प्रत्येक अति बुराई का रूप धारण कर लेती है।
उचित की अति अनुचित हो जाती है।।
अति मीठे को कीड़ा खा जाता है।
अति स्नेह मति बिगाड़ देता है।।
अति परिचय से अवज्ञा होने लगती है।
बहुत तेज हवा से आग भड़क उठती है।।
कानून का अति प्रयोग अत्याचार को जन्म देता है।
अमृत की अति होने पर वह विष बन जाता है।।
अत्यधिक रगड़ने पर चंदन से भी आग पैदा हो जाती है।
एक जगह पहुंचकर गुण-अवगुण में बहुत कम दूरी रह पाती है।।
अति नम्रता में अति कपट छिपा रहता है।
अत्यधिक कसने से धागा टूट जाता है।।
अति कहीं नहीं करनी चाहिए।
अति से सब जगह बचना चाहिए।
उचित की अति अनुचित हो जाती है।।
अति मीठे को कीड़ा खा जाता है।
अति स्नेह मति बिगाड़ देता है।।
अति परिचय से अवज्ञा होने लगती है।
बहुत तेज हवा से आग भड़क उठती है।।
कानून का अति प्रयोग अत्याचार को जन्म देता है।
अमृत की अति होने पर वह विष बन जाता है।।
अत्यधिक रगड़ने पर चंदन से भी आग पैदा हो जाती है।
एक जगह पहुंचकर गुण-अवगुण में बहुत कम दूरी रह पाती है।।
अति नम्रता में अति कपट छिपा रहता है।
अत्यधिक कसने से धागा टूट जाता है।।
अति कहीं नहीं करनी चाहिए।
अति से सब जगह बचना चाहिए।
.. कविता रावत