ईर्ष्या और लालसा कभी शांत नहीं होती है - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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मंगलवार, 29 मार्च 2016

ईर्ष्या और लालसा कभी शांत नहीं होती है

मूर्ख लोग ईर्ष्यावश दुःख मोल ले लेते हैं।
द्वेष फैलाने वाले के दांत छिपे रहते हैं।।

ईर्ष्यालु व्यक्ति दूसरों की सुख सम्पत्ति देख दुबला होता है।
कीचड़ में फँसा इंसान दूसरे को भी उसी में खींचता है।।

ईर्ष्या  के दफ्तर में कभी छुट्टी नहीं मिलती है।
ईर्ष्या खाली घर में कभी पाँव नहीं रखती है।।

जैसे लोहे को जंग वैसे ही ईर्ष्या मनुष्य को भ्रष्ट करती है।
भले ही ईर्ष्यालु मर जाय लेकिन ईर्ष्या कभी नहीं मरती है।।

ईर्ष्या के बल पर कभी कोई धनवान नहीं बनता है।
ईर्ष्या के डंक को कोई भी शांत नहीं कर सकता है।।

ईर्ष्या लोभ से भी चार कदम आगे रहती है।
ईर्ष्या और लालसा कभी शांत नहीं होती है।।


....कविता रावत

19 टिप्‍पणियां:

Harsh Wardhan Jog ने कहा…

इर्षा और लालसा छोड़ दें तो मन में शान्ति छा. पर बहुत कठिन काम है ये!

Unknown ने कहा…



आपकी रचना पढ़कर स्कूल में पढ़ा रामधारी सिंह दिनकर का निबंध" ईर्ष्या तू न गई मेरे मन से " की बड़ी याद आ रही है .......... बहुत-बहुत सुन्दर

Surya ने कहा…

जैसे लोहे को जंग वैसे ही ईर्ष्या मनुष्य को भ्रष्ट करती है।
भले ही ईर्ष्यालु मर जाय लेकिन ईष्र्या कभी नहीं मरती है।।


सत्य वचन

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (30-03-2016) को "ईर्ष्या और लालसा शांत नहीं होती है" (चर्चा अंक - 2297) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Digvijay Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 30 मार्च 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

Parmeshwari Choudhary ने कहा…

सटीक है .:) फेस बुक पर साँझा कर रही हूँ

Parmeshwari Choudhary ने कहा…

सटीक है .:) फेस बुक पर साँझा कर रही हूँ

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

उम्दा लेखन

जसवंत लोधी ने कहा…

ध्यान से ही मन विकार मुक्त होता है ।
Seetamni. bblogspot. in

RAJ ने कहा…

उम्दा रचना .................

सुनीता अग्रवाल "नेह" ने कहा…

uttam

दिगम्बर नासवा ने कहा…

जैसे लोहे को जंग वैसे ही ईर्ष्या मनुष्य को भ्रष्ट करती है।
भले ही ईर्ष्यालु मर जाय लेकिन ईर्ष्या कभी नहीं मरती है। ...

सच लिखा है इर्ष्या इंसान की मति भ्रष्ट कर देती है ... सोचने की ताकत ख़त्म कर देती है ... मन शांत नहीं रहने देती ...

sun ने कहा…

Wah good thoughts

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

सच कहा ईर्ष्या खाली घर में पाँव नहीं रखती. भरे घर वाले लोगों में जीवनपर्यंत ईर्ष्या और लालसा साथ नहीं छोड़ती फलतः आदमी सदैव अशांत जीता है.

जमशेद आज़मी ने कहा…

सच ही तो है कि ईर्ष्या और लालसा कभी शांत नहीं होती। यह दोनों ऐसे अवगुण हैं जो हमें अंदर ही अंदर खोखला कर देते हैं।

Madhulika Patel ने कहा…

जी आपने सच को लिखा है रचना में । इर्ष्या और लालसा कभी भी नहीं ख़त्म होते ।

Himkar Shyam ने कहा…

बहुत ख़ूब

sk1231india ने कहा…


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Amit Shukla ने कहा…

Nice information