कहीं एक सूने कोने में - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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शनिवार, 8 मई 2010

कहीं एक सूने कोने में

भरे-पूरे परिवार के बावजूद
किसी की खुशियाँ
बेवसी, बेचारगी में सिमटी देख
दिल को पहुँचती है गहरी ठेस
सोचती हूं
क्यों अपने ही घर में कोई
बनकर तानाशाह चलाता हुक्म
सबको नचाता है अपने इशारों पर
हांकता है निरीह प्राणियों की तरह
डराता-धमकाता है दुश्मन समझकर
केवल अपनी ख़ुशी चाहता है
क्यों नहीं देख पाता वह
परिवार में अपनी ख़ुशी!

माना कि स्वतंत्र है
अपनी जिंदगी जीने के लिए
खा-पीकर,
देर-सबेर घर लौटने के लिए
लेकिन
क्यों भूल जाता है
कि पत्नी बैठी होगी
दिन भर की थकी हारी दरवाजे पर
बच्चे अपने बस्ते में भरी खट्टी-मीठी
बातें सुनाने, दिखाने के लिए होंगे बैचेन
अपनी मन पसंद चीज़ खाने की प्रतीक्षा में
देर तक जाग रहे होंगे
लाचार माँ-बाप
शंका-आशंकाओं के बीच मोह से बंधी,
बुढ़ाती आखों में
दुनिया की भीड़ में बच्चे के भटक जाने का डर पाले
अपनी मद्धम होती साँसों को बमुश्किल
थाम रहे होंगे

सच तो यह है कि
सिर्फ अपनी ख़ुशी चाहने वाले
कभी सुखी नहीं रह पाए हैं
वे अपने ही परिवार, समाज में एक दिन
दुत्कार दिए जाते हैं
और छोड़ दिए जाते हैं
जिन्दा लावारिस लाश की तरह
सड़-गलकर मरने के लिए
कहीं एक सूने कोने में!

  .....कविता रावत