इस बार तो २६ जनवरी के साथ ही वसंत ऋतु का प्रथम उत्सव वसंत पंचमी भी निकल गयी। भला हो घर के बगीचे की छोटी सी क्यारी में खिली वासंती फूलों से लदी सरसों का! वसंत के आगमन की सूचना मुझ तक उसने ही पहुँचाई । गाँव में वसंत की सूचना तो प्रकृति के माध्यम से सहज रूप से मिल जाती हैं लेकिन शहर में वसंत को तलाशना कतई आसान काम नहीं है। इसी वासंती रंग की तलाश में मैं २६ जनवरी से १ फरवरी तक लोकसंस्कृति संरक्षक रवीन्द्र भवन में लगने वाले लोकरंग की प्रस्तुतियां देखने पहुंची। वहां मधुबनी पेंटिंग से भगवान राम और सीता के विवाह के दृश्यों से सजे मंच पर थिरकते लोक कलाकारों की मोहक प्रस्तुतियां देख विश्वास हो चला कि शहर में भी वसंत का आगमन हो चुका है। विभिन्न राज्यों के लोक कलाकारों,विदेशी नृत्य प्रस्तुतियों और बेटियों के सर्जना के कला संसार में मन यूँ डूबा कि हर शाम कदम बरबस रवीन्द्र भवन की ओर खिंचे चले जाते। रंग-बिरंगे परिधानों से सजे लोक कलाकारों की सधी प्रस्तुतियां में डूबा मन कविवर बिहारी के वासंती दोहे जैसा दिखने लगता-
"छबि रसाल सौरभ सने, मधुर माधवी गन्ध।
ठौर-ठौर झूमत झपट, झौंर-झौंर मधु अन्ध ।।"
...कविता रावत