कुछ शर्माती कुछ सकुचाती
आती बाहर जब वो नहाकर
मन ही मन कुछ कहती
उलझे बालों को सुलझाकर
पट-पट-पट,झटक-झटककर
बूंदें गिरतीं बालों से पल-पल
दिखतीं ये मोती सी मुझको
या ज्यों झरता झरने का जल
तिरछी नजर घुमाती वो
अधरों पर मदिर मुस्कान लिए
कभी एकटक निहारती
पलकों को जैसे आराम दिए
हँसमुख चेहरा लुभाता उसका
सूरत दिखती भली-भली
कभी लगती खिली फूल सी
कभी दिखती कच्ची कली
महकता उपवन यौवन उसका
नाजुक डली सुमधुर मिश्री
वो वसंत की चितचोर डाली
मैं पतझड़ सी बिखरी बिखरी!
.......कविता रावत
आती बाहर जब वो नहाकर
उलझे बालों को सुलझाकर
पट-पट-पट,झटक-झटककर
बूंदें गिरतीं बालों से पल-पल
दिखतीं ये मोती सी मुझको
या ज्यों झरता झरने का जल
तिरछी नजर घुमाती वो
अधरों पर मदिर मुस्कान लिए
कभी एकटक निहारती
पलकों को जैसे आराम दिए
हँसमुख चेहरा लुभाता उसका
सूरत दिखती भली-भली
कभी लगती खिली फूल सी
कभी दिखती कच्ची कली
महकता उपवन यौवन उसका
नाजुक डली सुमधुर मिश्री
वो वसंत की चितचोर डाली
मैं पतझड़ सी बिखरी बिखरी!
.......कविता रावत
...सुन्दर रचना!!!
ReplyDeletebahut hi behtareen rachna.....
ReplyDeleteachha warnan....
yun hi likhte rahein..
regards...
meri nayi kavita bhi jaroor padhein...
वाह !!....बसंत को बहुत ख़ूबसूरती और चंचलता के साथ आपने पेश किया है .........बहुत ही लाजवाब रचना .
ReplyDeleteपट-पट-पट,झटक-झटककर
ReplyDeleteबूंदें गिरतीं बालों से पल-पल
वाह बसंत का मानवीकरण आपने बहुत सुन्दरता से किया है
बहुत सुन्दर
बहुत उम्दा!
ReplyDeleteखूबसूरत रचना
ReplyDeleteहमेशा की तरह आपकी रचना जानदार और शानदार है।
ReplyDelete...उम्दा.."
ReplyDeleteतिरछी नजर घुमाती वो
ReplyDeleteअधरों पर मदिर मुस्कान लिए
कभी एकटक निहारती
पलकों को जैसे आराम दिए
बहुत सुन्दर रचना कविता जी , एक बात और कहूंगा कि जिस पेड़ का चित्र आपने साथ में लगाया उस पर लगे फलों को देख मुह में पानी आ गया ! खटाई बहुत प्रिय डिश हुआ करती थी कभी सर्दियों की दोपहर की !
बहुत ही ख़ूबसूरत, रचना
ReplyDeleteकविता जी मन प्रसन्न हुआ। एक सुझाव है। अगर हर चार पंक्तियों के बीच आप एक एंटर स्पेश दे देंती तो रचना पढ़ने में और आनंद आता। क्योंकि कविता की चार-चार पंक्तियां अपने आप में संपूर्ण हैं। बधाई।
ReplyDeletewo basant ki chitchor daali............:)
ReplyDeleteKavita jee.......aapne to apne andar male figure ko feel karke badi pyari baat kah daali........hai na!!
Kash!! aise soch ham me bhi aata........:P
bahut khubsurat........bahut pyari
RACHNA!!
कमाल है कविता जी...क्षमा चाहूँगा ..शुरूआती पंक्तियों को पढकर लगा जैसे किसी पुरुष के मुख से सद्यःस्नाता स्त्री का वर्णन है... बहुत खूब..
ReplyDeleteवो वसंत की चितचोर डाली
ReplyDeleteमैं पतझड़ सी बिखरी बिखरी!
बहुत सुन्दर प्रकृति-चित्रण. सुन्दर रचना
उत्तम अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteखूबसूरत शब्दों से संजोयी खूबसूरत रचना.... खूबसूरती से दिल को छू गई....
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
वसंत का बहुत खूबसूरत वर्णन ...मगर वसंत में पतझड़ का क्या काम ...झूम लीजिये वसंत के संग में ...पतझड़ भी सावन हो जाएगा ...!!
ReplyDeleteहँसमुख चेहरा लुभाता उसका
ReplyDeleteसूरत दिखती भली-भली
कभी लगती खिली फूल सी
कभी दिखती कच्ची कली
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ! बढ़िया रचना !
वो वसंत की चितचोर डाली
ReplyDeleteमैं पतझड़ सी बिखरी बिखरी!
क्यूँ खुद को भी ऐसा ही बना डालिए - सुंदर रचना के लिए बधाई
bahut sundar kavita .
ReplyDeleteवाह क्या रचना प्रस्तुत की आपने..सुंदर भावपूर्ण और लयबद्ध वाकी बहुत सुन्दर रचना है बसंत का सजीव वर्णन ..आभार
ReplyDeleteपट-पट-पट,झटक-झटककर
ReplyDeleteबूंदें गिरतीं बालों से पल-पल
दिखतीं ये मोती सी मुझको
या ज्यों झरता झरने का जल
Sundar bhaav .. lay liye .. basant ka jeeta jaagta varnan kiya hai aapne ... bahut madhur rachna ..
बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने लाजवाब रचना लिखा है जो प्रशंग्सनीय है!
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत प्रस्तुति।
ReplyDeletekavi kee kalam basant kee daali kisi heer se kam nahin
ReplyDeleteगर्मी के मौसम मे बसंत की कविता पढ़कर अच्छा लगा
ReplyDeleteaapne mere blog gaurtalab par aakar mera hausla badhaya..Shukriya!
ReplyDeletemain jab aapki rachnaye padhata hoon to mujhe apni sachayi ka ehsas ho jaaa hai..jaise "sagar mein gagar"
हाय गजबे हो आंटी !!
ReplyDeleteaur haan mere blog par...
ReplyDeleteतुम आओ तो चिराग रौशन हों.......
regards
http://i555.blogspot.com/
कुछ शर्माती कुछ सकुचाती
ReplyDeleteआती बाहर जब वो नहाकर
मन ही मन कुछ कहती
उलझे बालों को सुलझाकर
वाह....!
छंदबद्ध सुंदर शब्द बंधन .....!!
लाजवाब पेशकश!
ReplyDeleteवाह वाह वाह !!!
sarachnayen sachmuch utkrist hain.
ReplyDeleteAAP PRERNA KI DEVI HO PARNAAM
ReplyDeleteजन्हा एक ओर बाढ़ से लोग परेशान हैं
ReplyDeleteवन्ही बसंत के आगमन का मधुर सन्देश
मन को सुकून पंहुचाता है. |