ऑफिस की छुट्टी हो और ऊपर से जाड़े का मौसम हो तो सुबह आँख जरा देर से खुलती है। आज भी कुछ ऐसा ही हुआ। सुबह जब उठकर बाहर निकली तो देखा कि बिल्डिंग की दूसरी मंजिल में रहने वाली हमारी महाराष्ट्रीयन पड़ोसन हमारी बगिया में घुसकर आम के पेड़ को बड़े गौर से देखे जा रही थी। पहले तो मैंने सोचा शायद आम की पत्तियाँ चाहिए होंगी, लेकिन इससे पहले कि मैं जानना चाहती, वह मुझे देखते ही बोल उठी - "अरे आज वसंत पंचमी हैं न, आम का बौर पूजा में लगता है, बस वही लेने आयी थी, लेकिन यहाँ तो एक भी बौर नज़र नहीं आ रहा है।" मैं चौंकी- "ऐसे कैसे हो सकता हैं, मैं देखती हूँ।" और जब मैंने भी देखना शुरू किया तो सच में पेड़ पर एक भी बौर न देखकर मैं दंग रह गई। फिर तो जब हम दोनों ने आस-पास के लगभग 10-13 आम के पेड़ों को खँगाला तो तब जाकर एक पेड़ पर बहुत कम मात्रा में आम के बौर नज़र आये तो यह देखकर थोड़ी राहत जरूर मिली, लेकिन मुझे यह बड़ी हैरानी की बात लगी। मैं सोचने लगी ऐसा तो पहली बार देख रही हूँ कि आम पर बौर आने से पहले वसंत आ गया हो। खैर पड़ोसन को आम का बौर मिला तो उसने अपने घर की राह पकड़ी तो मैं भी अपनी घर-गृहस्थी में रम गई।
तीन-चार घंटे बाद जब घर-परिवार के रोजमर्रा के कार्यों से थोड़ी फुर्सत मिली तो जैसे ही मैं अपनी बगिया में पहुंची तो वहां दूसरे पेड़-पौधों के बीच पीले-पीले सरसों के फूलों ने वासंती रंग बिखेरते हुए मेरा स्वागत किया तो मन ख़ुशी से झूम उठा। सोचने लगी सरसों के फूलों के बिना वसंत अधूरा है और यदि शहर की इस बगिया में मैंने ये न उगाये होते तो मुझे वसंत की सूचना कौन देता। मेरी इस बगिया में मैंने तरह-तरह के पेड़-पौधे लगा रखे हैं, जिनमें औषधीय पौधे अधिक मात्रा में हैं, जिनके बीच-बीच में हम ताज़ी साग-सब्जी उगा लेते हैं। इसके साथ ही यहाँ मैंने अपने गाँव में उगने वाले बहुत से पौधे जिनमें कंडाली प्रमुख है, लगा रखे हैं, जो मुझे अपने पहाड़ की प्रकृति से जोड़े रखती हैं। मुझे जब-जब बगिया में खिले फूल-कलियां पर मँडराते भोंरे की गुंजार, तितलियाँ की चंचलता, पेड़-पौधों के बीच सुबह-सुबह चिड़ियों की चहचाहट और कोयल की सुमधुर कूक सुनने को मिलती है, तब-तब मैं अपार प्रसन्नता का अनुभव करती हूँ। चूँकि आज वसंत है और ऐसे अवसर यदि मैं अपने प्रिय प्रकृति प्रेमी कवि पंत को याद न करूँ तो यह वसंत अधूरा रह जाएगा-
"अब रजत स्वर्ण मंजरियों से, लड़ गई आम्र रस की डाली
झर रहे ढाक, पीपल के दल, हो उठी कोकिला मतवाली"
..........वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाओं सहित- कविता रावत