पहले तो सुबह-सुबह ठंड के बावजूद बच्चों के उत्साह को देखकर सारी ठंड जाती रही फिर जैसे ही स्कूल के बाहरी द्वार से स्कूल प्रांगण में दाखिल हुए तो सुन्दर बहुरंगी छोटी-छोटी छतरियों से सजी स्कूल बिल्डिंग देखकर मन खुशी से प्रफुल्लित हो उठा। मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही भारत माता का फूलों से सजाया मानचित्र जिसके चारों ओर छोटे-छोटे प्रज्ज्वलित जगमगाते दीपक हमारी सृष्टि के आदि से चली आ रही गरिमामयी सांस्कृतिक एकता की विशेषता का बखान करते दिखे तो मन रोशन हो उठा। सोचने लगी इसी विशेषता के चलते हमारी संस्कृति विश्व प्रांगण में उन्नत मस्तक किए हैं। रोम हो या मिश्र या बेवीलोनिया या फिर यूनान की संस्कृतियाँ, ये सभी काल के कराल थपेड़ों से नष्ट हो गईं, लेकिन हमारी संस्कृति काल के अनेक थेपेड़े खाकर भी आज भी अपने आदि स्वरूप में जीवित है। इस संबंध में इकबाल की पंक्तियाँ याद आयी कि- “कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।"
स्कूल की कक्षाओं में तीन विंग में प्रदर्शनी विभक्त थी। जिसमें के.जी.विंग, प्रायमरी विंग और सेकेण्डरी विंग के अंतर्गत लगभग 2000 से अधिक माडल सजाये गए थे। इन माडलों का छोटी कक्षा से लेकर बड़ी कक्षाओं के छात्रों द्वारा बड़ी कुशलता से अपनी भरपूर ऊर्जा शक्ति से मंत्रमुग्ध कर देने वाली मोहक प्रस्तुती देखना बड़ा रोमांचकारी लगा। के.जी.विंग के छोटे-छोटे नन्हें-मुन्ने बच्चों द्वारा उनकी शिक्षकों की मदद् से बनाये गए सुन्दर-सुन्दर छोटे-छोटे मिट्टी के बर्तन, खिलौनों में उन्हीं की तरह मासूम झलक देखने को मिली तो साथ ही उनका मनमोहक फैशन परेड और सुकोमल मधुर हँसती-मुस्कुराती भोली अदा में नृत्य देखना अविस्मरणीय रहा।
प्रायमरी विंग के अंतर्गत पहली कक्षा के छात्रों का बनाया ‘अतुल्य भारत’ देशप्रेम को भावना को जाग्रत कर मन में उमंग भर रहा था। दूसरी कक्षा के छात्रों का विभिन्न क्षेत्रों में सर्विस मॉडल जिसमें पायलट, एयर हास्टेज, फैशन शो और शैफ का शानदार प्रदर्शन देखते ही बनता था। तीसरे कक्षा के छात्रों का हार्वेस्ट फेस्टीवल का धूम-धमाल मन को खूब रास आया। चौथी -पांचवी कक्षा के छात्रों का स्वास्थ्य संबंधी माडल जिसमें आजकल की बिगड़ती खानपान शैली के प्रति सावधान करते हुए स्वस्थ रहने के लिए नसीहत देते स्लोगन जैसे- ‘पेट के दुश्मन हैं तीन, पिज्जा, बर्गर और चाउमिन’, रहना है अगर डाक्टर से दूर, फल-सब्जी रोज खाओ हुजूर’ मोटापा है गर घटाना, गाजर-मूली ज्यादा खाना’ ‘बनना है अगर जीनियस, फल-सब्जी को लेकर रहो सीरियस’ दर्शकों को अपने शरीर को स्वस्थ रखने का संदेश दे रहे थे। कक्षा 6 से 9 तक के छात्रों का दीवाली, ईद और क्रिममस जैसे धार्मिक त्यौहारों के माडल और सांस्कृतिक झलकियों के प्रस्तुतीकरण ने अनोखी छठा बिखेरते हुए दर्शकों का ध्यान अपनी ओर आकृषित कर अपने रंग में खूब रंगाया। कक्षा 6वीं के छात्राओं द्वारा बनाया स्पाई कार मॉडल भी बड़ा ही रोमांचकारी और अद्भुत था। इसके साथ ही संस्कृत भाषा के माडल और प्रस्तुतीकरण सबको ऋषि-मुनि, आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति, जड़ी-बूटियां और जंतुशाला की झलक दिखलाते हुए हमारे प्राचीन महत्व को जीवंत किए हुए विराजमान थे।
सेकेण्डरी विंग के छात्रों का अपने विषय के अनुरूप विभिन्न मॉडल उनकी रचनात्मकता को प्रदर्शित कर रहे थे। जहाँ एक ओर मैथ्स के छात्रों का अपने विषयानुकूल क्रिप्टोग्राफी, वैदिक गणित, ज्यामिती, त्रिकोणमितीय, पहेलियों और गेम्स के विभिन्न मॉडल विशेषता बता रहे थे। वहीं दूसरी ओर कामर्स के छात्रों द्वारा ’बैंकिंग सिस्टम, उपभोक्ता अधिकार, बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, विज्ञापन आदि के आकर्षित मॉडल देखने को मिले। साइंस के छात्रों के विभिन्न मॉडल दिमाग की सारी खिड़कियां खोलकर धूम मचा रहे थे। एक ओर विंडमिल, साइकिलिंग इलेक्ट्रिसिटी, ट्रैफिक सिग्नल, ह्यूमन जनरेटर, केपलर्स स्पेस टेलीस्कोप तैयार था तो दूसरी ओर जियो थर्मल इनर्जी और रोबोटिक कार, मैग्नेटिक कार की उत्सुकता से विशेषता बताते छात्रों को सुनना और उनके माडल्स देखना किसी अजूबे से कम न था।
विविध मॉडल में नेपकिन होल्डर, बाल हैंगिंग, पेन होल्डर, डोर हैंगिंग, ड्राय फूड बाक्स, वर्ड हाउस और टिश्यू पेपर से बने उपहार स्वरूप दिए जाने वाले सुन्दर और आकर्षक गुलदस्ते सबका ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करने में किसी से पीछे नहीं थे।
लगभग चार घंटे तक प्रदर्शनी देखने के बाद भी हमारा मन नहीं भरा; उसकी तमन्ना थी और दखेने की, लेकिन जैसे ही सुबह 8 बजे से दोपहर 1 बजे तक अपनी कक्षा के माडल प्रदर्शन में जुते बच्चों की छुट्टी हुई तो फिर हमारी एक न चली। बच्चों को साथ लेकर जैसे ही थोड़ी देर और प्रदर्शनी देखने निकले ही थे कि प्रदर्शनी में उन्हें स्वादिष्ट व्यंजनों की झलक दिखी नहीं कि वे झट से अपना पेट पकड़ते हुए बाहर लगे स्टॉल की ओर इशारा करते हुए हमारा हाथ खींचकर बाहर ले आये। जब बच्चों को उनकी मनपंसद का खिला-पिला दिया तो उनके थके-हारे मासूम चेहरों पर रंगत लौट आयी। सच में बच्चों के साथ उनके मेलों में उनके साथ बच्चे बनकर जाने का अर्थ है -बच्चों में जिम्मेदारी की भावना का विकास। व्यस्त जिंदगी में थोडा सा समय बड़ा निवेश है।
.... कविता रावत
30 टिप्पणियां:
सुंदर प्रस्तुति...
नियमित विद्यालयचर्या से विलग रोचक क्रियाशीलता।
आदरणीय बहुत ही सुंदर प्रस्तुति के साथ , बच्चों के संग बातें शेयर की हैं आपने , धन्यवाद
बीता प्रकाशन -: घरेलू उपचार ( नुस्खे ) भाग - ६
नया प्रकाशन -: कंप्यूटर है ! - तो ये मालूम ही होगा -भाग - १
बहुत अच्छा लगा ये एग्जिबिशन के चित्र देखकर ...... :)
बहुत सुंदर
प्रोजेक्ट प्रदर्शनी बहुत सुन्दर है !
नई पोस्ट चाँदनी रात
नई पोस्ट मेरे सपनों का रामराज्य ( भाग २ )
बच्चों की रंगबिरंगी झाकियां बचपन के दिनों को ताज़ा कर रही हैं ... भारत माता के चित्र तो बहुत ही आकर्षित हैं ... शुभकामनाएं हैं मेरी बच्चों को ...
क्या बात वाह! बहुत ख़ूब!
अरे! मैं कैसे नहीं हूँ ख़ास?
बच्चों की क्रिएटिविटी की बहुत सुन्दर-सुन्दर झलकियां ........
देखकर मन आनंदित हो उठा !!!!
प्रोजेक्ट प्रदर्शनी का इतना सुन्दर रोचक प्रदर्शन देखकर हम भी स्कूल के रंग में खो गए थे कुछ देर के लिए .....बहुत ख़ूब!!
कार्यक्रम की बहुत ही अच्छी झलक।
सादर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (25-12-13) को "सेंटा क्लॉज है लगता प्यारा" (चर्चा मंच : अंक-1472) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर झलकियाँ।।
:-)
चित्रों के साथ सुंदर प्रस्तुति...!
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RECENT POST -: हम पंछी थे एक डाल के.
bahut rochak lekh .. mujhe bharat ka map wala photo bahut sundar laga .
MAN PRAFULLIT HO GAYA KAVITA JI .BAHUT SUNDAR CHITRMAYI PRASTUTI .
सुंदर झांकियां .... मनमोहक
आजकल विद्यालयों में रचनात्मकता का विशेष ध्यान रखा जाता है।
वाह !वाह ! सुन्दर झांकियां। सुन्दर सर्व -समावेशी प्रदर्शनी
फिर जैसे ही स्कूल के बाहरी द्वारा से स्कूल प्रांगण में दाखिल हुए तो सुन्दर बहुरंगी छोटी-छोटी छतरियों से सजी स्कूल बिल्डिंग देखकर मन खुशी से प्रफुल्लित हो उठा। मुख्य द्वारा से प्रवेश करते ही भारत माता का फूलों से सजाया मानचित्र जिसके चारों ओर छोटे-छोटे प्रज्ज्वलित जगमगाते दीपक हमारी सृष्टि के आदि से चली आ रही गरिमामयी सांस्कृतिक एकता की विशेषता का बखान करते दिखे तो मन रोशन हो उठा। सोचने लगी इसी विशेषता के चलते हमारी संस्कृति विश्व प्रांगण में उन्नत मस्तक किए हैं। रोम हो या मिश्र या बेवीलोनिया या फिर यूनान की संस्कृतियाँ, ये सभी काल के कराल थपेड़ों से नष्ट हो गईं, लेकिन हमारी संस्कृति काल के अनेक थेपेड़े खाकर भी आज भी अपने आदि स्वरूप में जीवित है। इस संबंध में इकबाल की पंक्तियाँ याद आयी कि- “कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।"
यूनान मिश्र रोमा सब मिट गए जहां से ,
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।
कल 26/12/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद!
ऐसा ही सुखद आभास मुझे तब हुआ जब मैं अभी हाल ही में आयोजित बच्चों के सेंट जोसफ को-एड स्कूल में आयोजित विज्ञान और क्राफ्ट प्रदर्शनी देखने पहुँची।
पहले तो सुबह सुबह-सुबह ठंड के बावजूद बच्चों के उत्साह को देखकर सारी ठंड जाती रही फिर जैसे ही स्कूल के बाहरी द्वारा से स्कूल प्रांगण में दाखिल हुए तो सुन्दर बहुरंगी छोटी-छोटी छतरियों से सजी स्कूल बिल्डिंग देखकर मन खुशी से प्रफुल्लित हो उठा।
......... जब बच्चों की बात आती हैं तो फिर सब ठण्ड वंड कहाँ लगती है ................ उनका काम पहले करना ही पड़ता है ..नहीं तो नाराज हुए तो खैर नहीं अपनी ...
.........बहुत-बहुत-.बहुत सुन्दर ..
हैप्पी क्रिसमस
सुंदर विवरण
तभी तो बच्चों को भविष्य का निर्माता कहा जाता है.. भगवान करे ये सारे रंग उनके जीवन में भर जायें और ये सभी अपने सुन्दर भविष्य के बेहतर मॉडेल बनायें!!
अच्छी व्यंग्यात्मक प्रस्तुति है !
पेट के दुश्मन हैं तीन
पिज्जा, बर्गर और चाउमिन’
अरे ये तो आजकल के बच्चों का फेब्रेट है
मेरा तो फ़ोटो देखकर खाने का बहुत मन कर रहा है ...
अच्छा संदेश दिया है ...
बहुत बढिया...सुन्दर प्रस्तुति है !
कविता बहन शुक्रिया आपकी टिपण्णी का। बहुत स्तरीय रिपोर्ताज़ प्रस्तुत किया है आपने।
बढिया...सुन्दर प्रस्तुति है !
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