मन को पहुँचा कर आघात
वे अक्सर पूछ लेते हैं हाल हमारा
'कैसे हो'
मृदुल कंठ से
दिल कचोट जाने वाली
कुटिल भावना के साथ
यकायक मन में मच जाती तीव्र हलचल
शांत मन में जैसे आ गया हो तूफां
अशांति का तांडव मच जाता
जैसे उफनती नदी का शोर कल-कल, छल-छल
शांत मन में कैसी ये उथल-पुथल!
बड़े ही उदार दिखते हैं ऐसे लोग
जो पहले दिल पर वार करते हैं
और फिर अपनापन जताकर
सबकुछ जानते हुए भी
अनजान बनाने का ढोंग कर
बड़ी बेशर्मी से
हाल चाल भी पूछ लेते हैं
धन्य है! उनकी यह धृष्टता
और धिक्कार है उनकी ऐसी उदारता!
Kavita Rawat