ठोकरें इंसान को मजबूत होना सिखाती है - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
ब्लॉग के माध्यम से मेरा प्रयास है कि मैं अपनी कविता, कहानी, गीत, गजल, लेख, यात्रा संस्मरण और संस्मरण द्वारा अपने विचारों व भावनाओं को अपने पारिवारिक और सामाजिक दायित्व निर्वहन के साथ-साथ सरलतम अभिव्यक्ति के माध्यम से लिपिबद्ध करते हुए अधिकाधिक जनमानस के निकट पहुँच सकूँ। इसके लिए आपके सुझाव, आलोचना, समालोचना आदि का हार्दिक स्वागत है।

रविवार, 16 फ़रवरी 2025

ठोकरें इंसान को मजबूत होना सिखाती है

 


जाने कैसे मर-मर कर कुछ लोग जी लेते हैं 

दुःख में भी खुश रहना सीख लिया करते हैं

मैंने देखा है किसी को दुःख में भी मुस्कुराते हुए

और किसी का करहा-करहा कर दम निकलते हुए

संसार में इंसान अकेला ही आता और जाता है

अपने हिस्से का लिखा दुःख खुद ही भोगता है

ठोकरें इंसान को मजबूत होना सिखाती है 

मुफलिसी इंसान को दर-दर भटकाती है

.. कविता रावत 

11 टिप्‍पणियां:

जितेन्द्र माथुर ने कहा…

सच्ची बातें कही हैं कविता जी आपने । मैं बस इतना और कहूंगा कि ठोकरें इंसान को लोगों को पहचानना और अपनों-परायों में भेद करना भी सिखाती हैं ।

Jyoti Dehliwal ने कहा…

कविता दी, जीवन की सच्चाई को बहुत ही सुंदर तरीके से व्यक्त किया है आपने।

शिवम कुमार पाण्डेय ने कहा…

बिल्कुल। सही कहा आपने।

Digvijay Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 29 नवंबर नवंबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सच है।

सधु चन्द्र ने कहा…

बिल्कुल सही कहा आपने

शुभा ने कहा…

वाह!कविता जी ,बहुत खूब !जीवन का सच बयाँ करती रचना ।

Sweta sinha ने कहा…

वाह..बेहतरीन सृजन।
सादर।

Onkar ने कहा…

बहुत सुन्दर

दिगम्बर नासवा ने कहा…

ये सच है इंसान अकेला आता है अकेला जाता है ... पर जाते जाते बहुत कुछ यादें अपनों के मन में छोड़ जाता है ...
भावपूर्ण सृजन ...

Nitish Tiwary ने कहा…

बहुत सुंदर प्रस्तुति।