सच और झूठ का सम्बन्ध - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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सोमवार, 18 मई 2015

सच और झूठ का सम्बन्ध

झूठ सौ पर्दों में छिपकर भी सच का सामना नहीं कर सकता है।
सच बनाव- श्रृंगार नहीं, वह तो नग्न रहना पसन्द करता है।।

जो किसी के हित में झूठ बोले वह उसके विरुद्ध भी बोल सकता है।
सच दो टूक में लेकिन झूठ अपनी बात को घुमा-फिरा कर रखता है।।

जिसकी बात झूठी निकली फिर उस पर कोई यकीन नहीं करता है।
सच उथले में नहीं वह तो काई के ढके तालाब में छिपा रहता है।।

सच की डोर भले ही लम्बी खिंच जाय लेकिन कोई तोड़ नहीं पाता है।
भले झूठ की रफ्तार तेज हो लेकिन सच उससे आगे निकल जाता है।।

सच की शक्ल देखकर बहुत सारे लोग भयभीत हो जाते हैं।
सच का कोई दुन्नन नहीं फिर भी उसे दुश्मन मिल जाते हैं।।

झूठ की उम्र छोटी लेकिन जबान बहुत लम्बी रहती है।
हवा हो या तूफान सच की ज्योति कभी नहीं बुझती है।।

एक झूठ को छिपाने के लिए दस झूठ बोलने पड़ते हैं।
सच और गुलाब हमेशा कांटों से घिरे रहते हैं।।

झूठा इंसान एक न एक दिन पकड़ में आता है।
झूठ से भरा जहाज मझधार में डूब जाता है।।

कविता संग्रह लोक उक्ति में कविता से