मेरी बगिया का वसंत - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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शनिवार, 5 फ़रवरी 2022

मेरी बगिया का वसंत

   


ऑफिस की छुट्टी हो और ऊपर से जाड़े का मौसम हो तो सुबह आँख जरा देर से खुलती है। आज भी कुछ ऐसा ही हुआ।  सुबह जब उठकर बाहर निकली तो देखा कि बिल्डिंग की दूसरी मंजिल में रहने वाली हमारी महाराष्ट्रीयन पड़ोसन हमारी बगिया में घुसकर आम के पेड़ को बड़े गौर से देखे जा रही थी। पहले तो मैंने सोचा शायद आम की पत्तियाँ चाहिए होंगी, लेकिन इससे पहले कि मैं जानना चाहती, वह मुझे देखते ही बोल उठी - "अरे आज वसंत पंचमी हैं न, आम का बौर पूजा में लगता है, बस वही लेने आयी थी, लेकिन यहाँ तो एक भी बौर नज़र नहीं आ रहा है।"  मैं चौंकी- "ऐसे कैसे हो सकता हैं, मैं देखती हूँ।" और जब मैंने भी देखना शुरू किया तो सच में पेड़ पर एक भी बौर न देखकर मैं दंग रह गई। फिर तो जब हम दोनों ने आस-पास के लगभग  10-13 आम के पेड़ों को खँगाला तो तब जाकर एक पेड़ पर बहुत कम मात्रा में आम के बौर नज़र आये तो यह देखकर थोड़ी राहत जरूर मिली, लेकिन मुझे यह बड़ी हैरानी की बात लगी। मैं सोचने लगी ऐसा तो पहली बार देख रही हूँ कि आम पर बौर आने से पहले वसंत आ गया हो।  खैर पड़ोसन को आम का बौर मिला तो उसने अपने घर की राह पकड़ी तो मैं भी अपनी घर-गृहस्थी में रम गई।       

तीन-चार घंटे बाद जब घर-परिवार के रोजमर्रा के कार्यों से थोड़ी फुर्सत मिली तो जैसे ही मैं अपनी बगिया में पहुंची तो वहां दूसरे पेड़-पौधों के बीच पीले-पीले सरसों के फूलों ने वासंती रंग बिखेरते हुए मेरा स्वागत किया तो मन ख़ुशी से झूम उठा। सोचने लगी सरसों के फूलों के बिना वसंत अधूरा है और यदि शहर की इस बगिया में मैंने ये न उगाये होते तो मुझे वसंत की सूचना कौन देता।  मेरी इस बगिया में मैंने तरह-तरह के पेड़-पौधे लगा रखे हैं, जिनमें औषधीय पौधे अधिक मात्रा में हैं, जिनके बीच-बीच में हम ताज़ी साग-सब्जी उगा लेते हैं। इसके साथ ही यहाँ मैंने अपने गाँव में उगने वाले बहुत से पौधे जिनमें कंडाली प्रमुख है, लगा रखे हैं, जो मुझे अपने पहाड़ की प्रकृति से जोड़े रखती हैं। मुझे जब-जब बगिया में खिले फूल-कलियां पर मँडराते भोंरे की गुंजार, तितलियाँ की चंचलता, पेड़-पौधों के बीच सुबह-सुबह चिड़ियों की चहचाहट और कोयल की सुमधुर कूक सुनने को मिलती है, तब-तब मैं अपार प्रसन्नता का अनुभव करती हूँ। चूँकि आज वसंत है और ऐसे अवसर यदि मैं अपने प्रिय प्रकृति प्रेमी कवि पंत को याद न करूँ तो यह वसंत अधूरा रह जाएगा-

"अब रजत स्वर्ण मंजरियों से, लड़ गई आम्र रस की डाली 

झर रहे ढाक, पीपल के दल, हो उठी कोकिला मतवाली" 

..........वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाओं सहित- कविता रावत 

10 टिप्‍पणियां:

Meena Bhardwaj ने कहा…

मन आनंदित हो गया आपकी बगिया में आपके सृजन के माध्यम से भ्रमण कर के । वसंतोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं कविता जी ।

जितेन्द्र माथुर ने कहा…

सौभाग्यशालिनी हैं आप कविता जी। बहुत अच्छा लगा पढ़कर।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपको घर की बगिया में बसंत दर्शन हो रहे । बहुत शुभकामनाएँ।

INDIAN the friend of nation ने कहा…

SAB BASANT KI MAHIMA HAI

Gajendra Bhatt "हृदयेश" ने कहा…

घर की बगिया मन के सुकून के लिए सर्वोत्तम स्थल है। आपकी सुन्दर बगिया के विषय में जानना रुचिकर रहा... बधाई कविता जी!

Madhulika Patel ने कहा…

बहुत सुंदर कविता जी पौधों के बीच मन को बहुत शांति मिलती हैं, शुभकामनाएँ

MANOJ KAYAL ने कहा…

प्रकृति का सुन्दर सृजन

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

सच अपनी बगिया को निहारना एक नैसर्गिक सुख देता है ।बहुत सुंदर सृजन ।

संजय भास्‍कर ने कहा…

आपको घर की बगिया बहुत सुंदर ही दी 👍👍

विकास नैनवाल 'अंजान' ने कहा…

सुंदर संस्मरण। बगिया में कंडाली भी है ये जानकर अच्छा लगा। कंडाली की बुझ्झी अच्छी होती है और बच्चो को लाइन में भी रखती है बल। हां बारिश के दिनों में गीली कंडाली गलती से छू जाए तो पितरों की याद सयास ही आ जाती है। सुंदर बगिया है आपकी मैम।