कभी वक्त ने करके मजबूर जिन्हें कर दिया जुदा
गुजरे पलों को जिसने ख़ामोशी से दिल में सहेज लिया
उनसे ही सीखा सबक प्यार का दुनिया वालों ने
जिसने जिंदगी में वक्त नहीं वक्त में जिंदगी देख लिया
दुनिया में ऐसे लोग बहुत कम मिलते हैं
जो दर्द पराया पर अपना समझ लेते हैं
जो जुदा हुए दिलों के दास्ताँ सुनते हैं
वे ही भीड़ में अक्सर अलग दिखते हैं
..................................
मत भरो शूलों से दामन अपना
जिंदगी के गुलशन में फूल भी खिलते हैं
बाजी हारते-हारते जो जीत जाय
वे बड़े खुशनसीब वाले रहते हैं !
कर्त्तव्य की जंजीरों से जकड़ी मैं
भला तुम्हें क्या दे सकती हूँ
अधिकार नहीं जब मेरा तुम पर
तो तुम्हारी खुशियाँ कैसे ले सकती हूँ?
सपनों का महल संजोया था मैंने
पर वह रेत की दीवार सा ढह गया
दिल था नाजुक दर्पण मेरा
बिंध जाने से चकनाचूर हुआ !
खिड़की-दरवाजे बंद कर लेते लोग
आया कोई तूफां धरा पर जब-जब
एक तुम थे जो पराई खिड़की-दरवाजे
बंद करने घर से निकले तब-तब!
किसे सुकूं मिल पाया जिंदगी में भला
अनजानों की बस्ती में भटक कर
कहाँ कोई खुश रह पाया है कहीं
अपनों का प्यारभरा दिल दु:खाकर!
अरमानभरी गठरी बंधी तो थी
मगर लगी ठोकर वह बिखर गई
बच निकली जो स्मृतियाँ मुर्दा सी
वह भी ख़ामोशी में दफ़न हुई!
स्मृतियों का कितना बड़ा भंडार होगा
जो भर देते हैं एलबम अपनी तस्वीरों से
पर स्मृतियाँ चौखट पर रख बदनसीब
अक्सर खेलते हैं अपने तकदीरों से!
चाहकर भी बृक्ष की शीतल छाया
कभी राहगीर के संग नहीं जा पाई है
है प्रकृति का निराला दस्तूर यही
वह उसी से बंधकर रह गई है !
चलो अब लौट चलें अपनी दुनिया में
जो गुजरा उसका भला पछताना क्या?
बोझिल कदम बढ़ न सके जिस गाँव तक
अब उस गाँव के कोस गिनकर होगा क्या?
...कविता रावत

उनसे ही सीखा सबक प्यार का दुनिया वालों ने
जिसने जिंदगी में वक्त नहीं वक्त में जिंदगी देख लिया
दुनिया में ऐसे लोग बहुत कम मिलते हैं
जो दर्द पराया पर अपना समझ लेते हैं
जो जुदा हुए दिलों के दास्ताँ सुनते हैं
वे ही भीड़ में अक्सर अलग दिखते हैं
..................................
मत भरो शूलों से दामन अपना
जिंदगी के गुलशन में फूल भी खिलते हैं
बाजी हारते-हारते जो जीत जाय
वे बड़े खुशनसीब वाले रहते हैं !
कर्त्तव्य की जंजीरों से जकड़ी मैं
भला तुम्हें क्या दे सकती हूँ
अधिकार नहीं जब मेरा तुम पर
तो तुम्हारी खुशियाँ कैसे ले सकती हूँ?
सपनों का महल संजोया था मैंने
पर वह रेत की दीवार सा ढह गया
दिल था नाजुक दर्पण मेरा
बिंध जाने से चकनाचूर हुआ !
खिड़की-दरवाजे बंद कर लेते लोग
आया कोई तूफां धरा पर जब-जब
एक तुम थे जो पराई खिड़की-दरवाजे
बंद करने घर से निकले तब-तब!
किसे सुकूं मिल पाया जिंदगी में भला
अनजानों की बस्ती में भटक कर
कहाँ कोई खुश रह पाया है कहीं
अपनों का प्यारभरा दिल दु:खाकर!
अरमानभरी गठरी बंधी तो थी
मगर लगी ठोकर वह बिखर गई
बच निकली जो स्मृतियाँ मुर्दा सी
वह भी ख़ामोशी में दफ़न हुई!
स्मृतियों का कितना बड़ा भंडार होगा
जो भर देते हैं एलबम अपनी तस्वीरों से
पर स्मृतियाँ चौखट पर रख बदनसीब
अक्सर खेलते हैं अपने तकदीरों से!
चाहकर भी बृक्ष की शीतल छाया
कभी राहगीर के संग नहीं जा पाई है
है प्रकृति का निराला दस्तूर यही
वह उसी से बंधकर रह गई है !
चलो अब लौट चलें अपनी दुनिया में
जो गुजरा उसका भला पछताना क्या?
बोझिल कदम बढ़ न सके जिस गाँव तक
अब उस गाँव के कोस गिनकर होगा क्या?
...कविता रावत
32 टिप्पणियां:
कर्त्तव्य की जंजीरों से जकड़ी मैं
भला तुम्हें क्या दे सकती हूँ
अधिकार नहीं जब मेरा तुम पर
तो तुम्हारी खुशियाँ कैसे ले सकती हूँ?
...vah, bahut sundar,marmik rachna.
kavita ji mere blog par aane ke liye shukria... mai bhii mool roop se uttarakhand se hi hu........ likhte rahiye aapki rachnaye padne ke liye blog par aata rahunga..........
मन कि संवेदनाओं को खूबसूरत शब्द दिए हैं...
bahut sundar,marmik rachnaa.
बहुत ही भावपूर्ण निशब्द कर देने वाली रचना . गहरे भाव.
कविता जी बहुत ही अच्छी रचना है आपकी...थोडा दर्द हमें भी हुआ...बहुत अच्छे से व्यक्त किया है आपने अपने भावों को
बहुत ही सुन्दर रचना
चाहकर भी बृक्ष की शीतल छाया
कभी राहगीर के संग नहीं जा पाई है
है प्रकृति का निराला दस्तूर यही
bahut hi prabhawshali
... बहुत सुन्दर,प्रभावशाली रचना!!!
bahut sunder bhavo se shobhit sunder prastuti...............
bahetareen rachana aur prastuti..... badhai ho Kavitaji aur shukriya :)
वाह !!!!!!!!! क्या बात है..... बहुत जबरदस्त अभिव्यक्ति
हताश न होना ही सफलता का मूल है और यही परम सुख है।
मन में आशा जगती हुई पंक्तिया.. बहुत उम्दा लिखा है!
दुनिया में ऐसे लोग बहुत कम मिलते हैं
जो दर्द पराया पर अपना समझ लेते हैं
जो जुदा हुए दिलों के दास्ताँ सुनते हैं
वे ही भीड़ में अक्सर अलग दिखते हैं
ये सच है दुनिया में ऐसे लोग कम होते हैं इसलिए उनकी ख़ास अहमियत होनी चाहिए जीवन में ... अच्छी भावों को पिरोया है अपने ........
अच्छे शब्द और भाव.
एक संवेदनशील कविता.
रचना उदात्त भाव को सफल और सरस अभिव्यक्ति दे रही है ।
बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने उम्दा रचना प्रस्तुत किया है! बधाई!
वाह अदभुत
कविता जी की कविता इतनी गीली है आँसुओं से कि सम्भालना मुश्किल हो गया... मनोभाव को बड़े सुंदर स्वर दिए हैं आपने… यत्र तत्र शब्दों की अशुद्धि है, किंतु अंदेखी करने योग्य... दुःखों को अलग कर आस पास देखिए, मुस्कुराने के हज़ार बहाने मौजूद हैं... आपकी अगली कविता आशावाद से भरी होनी चाहिए, वादा करें...
जिसने जिंदगी में वक्त नहीं वक्त में जिंदगी देख लिया...
बहुत ही ख़ूबसूरत.....
dil ko choo gai aapki yah kavita.ek ek pankti sachchai ke ahsason se bhari hui hai.jinhe bahut hi achhe se abhivykt kiya hai aapne.
चाहकर भी बृक्ष की शीतल छाया
कभी राहगीर के संग नहीं जा पाई है
है प्रकृति का निराला दस्तूर यही
वह उसी से बंधकर रह गई है !
चलो अब लौट चलें अपनी दुनिया में
जो गुजरा उसका भला पछताना क्या?
बोझिल कदम बढ़ न सके जिस गाँव तक
अब उस गाँव के कोस गिनकर होगा क्या?
poonam
लम्बी.... मगर ... बहुत भावपूर्ण, संवेदनशील....व सुंदर रचना... आपने अंत तक बाँध कर रखा.....
सम्पूर्ण कविता दिल को छू गई....
Regards......
लो अब लौट चलें अपनी दुनिया में
जो गुजरा उसका भला पछताना क्या?
बोझिल कदम बढ़ न सके जिस गाँव तक
अब उस गाँव के कोस गिनकर होगा क्या?
...Bahut sundar..sadhuvad !!
चलो अब लौट चलें अपनी दुनिया में
जो गुजरा उसका भला पछताना क्या?
बोझिल कदम बढ़ न सके जिस गाँव तक
अब उस गाँव के कोस गिनकर होगा क्या?
क्या बात है ....चलें....!?!
उनसे ही सीखा सबक प्यार का दुनिया वालों ने
जिसने जिंदगी में वक्त नहीं वक्त में जिंदगी देख लिया
.... bahut khoob!
जो दर्द पराया पर अपना समझ लेते हैं
जो जुदा हुए दिलों के दास्ताँ सुनते हैं
वे ही भीड़ में अक्सर अलग दिखते हैं
आपने दिल की भावनाओ को पक्तिओ मे बखुबी उकेरा हॆ..धन्यबाद
शिल्प पर और मेहनत कीजिये ।
आओ चले गांव से शहरों की ओर..... लेकिन सोचे गांव का क्या होगा..कुछ लोग आजकल गांव के दर्द को नहीं समझ पा रहे हैं ओर कुछ दर्द को इतना जान गये हैं कि उस गांव में ही नहीं जाना चाह रहे हैं..गांव एक प्रतीक है उस व्यक्तिव का जो बंध गई है जंजीरो में... क्या होना चाहिए आपकी कविता ये सोचने के लिए मजबूर करती है..ब्लाग पर आने के लिए धन्यवाद..
प्रिय कविता जी,
आप गुल्लक में आईं,शुक्रिया। आपकी भावपूर्ण कविता गहरे तक छूती है। पर मुझे भी लगता है कि इसमें संपादन के साथ कसावट की भी आवश्यकता है। अगर यह काम आप करेंगी तो आपकी कविता और प्रभावशाली बन सकेगी। माफ करें,संपादन करना मेरा शौक है। अगर आप कोई मदद चाहें तो जरूर बताएं। शुभकामनाएं।
Bahut Achha likhti hain. Saatth ke dashak ki Akashwani ki duniya behad khoobsoorat thhee. Baat hogi kabhi.Aaj ka yuva warg ud poornta ke ehsaas se undhhuaa reh jaayega.
Shubhkaamnayein
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