इन दिनों MBBS की पढ़ाई हिंदी माध्यम में कराने के लिए पाठ्यक्रम निर्धारित करने पर जोर-शोर से काम चलना बताया जा रहा है। इसके लिए मेडिकल की अंग्रेज़ी की कुछ किताबों का हिंदी रूपांतरण भी किया गया है। हालांकि अभी तक इन हिंदी मीडियम की किताबों से पढ़ाना-पढ़ना शुरू नहीं हुआ है। यह भले ही हम जैसे हिंदी माध्यम और हिंदी पढ़ने, बोलने और उसमें जीने वाले लोगों के लिए बहुत बड़ी खुशी की खबर हो, लेकिन क्या यह सदियों से चली आ रही अंग्रेजी माध्यम से MBBS की पढ़ाई पर खरी उतर पाएगी, यह यक्ष प्रश्न है? इसका हमारे अनुमान से सही और सटीक जवाब वे हिंदी मीडियम के बच्चे दे सकते हैं, जिन्होंने हिंदी मीडियम से होने के बाद भी अंग्रेजी माध्यम से ही MBBS की पढ़ाई की और वे आज डॉक्टर बने हैं।
आज ऐसे ही एक हिंदी मीडियम होने के बाद एबीसीडी से शुरु कर english medium से बहुत ही अच्छे अंकों से MBBS Pass करने वाले डॉक्टर धर्मेन्द्र कुमार मांझी से मिलिए जो इंग्लिश फोबिया के कारण MBBS की पढ़ाई केवल इसलिए करने को तैयार बैठे हैं कि उनके लिए यह संजीवनी बूटी सिद्ध होगी, लेकिन ठहरिए क्या यह उनकी बहुत बड़ी भूल होगी?
यह विषय बड़ा गंभीर है, इसलिए इंग्लिश phobia को मिटा कर हिंदी नहीं, बल्कि इंग्लिश मीडियम से ही मेडिकल की पढ़ाई कराना सर्वथा उचित है, इसी बारे में हिंदी मीडियम का डॉक्टर बना गुदड़ी का लाल Dr. Dharmendra Kumar Manjhi को एक बार जरूर सुने और तभी अपना विचार बनाए?
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