जाने कैसे मर-मर कर कुछ लोग जी लेते हैं
दुःख में भी खुश रहना सीख लिया करते हैं
मैंने देखा है किसी को दुःख में भी मुस्कुराते हुए
और किसी का करहा-करहा कर दम निकलते हुए
संसार में इंसान अकेला ही आता और जाता है
अपने हिस्से का लिखा दुःख खुद ही भोगता है
ठोकरें इंसान को मजबूत होना सिखाती है
मुफलिसी इंसान को दर-दर भटकाती है
.. कविता रावत
11 टिप्पणियां:
सच्ची बातें कही हैं कविता जी आपने । मैं बस इतना और कहूंगा कि ठोकरें इंसान को लोगों को पहचानना और अपनों-परायों में भेद करना भी सिखाती हैं ।
कविता दी, जीवन की सच्चाई को बहुत ही सुंदर तरीके से व्यक्त किया है आपने।
बिल्कुल। सही कहा आपने।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 29 नवंबर नवंबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सच है।
बिल्कुल सही कहा आपने
वाह!कविता जी ,बहुत खूब !जीवन का सच बयाँ करती रचना ।
वाह..बेहतरीन सृजन।
सादर।
बहुत सुन्दर
ये सच है इंसान अकेला आता है अकेला जाता है ... पर जाते जाते बहुत कुछ यादें अपनों के मन में छोड़ जाता है ...
भावपूर्ण सृजन ...
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
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