव है ...

Manoj Kumar ने कहा…

बहुत सार्थक पोस्ट है । इन नशे की चीजो पर पाबन्दी लगाना बहुत जरुरी है
बहुत बहुत बधाई !

ईमेल वायरस से रहे सावधान !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (03-06-2016) को "दो जून की रोटी" (चर्चा अंक-2362) (चर्चा अंक-2356) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Asha Joglekar ने कहा…

Bahut sateek aur samayik post

Dr.Dayaram Aalok ने कहा…

सार्थक पोस्ट