दुर्जनता का भाव - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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गुरुवार, 12 नवंबर 2009

दुर्जनता का भाव


समाज में व्याप्त उन प्राणियों से कैसे और कितने सुधार की उम्मीद की जा सकती है, जिनका स्वभाव ही दुर्जनता से भरा हो, जो अपनी आदत से मजबूर होकर समय-असमय अपनी वास्तविक छबि दिखाने से बाज नहीं आते हैं. ऐसे प्राणियों की अपने समाज में भरमार है आज ....
इनसे कैसी और कितनी उम्मीद रखते है आप .......



सांप को चाहे जितना ढूध पिलाओ वह कभी मित्र नहीं बनेगा
आग में गिरे बिच्छू को उठा लेने लें तो वह डंक ही मारेगा

गड्ढे में गिरे हुए कुत्ते को बाहर निकालो तो वह काट लेगा
भेड़िये को चाहे जितना खिलाओ-पिलाओ वह जंगल भागेगा

गधे के कान में घी डालो तो वह यही कहेगा कान मरोड़ते हैं
तोते को जितना भी प्यार से रखो वह मौका देख उड़ जाते हैं

काला कौआ पालो तो वह चोंच मारकर ऑंखें फोड़ देगा
खलनायक नायक बना तो वह मौका देख छुरा भोंक देगा

टूटी थाली में जो कुछ भी डालो सब बर्बाद हो जाता है
अज्ञानी मंदिर में बैठकर मंदिर के ही पत्थर उखाड़ता है

बिल्ली ने शेर को सिखाया- पढ़ाया वह उसे ही खाने चला
लकड़ी ने हत्था दिया कुल्हाड़ी को वह उसे ही काटने चला

copyright@Kavita Rawat

15 टिप्‍पणियां:

Apanatva ने कहा…

katu par ye hee hai aaj ka saty ..agar ye shaktishalee hai to apanee ijjat bachane ke liye logo ko aise logo ko ghere paengee .
aawaz uthane ka ,sacchai ka sath dene ka dum ?ab logo me nahee raha .

मनोज कुमार ने कहा…

बेबाकी तथा साफगोई का बयान

निर्मला कपिला ने कहा…

बिलकुल सही कहा । कम से कम आज का सच तो यही है। बहुत बहुत शुभकामनायें

अमिताभ श्रीवास्तव ने कहा…

मै कुछ अलग सोचता हूं। आपका कथन कहावतो-उक्तियो और यथार्थ से परिपूर्ण हैं किंतु एक सत्य से आप भी मुह नही मोड सकती कि जिसकी जो प्रकृति है, जो ईश्वर्य प्रदत्त है, उसके सन्दर्भ में हम अपने हित का सोचकर बदलना क्यों चाहते हैं? यह निर्विवाद अप्राकृतिक हुआ। और फिर हम किस समाज़ से कोई सुधार की अपेक्षा रखते हैं? समाज़ क्या है? मैं समझता हूं मैम कि इस समाज में आज जो हमे अच्छा नही लगता वो असमाजिक हो गया है..., हम अपना सोचना छोड दें तो शायद सही मायने में समाज का उत्थान सम्भव होगा। खैर..बहुत बडी तार्किक बात हो जायेगी. किंतु यह सच है कि आपने बेहतर अन्दाज़ को उठा कर समाज के एक हिस्से को झक्झोरने क प्र्यास किया है।

शोभना चौरे ने कहा…

jiski jo prkrti hai vahi to vo krega .to ham apni prkrti kyo chode ?manvata ki |
bahut steek khavte .

दिगम्बर नासवा ने कहा…

aapne sahi kaha.... kisi ke mool swabhaav ko badalna bhoot hi mushkil kaam hai .... par jo kuch bhi prakriti ne de diya hai use uske swabhaav anusaar hi grehan karna chaahiye ....

haan ....el manushy hi hai jo apna swabhav badalta rahta hai ... pata nahi kyon ...

Asha Joglekar ने कहा…

दुर्जन को आप जानवरों से न तोलें जानवर की तो प्रकृती ही वैसी है । पर जानवर भी जब प्यार से पाले जाते हैं तो कहीं अधिक प्यार आपको देते हैं। ये तो हम इन्सान ही हैं कि जिस थाली में खायें उसी में छेद करें । आपका लेख सोचने को प्रेरित अवश्य करता है ।

Urmi ने कहा…

बिल्कुल सही कहा है आपने ! आज के ज़माने में इंसान हर कदम पर बदलता रहता है और सच्चाई का ज़माना तो चला ही गया!

शरद कोकास ने कहा…

कहावतों की प्रकृति स्थायी नहीं होती । देश-कालानुसार इनमे परिवर्तन होता है ।

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

आपने तो जीवन की बहुत सी सच्चाइयों को सामने ला दिया।शुभकामनायें।
पूनम

लोकेन्द्र विक्रम सिंह ने कहा…

सारी कहावते एक साथ......
और आरोपी सारी दुनिया.......

करण समस्तीपुरी ने कहा…

सत्य वचन !

mark rai ने कहा…

सांप को चाहे जितना ढूध पिलाओ वह कभी मित्र नहीं बनेगा
आग में गिरे बिच्छू को उठा लेने लें तो वह डंक ही मारेगा
गड्ढे में गिरे हुए कुत्ते को बाहर निकालो तो वह काट लेगा ......
bahut hi achcha....

Rajeysha ने कहा…

सारे उदाहरण एक ही जगह देखने को मि‍ल गये, धन्‍यवाद।

Unknown ने कहा…

bahut sahi kaha hai aapne ..yahi hai aaj ki meri samaj....sari kahabat lagu karu to to kam hai ..ak bahut hi khubsurti se stay ko likhi hai aap