बीडी-सिगरेट, दारू, गुटका-पान
आज इससे बढ़ता मान-सम्मान
दाल-रोटी की चिंता बाद में करना भैया
पहले रखना इनका पूरा ध्यान!
मल-मल कर गुटका मुंह में डालकर
हुए हम चिंता मुक्त हाथ झाड़कर
जब सर्वसुलभ वस्तु अनमोल बनी यह
फिर क्यों छोड़े? क्या घर, क्या दफ्तर!
हम चले सफ़र को बस में बैठकर
जब रुकी बस लाये हम बीडी-गुटका खरीदकर
सड़क अपनी चलते-फिरते सब लोग अपने
फिर काहे की चिंता? गर थूक दे इधर-उधर
सुना था रामराज में बही दूध की नदियाँ
और कृष्णराज में मक्खन-घी खूब मिला
पर आज गाँव-शहर में बहती दारु की नदियाँ
देख गटक दो घूंट फतह कर लो हर किला
अमीर-गरीब, पढ़ा-लिखा, अनपढ़ यहाँ कोई भेद नहीं
सब मिल बैठ बड़े मजे से खा-पीकर खूब रंग जमाते!
बिना खाए-पिए गाड़ी आगे कैसे बढ़ेगी भैया!
गली-सड़क, मोहल्ले, घर-भर यही बतियाते!
-Kavita Rawat
17 टिप्पणियां:
bahut sahi
मूल्य निर्णय न देकर व्यंग्यात्मक ब्याख्यान अच्छा लगा।
u r write kavita ji..
sunder prastuti .
sunder prastuti.
सटीक अभिव्यक्ति!
bahut-bahut dhanyavad aapka,mai prayas kr raha hun, prerna ke liye aap logon ka sahyog or margdarshan chahiye ki main bhi blog ki is duniya mai muththi bhar jameen hasil kar sakun, thanks once again......
सही कहा आपने , लोगों के जीवन में घुस गया है
कविता और उसमे भी व्यंगात्मक ।बिना खाये पिये गाड़ी कैसे बढेगी ।आजकल कुछ ज्यादा ही शौक बढता चला जा रहा है
sambodhan accha laga bete bas ek salah hai jee hata do chaho to see lagao varna aise bhee chalega.....
.... बेहद प्रभावशाली !!!
कविता जी बहुत अच्छा व्यंग है सही मे आज कल रोटी खाने को मिले न मिले मगर नशा जरूरी है समाज मे फैली दुर्व्यस्न की परकाष्ठा पर अच्छा व्यंग शुभकामनायें
अमीर-गरीब, पढ़ा-लिखा, अनपढ़ यहाँ कोई भेद नहीं
सब मिल बैठ बड़े मजे से खा-पीकर खूब रंग जमाते!
बिना खाए-पिए गाड़ी आगे कैसे बढ़ेगी भैया!
गली-सड़क, मोहल्ले, घर-भर यही बतियाते!
Antarmukh kar diya aapne!
बीडी-सिगरेट, दारू, गुटका-पान
आज इससे बढ़ता मान-सम्मान
दाल-रोटी की चिंता बाद में करना भैया
पहले रखना इनका पूरा ध्यान ...
सटीक व्यंग है आज की सामाजिक हालात पर ......... समाज की दिशा बदलती जा रही आई ...... मूल्य बदल रहे हैं .......
nashe ke bare mein aapka ye vyang aapki gahan peeda se ubhra hai esliye ye kewal vyang nahi hai ...peeda se uthi aawaj hai jo ese kavita ke kareeb le jati hai....aapki ye kavita aaj ki jarurat hai ...hardik badhai
इस कविता का पर्चा बनवाकर बँटवा दिया जाये ?
सादर नमन
बिना सूचना
कल के पाँच लिंकों का आनन्द में ये रचना प्रकाशिक होगी
सादर
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