प्रत्येक अति बुराई का रूप धारण कर लेती है।
उचित की अति अनुचित हो जाती है।।
अति मीठे को कीड़ा खा जाता है।
अति स्नेह मति बिगाड़ देता है।।
अति परिचय से अवज्ञा होने लगती है।
बहुत तेज हवा से आग भड़क उठती है।।
कानून का अति प्रयोग अत्याचार को जन्म देता है।
अमृत की अति होने पर वह विष बन जाता है।।
अत्यधिक रगड़ने पर चंदन से भी आग पैदा हो जाती है।
एक जगह पहुंचकर गुण-अवगुण में बहुत कम दूरी रह पाती है।।
अति नम्रता में अति कपट छिपा रहता है।
अत्यधिक कसने से धागा टूट जाता है।।
अति कहीं नहीं करनी चाहिए।
अति से सब जगह बचना चाहिए।
उचित की अति अनुचित हो जाती है।।
अति मीठे को कीड़ा खा जाता है।
अति स्नेह मति बिगाड़ देता है।।
अति परिचय से अवज्ञा होने लगती है।
बहुत तेज हवा से आग भड़क उठती है।।
कानून का अति प्रयोग अत्याचार को जन्म देता है।
अमृत की अति होने पर वह विष बन जाता है।।
अत्यधिक रगड़ने पर चंदन से भी आग पैदा हो जाती है।
एक जगह पहुंचकर गुण-अवगुण में बहुत कम दूरी रह पाती है।।
अति नम्रता में अति कपट छिपा रहता है।
अत्यधिक कसने से धागा टूट जाता है।।
अति कहीं नहीं करनी चाहिए।
अति से सब जगह बचना चाहिए।
.. कविता रावत
10 टिप्पणियां:
अति कभी भी ठीक नहीं होती .....सुन्दर
कहा भी है ...
अति का भला न बोलना,
अति की भली न चूप,
अति का भला न बरसना,
अति की भली न धूप।
अति सर्वत्र वर्जयेत्
सुन्दर ..
अति मीठे को कीड़ा खा जाता है।
अति स्नेह मति बिगाड़ देता है।।
आपके पोस्ट की अपडेट नहीं दिख रही है! इसलिये पता ही नहीं चला जन्माष्टमी के बाद!!
अति हमेशा बुरी होती है! इसका कोई अपवाद नहीं!
पर .... अति सुंदर है ये अति ।
प्रत्येक अति बुराई का रूप धारण कर लेती है।
उचित की अति अनुचित हो जाती है।।
बहुत बढ़िया!
सभी छंद ज्ञान की धरा समेटे ... सच है अति हर बात की बुरी है ...
बहुत बढ़िया ! बहुत सुंदर शब्दों में दी गई सीख !
सुन्दर! अति सर्वत्र वर्जयेत्.
सुंदर रचना. अति सर्वत्र वर्जयेत्
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