झूठ सौ पर्दों में छिपकर भी सच का सामना नहीं कर सकता है - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
ब्लॉग के माध्यम से मेरा प्रयास है कि मैं अपनी कविता, कहानी, गीत, गजल, लेख, यात्रा संस्मरण और संस्मरण द्वारा अपने विचारों व भावनाओं को अपने पारिवारिक और सामाजिक दायित्व निर्वहन के साथ-साथ सरलतम अभिव्यक्ति के माध्यम से लिपिबद्ध करते हुए अधिकाधिक जनमानस के निकट पहुँच सकूँ। इसके लिए आपके सुझाव, आलोचना, समालोचना आदि का हार्दिक स्वागत है।

सोमवार, 17 फ़रवरी 2025

झूठ सौ पर्दों में छिपकर भी सच का सामना नहीं कर सकता है

झूठ सौ पर्दों में छिपकर भी सच का सामना नहीं कर सकता है।
सच बनाव- श्रृंगार नहीं, वह तो नग्न रहना पसन्द करता है।।

जो किसी के हित में झूठ बोले वह उसके विरुद्ध भी बोल सकता है।
सच दो टूक में लेकिन झूठ अपनी बात को घुमा-फिरा कर रखता है।।

जिसकी बात झूठी निकली फिर उस पर कोई यकीन नहीं करता है।
सच उथले में नहीं वह तो काई के ढके तालाब में छिपा रहता है।।

सच की डोर भले ही लम्बी खिंच जाय लेकिन कोई तोड़ नहीं पाता है।
भले झूठ की रफ्तार तेज हो लेकिन सच उससे आगे निकल जाता है।।

सच की शक्ल देखकर बहुत सारे लोग भयभीत हो जाते हैं।
सच का कोई दुन्नन नहीं फिर भी उसे दुश्मन मिल जाते हैं।।

झूठ की उम्र छोटी लेकिन जबान बहुत लम्बी रहती है।
हवा हो या तूफान सच की ज्योति कभी नहीं बुझती है।।

एक झूठ को छिपाने के लिए दस झूठ बोलने पड़ते हैं।
सच और गुलाब हमेशा कांटों से घिरे रहते हैं।।

झूठा इंसान एक न एक दिन पकड़ में आता है।
झूठ से भरा जहाज मझधार में डूब जाता है।।

कविता संग्रह लोक उक्ति में कविता से