'दादी' के आते ही घर-आंगन से रूठा वसंत लौट आया ... - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
ब्लॉग के माध्यम से मेरा प्रयास है कि मैं अपनी कविता, कहानी, गीत, गजल, लेख, यात्रा संस्मरण और संस्मरण द्वारा अपने विचारों व भावनाओं को अपने पारिवारिक और सामाजिक दायित्व निर्वहन के साथ-साथ सरलतम अभिव्यक्ति के माध्यम से लिपिबद्ध करते हुए अधिकाधिक जनमानस के निकट पहुँच सकूँ। इसके लिए आपके सुझाव, आलोचना, समालोचना आदि का हार्दिक स्वागत है।

शनिवार, 3 जून 2023

'दादी' के आते ही घर-आंगन से रूठा वसंत लौट आया ...

          हम चार मंजिला बिल्डिंग के सबसे निचले वाले माले में रहते हैं। यूँ तो सरकारी मकानों में सबसे निचले वाले घर की स्थिति ऊपरी मंजिलों में रहने वाले लागों के  जब-तब घर-भर का कूड़ा-करकट फेंकते रहने की आदत के चलते कूड़ेदान सी बनी रहती है, फिर भी यहाँ एक सुकून वाली बात जरूर है कि बागवानी  के लिए पर्याप्त जगह निकल आती है। बचपन में जब खेल-खेल में पेड़-पौधे लगाकर खुश हो लेते थे, तब उनके महत्व की समझ नहीं थी। अब जब पर्यावरण के लिए पेड़-पौधे कितने महत्व के हैं, इसकी समझ विकसित हुई तो उन्हें कटते-घटते देख  मन बड़ा विचलित हो उठता है।     
         
         बच्चों की धमाचौकड़ी और बुजुर्गों की चहल-कदमीे घर-आंगन की रौनक बढ़ाती है। इस बात को मैंने शिद्दत  से तब महसूस किया, जब हमारे पड़ोस में एक दादी का अपने भरे-पूरे परिवार के साथ आना हुआ। उनके आते ही घर-आंगन से रूठा वसंत लौट आया। मुझे यह देखकर बड़ी खुशी हुई कि दादी भी मेरी तरह प्रकृति से जुडी हुई हैं। वे 75 वसंत से अधिक देख चुकी होंगी, फिर भी वह 'अपना हाथ जगन्नाथ' के तर्ज पर अपना सारा काम खुद करती है। यही नहीं सुबह-सुबह घर-आंगन को बुहारना, बाग-बगीचे में खाद-पानी देना और फिर चूल्हे पर आग सुलगा कर गरम पानी करना भी उनकी रोजमर्रा की आदत में शुमार है। वे सबके लिए एक आदर्श हैं। वे सबकी दादी है। उनका असली नाम तो मैंने कभी जानने की कोशिश नहीं की, बस इतना जानती हूँ कि जब से उनका आना हुआ, तब से घर-परिवार और मोहल्ले के सभी छोटे-बड़ों को एक दादी मिल गई है।
         दादी को दूसरे लोगों की तरह टेलीविजन से चिपककर किसी भी सीरियल में रूचि नहीं है, वे तो देश-दुनिया की खबर लेने का शौक रखती है। उनके पास अनुभव से भरी भारी तिजारी है। वे पर्यावरण के प्रति सजग और समर्पित हैं। वे अपने बगीचे में ही नहीं अपितु अपने आस-पास पेड़-पौधे लगाकर लोगों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करती हैं। आज के हालातों को देख वे बड़े दुःखी मन से कहती है कि पहले जब बड़े-बड़े कारखाने, उद्योग नहीं थे, तब हमारा वातावरण शुद्ध हुआ करता था, जीवन में तब  न अधिक  भागदौड़ थी न हाय-हाय। शुद्ध अन्न के साथ-साथ  शुद्ध हवा और पानी मिलता था। लेकिन जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ी तो कारखाने, उद्योग और बड़ी-बड़ी इमारते तन गई, फलस्वरूप कारखानों से निकलने वाले धुएं ने हवा को प्रदूषित करने का काम किया और उद्योगों से निकलने वाले बहते रसायनों ने नदियों के पानी में जहर घोल दिया। यही नहीं पर्यावरण संतुलन बिगाड़ने की रही-सही कसर पेड़-पौधे, खेत-खलियान काटकर बड़ी-बड़ी इमारतें बनाकर पूरी कर दी गई, जो आज विश्व भर में  गंभीर चिन्ता का विषय बना हुआ है।
         दादी को मेरी तरह ही प्रकृति से बेहद लगाव है, इसलिए मैं अपने को हर समय दादी के सबसे करीब पाती हूँ। मैंने दादी से मिलकर लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने का बीड़ा उठाया है और इसकी शुरूआत हमने पहले अपने घर के बाग-बगीचे से शुरू की और फिर घर के सामने पड़ी बंजर भूमि में पेड-पौधे लगाकर उसे आबाद करने से कर ली है। अब हमारा अपना बाग-बगीचा है और साथ ही है एक अपनी  हरी-भरी बाड़ी, जिसमें हम अलग-अलग तरह के पेड़, फूल और साग-सब्जी उगाते हैं। शहर में  पेड़-पौधे लगना उतना दुष्कर काम नहीं है, जितना उनको शरारती बच्चों, खुरापाती लोगों और आवारा जानवरों से बचाने की चुनौती होती है। लेकिन दादी को कठिन से कठिन चुनौतियों का सामना करने में महारत हासिल है। आज उनकी निगरानी में पूरी तरह बाड़ी को महफूज देखकर मुझे बड़ी राहत मिलती है। आजकल घर-आंगन में रखे गमलों में सदाबहार, गुलाब, सेवंती, गेंदा आदि फूल खिले हुए है और साथ ही सड़क किनारे बनाई हमारी बाड़ी में पेड़-पौधों और साग-सब्जी के बीच पीली-पीली सरसों फूलने से वासंती रंगत छायी हुई है, जो मोहल्ले और सड़क पर आने जाने वाले शहरी लोगों को वसंत के आगमन की सूचना दे रही है।    
....कविता रावत



11 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर। वसन्त पंचमी की शुभकामनाएं।

Anuradha chauhan ने कहा…

बहुत सुंदर बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं

गिरधारी खंकरियाल ने कहा…

वसन्त पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें। हाँ प्रयास अच्छा है।

शिवम् मिश्रा ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन टीम की और मेरी ओर से आप सब को बसंत पंचमी और सरस्वती पूजा पर बधाइयाँ और हार्दिक शुभकामनाएँ |


ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 10/02/2019 की बुलेटिन, " बसंत पंचमी और सरस्वती पूजा पर बधाइयाँ और हार्दिक शुभकामनाएँ “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

दिगम्बर नासवा ने कहा…

शुरुआत खुद से हो तो दुसरे पर उसका भरपूर प्रभाव पड़ता है ...
आपने और दादी ने मिल के जो बीड़ा उठाया है उसे जरूर सफलता मिलेगी ... अनुभव और जोश मिल के बहुत कुछ कर जाता है ... सार्थक विचार सार्थक पोस्ट ...

मन की वीणा ने कहा…

वाह सुंदर सार्थक सृजन ।

संजय भास्‍कर ने कहा…

वसन्त पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें।

Kamini Sinha ने कहा…

बहुत सुंदर ,सार्थक लेख ,दादी को मेरा भी नमस्कार

Meena sharma ने कहा…

आदरणीया कविताजी,मुझे भी बागवानी का बहुत शौक है। आपने यह सही कहा कि शहरों में पौधों को लगाना उतना कठिन नहीं है, जितना उनको महफ़ूज रखना। दादी जैसे बुजुर्ग अपना सामाजिक दायित्व खूब समझते हैं और उनकी बदौलत नई पीढ़ी भी बसंत बहार के रंगों और खुशबुओं से रूबरू होती है वरना इस सीमेंट के जंगलों में तो बसंत भी कोई ऋतु होती है ये पता ही नहीं चलता।

Vocal Baba ने कहा…

प्रेरक विचार। बुजुर्गों की बात ही अलग है। बड़े बदनसीब होते होंगे वे लोग जो इन्हें अपने से दूर कर देते हैं। वाकई दिल को छू लेने वाले विचारों के लिए आपको बधाई।

बेनामी ने कहा…

We are urgently in need of KlDNEY donors for the sum

of $500,000.00 USD,(3 CRORE INDIA RUPEES) All donors

are to reply via the sum of $500,000.00 USD, Email

for more details: Email: healthc976@gmail.com