नाते रिश्ते इसके पीछे
सबके आगे रहता पैसा
खूब हंसाता खूब रूलाता
सबको नाच नचाता पैसा
अपने इससे दूर हो जाते
दूजे इसके पास आ जाते
दूर पास का खेल ये कैसा
सबको नाच नचाता पैसा
बना काम खुश होकर लौटे
ओढ़ी चादर सो गए तनकर
काम बिगाड़ा पैसा देकर
देख हाल ये उड़ गई निंदिया
खाना-पीना हुआ हराम
पकड के सर हम सोचते रह गए
किसने काम बिगाड़ा ऐसा
तेरा पैसा मेरा पैसा
खूब हंसाता खूब रूलाता
सबको नाच नचाता पैसा
काम धाम सब छोडके अपना
भाया क्रिकेट मैच सुहाना
पडते देखा चौका-छक्का
लगा बैठे फिर उस पर सटटा
जैसे किसी ने पासा पलटा
चौका-छक्काा पड गया उल्टा
बैठे-ठाले सोच में डूबे
कौन ये खेला कर गया ऐसा
तेरा पैसा मेरा पैसा
खूब हंसाता खूब रूलाता
सबको नाच नचाता पैसा
9 टिप्पणियां:
सुंदर सृजन। सही कहा आजकल सबको नाच ही नचा रहा है पैसा। नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें ... बहुत खूब लिखा कविता जी...शानदार रचना
नए वर्ष के लिए आपको भी बहुत बहुत शुभकामनाएँ!
Happy New Year
आपकी कविता की सच्चाई में कोई संदेह नहीं
बहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना
वाकई सबको नाच नचाता पैसा ।
बहुत लाजवाब ।
पैसे की महिमा विशाल ...
इसका विस्तार विशाल ... बाखूबी बयाँ की है दास्तान आपने पैसे की ...
जीवन की सच्ची लाईन बहुत ही सरल तरीके से अपने बया कर दिया
एक टिप्पणी भेजें