बीडी-सिगरेट, दारू, गुटका-पान
आज इससे बढ़ता मान-सम्मान
दाल-रोटी की चिंता बाद में करना भैया
पहले रखना इनका पूरा ध्यान!
मल-मल कर गुटका मुंह में डालकर
हुए हम चिंता मुक्त हाथ झाड़कर
जब सर्वसुलभ वस्तु अनमोल बनी यह
फिर क्यों छोड़े? क्या घर, क्या दफ्तर!
हम चले सफ़र को बस में बैठकर
जब रुकी बस लाये हम बीडी-गुटका खरीदकर
सड़क अपनी चलते-फिरते सब लोग अपने
फिर काहे की चिंता? गर थूक दे इधर-उधर
सुना था रामराज में बही दूध की नदियाँ
और कृष्णराज में मक्खन-घी खूब मिला
पर आज गाँव-शहर में बहती दारु की नदियाँ
देख गटक दो घूंट फतह कर लो हर किला
अमीर-गरीब, पढ़ा-लिखा, अनपढ़ यहाँ कोई भेद नहीं
सब मिल बैठ बड़े मजे से खा-पीकर खूब रंग जमाते!
बिना खाए-पिए गाड़ी आगे कैसे बढ़ेगी भैया!
गली-सड़क, मोहल्ले, घर-भर यही बतियाते!
-Kavita Rawat