लोकरंग में झलकता मेरे शहर का वसंत - Kavita Rawat Blog, Kahani, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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रविवार, 12 फ़रवरी 2012

लोकरंग में झलकता मेरे शहर का वसंत

पहले २६ जनवरी यानी गणतंत्र दिवस का दिन करीब आता तो मन राजधानी दिल्ली के 'इंडिया गेट' के इर्द-गिर्द मंडराने लगता था। तब घरतंत्र से दो चार नहीं हुए थे। बेफिक्री से घूम-फिरने में एक अलग ही आनंद था। २६ जनवरी की गहमागहमी देखने इंडिया गेट के आस-पास रहने वाले किसी करीबी नाते-रिश्तेदार के यहां १-२ दिन पहले ही आ धमकते। घर परिवार और फिर गाँव से लेकर देश-विदेश में रह रहे अपने पराये सबकी खैर-खबर का जो क्रम चल पड़ता तो कब आधी रात बीत जाती पता ही नहीं चलता। २६ जनवरी के दिन तो घुप्‍प अंधियारे में ही कडकडाती ठण्ड से बेखबर दल-बल के साथ इंडिया गेट की ओर कूच कर जाते थे। वहां अग्रिम पंक्ति में पड़ाव डालकर समारोह को आदि से अंत तक बिना टस से मस हुए देखकर ही उठते। रास्ते भर चर्चाओं का दौर चलता। घर पहुँचते ही मोहल्ले भर को भी आँखों देखा हाल सुनाकर ही दम लेते। अब तो जब से घरतंत्र सँभाला है , जिंदगी की आपाधापी के बीच टेलीविजन पर ही घर-परिवार के लिए चाय-नाश्ते की तैयारी के बीच-बीच में झलकियाँ देखकर ही तसल्ली करने के आदी हो चुके हैं।
इस बार तो २६ जनवरी के साथ ही वसंत ऋतु का प्रथम उत्सव वसंत पंचमी भी निकल गयी। भला हो घर के बगीचे की छोटी सी क्यारी में खिली वासंती फूलों से लदी सरसों का! वसंत के आगमन की सूचना मुझ तक उसने ही पहुँचाई । गाँव में वसंत की सूचना तो प्रकृति के माध्यम से सहज रूप से मिल जाती हैं लेकिन शहर में वसंत को तलाशना कतई आसान काम नहीं है। इसी वासंती रंग की तलाश में मैं २६ जनवरी से १ फरवरी तक लोकसंस्कृति संरक्षक रवीन्द्र भवन में लगने वाले लोकरंग की प्रस्तुतियां देखने पहुंची। वहां मधुबनी पेंटिंग से भगवान राम और सीता के विवाह के दृश्यों से सजे मंच पर थिरकते लोक कलाकारों की मोहक प्रस्तुतियां देख विश्वास हो चला कि शहर में भी वसंत का आगमन हो चुका है। विभिन्न राज्यों के लोक कलाकारों,विदेशी नृत्य प्रस्तुतियों और बेटियों के सर्जना के कला संसार में मन यूँ डूबा कि हर शाम कदम बरबस रवीन्‍द्र भवन की ओर खिंचे चले जाते। रंग-बिरंगे परिधानों से सजे लोक कलाकारों की सधी प्रस्तुतियां में डूबा मन कविवर बिहारी के वासंती दोहे जैसा दिखने लगता-
"छबि रसाल सौरभ सने, मधुर माधवी गन्ध
ठौर-ठौर झूमत झपट, झौंर-झौंर मधु अन्ध ।।"
     
लोकरंग में प्रदेश के विभिन्न अंचलों के खास व्यंजनों का लुत्फ़ उठाते हुए विशिष्ट हस्तशिल्प और मूर्ति कलाकृतियाँ देखते ही बनती थी। पुतली प्रदर्शनी और कार्यशाला के अंतर्गत विभिन्न प्रकार की मनमोहक गुड़ियाँ देखकर बचपन के वे दिन याद आने लगे जब इनसे तरह-तरह के खेल खेला करते थे। तब शुद्ध मनोरंजन के साथ शिक्षा,स्वास्थ्य के लिए जागरूक कराते पुतली नृत्य देखने की बात ही निराली थी। अब तो आधुनिकता की चपेट में आकर यह कला लुप्तप्राय: सी हो चली है। अपनी पारंपरिक लोकसंस्कृति से सबका दिल जीतने वाले इन नृत्यों, गीतों को देख सुनकर, यह महसूस ही नहीं होता है कि जातिदंश की पीड़ा या श्रम विशेष में व्याप्त शोषण, उत्पीडन, घोर कष्ट भरे यातनामय जीवनचर्या जीते लोगों की अभिव्यक्ति इतनी सुन्दर स्वस्थ भी हो सकती है, जो आज भी थके हारे मन को तरोताजगी से भरने में आधुनिक मनोरंजन के साधनों से कहीं भी उन्‍नीस नहीं है।

   ...कविता रावत

57 टिप्‍पणियां:

  1. लोक के रंग,कविता के संग। अच्‍छा उदाहरण है खुद के परिवेश से जोड़ने का।

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  2. अपनी पारंपरिक लोकसंस्कृति से सबका दिल जीतने वाले इन नृत्यों, गीतों को देख सुनकर, यह महसूस ही नहीं होता है कि जातिदंश की पीड़ा या श्रम विशेष में व्याप्त शोषण, उत्पीडन, घोर कष्ट भरे यातनामय जीवनचर्या जीते लोगों की अभिव्यक्ति इतनी सुन्दर स्वस्थ भी हो सकती है, जो आज भी थके हारे मन को तरोताजगी से भरने में आधुनिक मनोरंजन के साधनों से कहीं भी उन्‍नीस नहीं है।
    .....बिलकुल सही कहा आपने ...शहर की भौतिकवादी संस्कृति और मनोरंजन के आधुनिक साधनों के बावजूद लोकसंस्कृति हम शहरवासियों के मनोरंजन के साथ कितनी सीख देती हैं यह इनकी कला देखने के बाद ही समझ आती हैं..
    सुन्दर प्रेरक पोस्ट....आभार !

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  3. बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

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  4. Bahut sundar,sansmaranatmak aalekh!Bada achha laga padhke!

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  5. प्रशंसनीय.......
    सुन्दर........
    और प्रेरक.......

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  6. कुछ दिन ऐसे बचे हैं लोक संस्कृति में झाँकने के. सुंदर शब्दों में आपने २६ जनवरी के उत्सव का वर्णन किया है. बधाई.

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  7. रंग-बिरंगे परिधानों से सजे लोक कलाकारों की सधी प्रस्तुतियां में डूबा मन कविवर बिहारी के वासंती दोहे जैसा दिखने लगता-
    "छबि रसाल सौरभ सने, मधुर माधवी गंघ।
    ठौर-ठौर झूमत झपट, झौंर-झौंर मधु अन्ध ।।"
    ....बसंत ऋतू में यह सुन्दर दोहा पढ़कर मन बसंत हो चला.
    शहर में बसंत कैलेंडर और समाचार पत्रों से ही सबसे पहले पता चलता है ...गाँव में बसंत की बात तो निराली है ..भोपाल में २६ जनवरी से लगने वाला लोकरंग हमें भी बहुत भाता है...लोकरंग की सुन्दर तस्वीर के साथ सुन्दर वर्णन पढ़कर मन प्रसन्नता से भर गया...

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    1. आपकी क्यारियों में सरसों के पीले फूलों ने सही आपको बसंत आगमन की सूचना तो दे ही दी कविता जी ! गाँव में होती तो फ्यूंली के फूल जगह जगह आपका स्वागत करते और डाडों में बुरांस के झक लाल फूल...... खैर.
      अपने ब्लॉग पर एक नयी पोस्ट लगाई है जो शायद आपको मायके की खुद बिसरा सकेगी. या और भी बडुली लगेगी.
      शुभकामनाओं सहित.

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  8. सृजन, सर्जक और दर्शक दोनों के लिए सुखद होता है.

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  9. बहुत अच्छी पोस्ट...सुंदर शब्दों में वर्णित|

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  10. सुन्दर संस्मरणात्मक आलेख....
    सादर बधाई...

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  11. बहुत सुन्दर संस्मरण.. प्रेरक आलेख..

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  12. लोकजीवन में उल्लास की हर कड़ी निराली है।

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  13. बेनामी16:49

    बहुत ही प्रशंसनीय और प्रेरक आलेख ......
    वसंत का सुन्दर चित्रण ...

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  14. nice post...
    thanks & welcome to my blog

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  15. सजीव, समृति . सुन्दर आलेख.

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  16. बहुत सुन्दर संस्मरण|

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  17. वाकई....
    और आखरी दिन दलेर मेहदी जी की आवाज़ में सूफी गायन लोक रंग की सुन्दर समाप्ति भी मन मोह गयी..

    अच्छा लगा आपकी लेखनी से लोकरंग का रंग..
    सादर.

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  18. बहुत अच्छी रचना। बधाई।

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  19. अच्‍छी पोस्‍ट।

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  20. यर्थाथ का चित्रण। सादर।

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  21. लोकरंग को निहारना अच्छा लगा।

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  22. लोकरंग की सुंदर झांकी .....प्रशंसनीय प्रस्तुति....

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  23. लोकरंग की अनुपम प्रस्‍तुति... आभार ।

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  24. बसंत के आगमन पर लोकरंग से रंगी अच्छी पोस्ट

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  25. बहुत अच्छी सुंदर शब्दों में वर्णित लोकरंग!

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  26. बहुत अच्छी सुंदर शब्दों में वर्णित लोकरंग!

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  27. एक साथ इतने सारे रंग...कित्ता अच्छा लगता है ये लोकरंग.
    _____________

    'पाखी की दुनिया' में जरुर मिलिएगा 'अपूर्वा' से..

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  28. संयमित सुखद आलेख रुचिकर व विचारशील भी ....सुन्दर प्रयास .../

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  29. २६ जनवरी , बसंत और लोकरंग --बहुत अद्भुत मेल है एक सीजन में ।
    अच्छे संस्मरण ।

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  30. माटी की महक से सराबोर होने के कारण ही ये सीधे दिल तक पहुँचते हैं.

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  31. आपके आलेख दिल से निकलते हैं और लोकरंगों की छटा के वर्णन के तो क्या कहने!!

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  32. बहुत उम्दा संस्मरण!!

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  33. बेनामी16:01

    सुन्दर पोस्ट .....
    सुन्दर लोकरंग की झलकियाँ ...
    सार्थक प्रशंसनीय प्रस्तुतिकरन ...........

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  34. kavita ji
    aapke aalekh ne dil moh liya .
    bahut dino baad is lok rang ko aapki prstuti ke jariye padh paai hun.sach !bahut hi achcha laga.iske liye aapko hardik badhai----
    poonam

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  35. बहुत सुंदर अनुपम प्रस्तुति ,....

    MY NEW POST ...कामयाबी...

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  36. गाँव में वसंत की सूचना तो प्रकृति के माध्यम से सहज रूप से मिल जाती हैं लेकिन शहर में वसंत को तलाशना कतई आसान काम नहीं है.bahut hi achchi prastuti kavita jee.

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  37. बेनामी14:07

    रंग-बिरंगे परिधानों से सजे लोक कलाकारों की सधी प्रस्तुतियां में डूबा मन कविवर बिहारी के वासंती दोहे जैसा दिखने लगता-
    "छबि रसाल सौरभ सने, मधुर माधवी गन्ध।
    ठौर-ठौर झूमत झपट, झौंर-झौंर मधु अन्ध ।।"

    बहुत सुन्दर लोकलुभावन प्रस्तुति..

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  38. लोकरंग की अनुपम प्रस्‍तुति... आभार ।

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  39. प्रकृति में बदलाव के साथ साथ लोक कलाएं भी लुप्त प्रायः हो रही हैं.

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  40. "छबि रसाल सौरभ सने, मधुर माधवी गंघ।
    ठौर-ठौर झूमत झपट, झौंर-झौंर मधु अन्ध ।।"

    वाह! आपकी सुन्दर प्रस्तुति पढकर आनंद आ गया है,कविता जी.
    बसंत की महिमा ही निराली है.

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  41. I feel connected with the nature after reading your post;;
    you write very fine and your emotions are excellent..
    nice post..

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  42. कविता जी इस पोस्ट में आपने लोकरंग के झलकियों के साथ वसंत के ताल-मेल का खूब रंग जमाया है, शानदार पोस्ट!!!
    आभार !!!!!!!

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  43. शहर में वसंत को तलाशना
    कतई आसान काम नहीं है....
    बिलकुल ठीक कहा आपने
    और फिर ये घरतंत्र ! ? !

    बहुत ही रोचक और प्रभावशाली आलेख !

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  44. बहुत ही सुन्दर ,रोचक प्रस्तुति....:-)

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  45. भला हो घर के बगीचे की छोटी सी क्यारी में खिली वासंती फूलों से लदी सरसों का! वसंत के आगमन की सूचना मुझ तक उसने ही पहुँचाई । गाँव में वसंत की सूचना तो प्रकृति के माध्यम से सहज रूप से मिल जाती हैं लेकिन शहर में वसंत को तलाशना कतई आसान काम नहीं है
    शहरी जिंदगी में बहुत से मौकों पर गाँव अक्सर बार-बार याद आते हैं..शहर में वसंत को तलाशना दुष्कर कर्म हैं..
    लोकरंग की रंगारंग झलकियों के साथ ही २६ जनवरी की याद को लेकर बीच में बसंत का जोरदार तड़का लगाने से यह पोस्ट किसी जोरदार धमाके से कम नहीं....

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  46. वाह!!!!!कविता जी,...बहुत अच्छी अभिव्यक्ति,सुंदर आलेख ...

    MY NEW POST ...सम्बोधन...

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  47. अच्छी अभिव्यक्ति और लेख |चित्रों से और भी निखार आया है लेख में |
    आशा

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  48. इन झलकियों के साथ आपने जो लाजवाब वर्णन किया है ... कमाल का है ...
    सुन्दर आलेख ...

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  49. अति उत्तम प्रस्तुति.......

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  50. आपको और समस्त परिवार को होली की शुभकामनायें ...

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  51. लोक रंग में झलकता बसंत ,२६ जनवरी और बसंत के उत्सवी रंग आपके मन में आज भी फागुनी बयार से शामिल हैं ,अच्छी प्रस्तुति .कृपया पिछली पोस्ट में 'उपक्रम' कर लें 'उत्क्रम' को .

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  52. Lovely interesting blog, greeting from Belgium

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