आखिर वृद्धाश्रम की आवश्‍यकता क्‍यों? - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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सोमवार, 6 जनवरी 2025

आखिर वृद्धाश्रम की आवश्‍यकता क्‍यों?

        कभी स्कूल में हमने चार आश्रम ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास के बारे में पढ़ा था। तब हमें पता नहीं था कि समय के साथ इन आश्रम व्यवस्थाओं का लोप हो जाएगा और उनके स्थान पर हमें एक ऐसे आश्रम के बारे में जिसका नाम वृद्धाश्रम है, जिसका नाम लेने पर भी मन में एक कसक उठने लगती है, सुनने और देखने को मिलेगा। बड़ा दुःख होता है आज जब हम देखते-सुनते हैं कि भरा-पूरा परिवार होने के बाद भी कई माँ-बाप वृद्धाश्रम जाने को मजबूर होते हैं।  

           यह देखकर बड़ा दुःख होता है कि कोई संतान कैसे उस माँ-बाप को जिसने उसे बड़े लाड-प्यार से पाल-पोस कर बड़ा किया, वह उन्हें वृद्ध होते ही वृद्धाश्रम का रास्ता दिखा देता है? इस बारे में कई सवाल मन में उभरते हैं कि आखिर इसके पीछे क्या कारण हैं? क्यों आज देश में वृद्धाश्रम की संख्या बढ़ती जा रही है?  यदि हम इस विषय में विचार करते हैं तो हम पाते हैं कि इसके पीछे कई कारण हैं - जैसे- नई-पुरानी पीढ़ी के विचारों में तालमेल न बैठ पाना, युवा वर्ग की बढ़ती आवश्यकतायें व आकांक्षायें, परस्पर पूरकता और पारिवारिक दायित्व बोध का अभाव और पारिवारिक रिश्तों में विश्वास की कमी। इसके अलावा झूठी शान का दिखावा, बनावटीपन, दूसरों की होड़ भी अनेक परिवारों का टूटने का कारण हैं। इसके साथ ही कुछ हद तक उन वृद्धों का भी दोष है जो अपने झूठे अहंकार के आगे समय के साथ समझौता नहीं पाते हैं और वृद्धाश्रम जाना उचित समझते हैं। 

        आज अधिकांश वृद्ध आश्रमों में जो माँ-बाप रहने को मजबूर हैं उसके लिए उन युवाओं का दोष है जो विवाह के पश्चात् अपने माता-पिता को बोझ समझ बैठते हैं।  वे यह भूल जाते हैं कि जिन्हें वे वृद्ध समझकर बोझ समझ रहे हैं वास्तव में अनुभवों की पाठशाला हैं, क्योँकि उनके पास जीवन के बहुमूल्य विचार और अनुभव होते हैं। लेकिन अफ़सोस वे अपनी स्वतंत्रता के कारण अपने जीवन को दु:खमय बना लेने में संकोच नहीं करते हैं। समय रहते यदि समाज में फिर से पुरानी परम्परा और एक साथ रहने के विकल्प पर विचार नहीं किया जाएगा तो समाज में सुख समृद्धि का ऐसा अकाल पड़ेगा, जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते हैं।

... कविता रावत