समाज में व्याप्त उन प्राणियों से कैसे और कितने सुधार की उम्मीद की जा सकती है, जिनका स्वभाव ही दुर्जनता से भरा हो, जो अपनी आदत से मजबूर होकर समय-असमय अपनी वास्तविक छबि दिखाने से बाज नहीं आते हैं. ऐसे प्राणियों की अपने समाज में भरमार है आज ....
इनसे कैसी और कितनी उम्मीद रखते है आप .......सांप को चाहे जितना ढूध पिलाओ वह कभी मित्र नहीं बनेगा
आग में गिरे बिच्छू को उठा लेने लें तो वह डंक ही मारेगा
गड्ढे में गिरे हुए कुत्ते को बाहर निकालो तो वह काट लेगा
भेड़िये को चाहे जितना खिलाओ-पिलाओ वह जंगल भागेगा
गधे के कान में घी डालो तो वह यही कहेगा कान मरोड़ते हैं
तोते को जितना भी प्यार से रखो वह मौका देख उड़ जाते हैं
काला कौआ पालो तो वह चोंच मारकर ऑंखें फोड़ देगा
खलनायक नायक बना तो वह मौका देख छुरा भोंक देगा
टूटी थाली में जो कुछ भी डालो सब बर्बाद हो जाता है
अज्ञानी मंदिर में बैठकर मंदिर के ही पत्थर उखाड़ता है
बिल्ली ने शेर को सिखाया- पढ़ाया वह उसे ही खाने चला
लकड़ी ने हत्था दिया कुल्हाड़ी को वह उसे ही काटने चला
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