अति से सब जगह बचना चाहिए - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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सोमवार, 19 सितंबर 2016

अति से सब जगह बचना चाहिए

प्रत्येक अति बुराई का रूप धारण कर लेती है।
उचित की अति अनुचित हो जाती है।।

अति मीठे को कीड़ा खा जाता है।
अति स्नेह मति बिगाड़ देता है।।

अति परिचय से अवज्ञा होने लगती है।
बहुत तेज हवा से आग भड़क उठती है।।

कानून का अति प्रयोग अत्याचार को जन्म देता है।
अमृत की अति होने पर वह विष बन जाता है।।

अत्यधिक रगड़ने पर चंदन से भी आग पैदा हो जाती है।
एक जगह पहुंचकर गुण-अवगुण में बहुत कम दूरी रह पाती है।।

अति नम्रता में अति कपट छिपा रहता है।
अत्यधिक कसने से धागा टूट जाता है।।

अति कहीं नहीं करनी चाहिए।
अति से सब जगह बचना चाहिए।

.. कविता रावत 

10 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

अति कभी भी ठीक नहीं होती .....सुन्दर
कहा भी है ...
अति का भला न बोलना,
अति की भली न चूप,
अति का भला न बरसना,
अति की भली न धूप।

Unknown ने कहा…

अति सर्वत्र वर्जयेत्
सुन्दर ..

Mamta ने कहा…

अति मीठे को कीड़ा खा जाता है।
अति स्नेह मति बिगाड़ देता है।।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

आपके पोस्ट की अपडेट नहीं दिख रही है! इसलिये पता ही नहीं चला जन्माष्टमी के बाद!!
अति हमेशा बुरी होती है! इसका कोई अपवाद नहीं!

Amrita Tanmay ने कहा…

पर .... अति सुंदर है ये अति ।

Jyoti Dehliwal ने कहा…

प्रत्येक अति बुराई का रूप धारण कर लेती है।
उचित की अति अनुचित हो जाती है।।
बहुत बढ़िया!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सभी छंद ज्ञान की धरा समेटे ... सच है अति हर बात की बुरी है ...

Meena sharma ने कहा…

बहुत बढ़िया ! बहुत सुंदर शब्दों में दी गई सीख !

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

सुन्दर! अति सर्वत्र वर्जयेत्.

~Sudha Singh vyaghr~ ने कहा…

सुंदर रचना. अति सर्वत्र वर्जयेत्