मूर्ख लोग ईर्ष्यावश दुःख मोल ले लेते हैं।
द्वेष फैलाने वाले के दांत छिपे रहते हैं।।
ईर्ष्यालु व्यक्ति दूसरों की सुख सम्पत्ति देख दुबला होता है।
कीचड़ में फँसा इंसान दूसरे को भी उसी में खींचता है।।
ईर्ष्या के दफ्तर में कभी छुट्टी नहीं मिलती है।
ईर्ष्या खाली घर में कभी पाँव नहीं रखती है।।
जैसे लोहे को जंग वैसे ही ईर्ष्या मनुष्य को भ्रष्ट करती है।
भले ही ईर्ष्यालु मर जाय लेकिन ईर्ष्या कभी नहीं मरती है।।
ईर्ष्या के बल पर कभी कोई धनवान नहीं बनता है।
ईर्ष्या के डंक को कोई भी शांत नहीं कर सकता है।।
ईर्ष्या लोभ से भी चार कदम आगे रहती है।
ईर्ष्या और लालसा कभी शांत नहीं होती है।।
....कविता रावत
द्वेष फैलाने वाले के दांत छिपे रहते हैं।।
ईर्ष्यालु व्यक्ति दूसरों की सुख सम्पत्ति देख दुबला होता है।
कीचड़ में फँसा इंसान दूसरे को भी उसी में खींचता है।।
ईर्ष्या के दफ्तर में कभी छुट्टी नहीं मिलती है।
ईर्ष्या खाली घर में कभी पाँव नहीं रखती है।।
जैसे लोहे को जंग वैसे ही ईर्ष्या मनुष्य को भ्रष्ट करती है।
भले ही ईर्ष्यालु मर जाय लेकिन ईर्ष्या कभी नहीं मरती है।।
ईर्ष्या के बल पर कभी कोई धनवान नहीं बनता है।
ईर्ष्या के डंक को कोई भी शांत नहीं कर सकता है।।
ईर्ष्या लोभ से भी चार कदम आगे रहती है।
ईर्ष्या और लालसा कभी शांत नहीं होती है।।
....कविता रावत
इर्षा और लालसा छोड़ दें तो मन में शान्ति छा. पर बहुत कठिन काम है ये!
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जवाब देंहटाएंआपकी रचना पढ़कर स्कूल में पढ़ा रामधारी सिंह दिनकर का निबंध" ईर्ष्या तू न गई मेरे मन से " की बड़ी याद आ रही है .......... बहुत-बहुत सुन्दर
जैसे लोहे को जंग वैसे ही ईर्ष्या मनुष्य को भ्रष्ट करती है।
जवाब देंहटाएंभले ही ईर्ष्यालु मर जाय लेकिन ईष्र्या कभी नहीं मरती है।।
सत्य वचन
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (30-03-2016) को "ईर्ष्या और लालसा शांत नहीं होती है" (चर्चा अंक - 2297) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 30 मार्च 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसटीक है .:) फेस बुक पर साँझा कर रही हूँ
जवाब देंहटाएंसटीक है .:) फेस बुक पर साँझा कर रही हूँ
जवाब देंहटाएंउम्दा लेखन
जवाब देंहटाएंध्यान से ही मन विकार मुक्त होता है ।
जवाब देंहटाएंSeetamni. bblogspot. in
उम्दा रचना .................
जवाब देंहटाएंuttam
जवाब देंहटाएंLooking to publish Online Books, in Ebook and paperback version, publish book with best
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जैसे लोहे को जंग वैसे ही ईर्ष्या मनुष्य को भ्रष्ट करती है।
जवाब देंहटाएंभले ही ईर्ष्यालु मर जाय लेकिन ईर्ष्या कभी नहीं मरती है। ...
सच लिखा है इर्ष्या इंसान की मति भ्रष्ट कर देती है ... सोचने की ताकत ख़त्म कर देती है ... मन शांत नहीं रहने देती ...
Wah good thoughts
जवाब देंहटाएंसच कहा ईर्ष्या खाली घर में पाँव नहीं रखती. भरे घर वाले लोगों में जीवनपर्यंत ईर्ष्या और लालसा साथ नहीं छोड़ती फलतः आदमी सदैव अशांत जीता है.
जवाब देंहटाएंसच ही तो है कि ईर्ष्या और लालसा कभी शांत नहीं होती। यह दोनों ऐसे अवगुण हैं जो हमें अंदर ही अंदर खोखला कर देते हैं।
जवाब देंहटाएंजी आपने सच को लिखा है रचना में । इर्ष्या और लालसा कभी भी नहीं ख़त्म होते ।
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब
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Nice information
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