कहीं एक सूने कोने में - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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शनिवार, 8 मई 2010

कहीं एक सूने कोने में

भरे-पूरे परिवार के बावजूद
किसी की खुशियाँ
बेवसी, बेचारगी में सिमटी देख
दिल को पहुँचती है गहरी ठेस
सोचती हूं
क्यों अपने ही घर में कोई
बनकर तानाशाह चलाता हुक्म
सबको नचाता है अपने इशारों पर
हांकता है निरीह प्राणियों की तरह
डराता-धमकाता है दुश्मन समझकर
केवल अपनी ख़ुशी चाहता है
क्यों नहीं देख पाता वह
परिवार में अपनी ख़ुशी!

माना कि स्वतंत्र है
अपनी जिंदगी जीने के लिए
खा-पीकर,
देर-सबेर घर लौटने के लिए
लेकिन
क्यों भूल जाता है
कि पत्नी बैठी होगी
दिन भर की थकी हारी दरवाजे पर
बच्चे अपने बस्ते में भरी खट्टी-मीठी
बातें सुनाने, दिखाने के लिए होंगे बैचेन
अपनी मन पसंद चीज़ खाने की प्रतीक्षा में
देर तक जाग रहे होंगे
लाचार माँ-बाप
शंका-आशंकाओं के बीच मोह से बंधी,
बुढ़ाती आखों में
दुनिया की भीड़ में बच्चे के भटक जाने का डर पाले
अपनी मद्धम होती साँसों को बमुश्किल
थाम रहे होंगे

सच तो यह है कि
सिर्फ अपनी ख़ुशी चाहने वाले
कभी सुखी नहीं रह पाए हैं
वे अपने ही परिवार, समाज में एक दिन
दुत्कार दिए जाते हैं
और छोड़ दिए जाते हैं
जिन्दा लावारिस लाश की तरह
सड़-गलकर मरने के लिए
कहीं एक सूने कोने में!

  .....कविता रावत

29 टिप्‍पणियां:

श्यामल सुमन ने कहा…

संवेदना-शून्य लोगों को जगाने के लिए लिखी गयी इस कविता में कविता जी का भाव-प्रेषण सुन्दर है। शुभकामनाएं।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com

मनोज कुमार ने कहा…

सिर्फ अपनी ख़ुशी चाहने वाले
कभी सुखी नहीं रह पाए हैं
बिल्कुल सही कहा आपने।
मुस्कान पाने वाला मालामाल हो जाता है पर देने वाला दरिद्र नहीं होता।

Apanatva ने कहा…

Bahut gambheer mudde ko sahajata se utha achhee chetana bhee jagane kee koshish acchee lagee......
Aabhar .

M VERMA ने कहा…

भरे-पूरे परिवार के बावजूद
किसी की खुशियाँ
बेवसी, बेचारगी में सिमटी देख
दिल को पहुँचती है गहरी ठेस
खुशियाँ घर में ही मिलेगी, पर भ्रमवश लोग बाहर ढूढते हैं

अजय कुमार ने कहा…

संवेदनशील रचना ।

दिलीप ने कहा…

waah samvedna aapki kavita se mukhar hui aur sabak mila samvednaheen jaanvaron ko jo insaano ke bhesh me rehte hain...

Kulwant Happy ने कहा…

बहुत उम्दा रचना।

मुश्किल मुश्किल
हाँ मुश्किल
एक टिप्पणी से बचना।

nilesh mathur ने कहा…

कमाल की पंक्तिया और भाव है, संवेदना की हदों हो छुती हुई रचना!

संजय भास्‍कर ने कहा…

हमेशा की तरह आपकी रचना जानदार और शानदार है।

संजय भास्‍कर ने कहा…

... बेहद प्रभावशाली

हर्षिता ने कहा…

संवेदनशील प्रस्तुति है।

सम्वेदना के स्वर ने कहा…

एक सशक्त रचना, एक ज्वलंत प्रश्न, एक जीवंत समस्या... विशेषतः परिवार के बीच पनपती सम्वादहीनता की ओर इंगित करती आपकी कविता एक घिनौने किंतु सत्य से साक्षात्कार कराती है...

hem pandey ने कहा…

परिवार इकाई है समाज की. परिवार सुख शान्ति से रहेगा तो समाज में सुख शान्ति होगी.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

मार्मिक ... दिल को छूती हैं आपकी पंक्तियाँ ...

प्रदीप मानोरिया ने कहा…

माना कि स्वतंत्र है
अपनी जिंदगी जीने के लिए
खा-पीकर,
देर-सबेर घर लौटने के लिए
लेकिन
क्यों भूल जाता है
कि पत्नी बैठी होगी
दिन भर की थकी हारी दरवाजे पर
बच्चे अपने बस्ते में भरी खट्टी-मीठी
बातें सुनाने, दिखाने के लिए होंगे बैचेन
अपनी मन पसंद चीज़ खाने की प्रतीक्षा में
देर तक जाग रहे होंगे
bahut prabhshalee reeti se saMwedanaaoM kaa prastutikaraN

BrijmohanShrivastava ने कहा…

करीब अस्सी प्रतिशत परिवारों की व्यथा भर दी इस रचना में ।पहला छंद पूरे परिवार के लिये .दूसरा पत्नि ,बच्चे और बुजुर्ग मा बाप के लिये।तीसरे पद मे चेतावनी कि अपने लिये जिये तो क्या जिये ।अपनी ही खुशी चाहने वाले कभी सुखी नही रह सकते ,यह एक हकीकत भी है और एक दर्शन भी ,जिसके वाबत बहुत से ग्रन्थों मे हिदायते भी दी गई है कि पडोसी के भूखे होते हुए स्वंम भोजन करलेना पाप है

SM ने कहा…

beautiful educational poem

sm ने कहा…

beautiful educational poem

rashmi ravija ने कहा…

बहुत ही संवेदनशील रचना है...इतनी माम्रिक रचना..मन को झकझोर गयी

रश्मि प्रभा... ने कहा…

सच तो यह है कि
सिर्फ अपनी ख़ुशी चाहने वाले
कभी सुखी नहीं रह पाए हैं
bahut hi gahra sach

रंजू भाटिया ने कहा…

सच तो यह है कि
सिर्फ अपनी ख़ुशी चाहने वाले
कभी सुखी नहीं रह पाए हैं
वे अपने ही परिवार, समाज में एक दिन
दुत्कार दिए जाते हैं ..sach kaha aapne ..behtreen dhng se likha hai aapne in bhaavon ko ..

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

जीवन के नग्न सत्य को उघाडती हुई रचना।
कौन हो सकता है चर्चित ब्लॉगर?
पत्नियों को मिले नार्को टेस्ट का अधिकार?

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

This is what such people deserve.....
Beautifully encapsulated!
Regards,
Ashish :)

mukta mandla ने कहा…

एक बेहतरीन रचना
काबिले तारीफ़ शव्द संयोजन
बेहतरीन अनूठी कल्पना भावाव्यक्ति
सुन्दर भावाव्यक्ति .साधुवाद
satguru-satykikhoj.blogspot.com

बेनामी ने कहा…

bahut hi achhi rachna...
dil mein utar gayi...
yun hi likhte rahein..
regards
http://i555.blogspot.com/
idhar ka bhi rukh karein....

Rohit Singh ने कहा…

बहुत ही अच्छी कविता....पूरा परिवार होने के बाद भी खुशियों के लिए क्यों तरसता है....आखिर एक आदमी की सनक के कारण पूरा परिवार दुखी होता है..सब भूल जाता है इंसान की असली खुशी दूसरो को सुखी करने में है..अपने अलावा अपने परिवार के बारे में भी सोचे इंसान तो कोई दिक्तत न हो, पर क्या करें...?

Akanksha Yadav ने कहा…

सच तो यह है कि
सिर्फ अपनी ख़ुशी चाहने वाले
कभी सुखी नहीं रह पाए हैं
...बहुत खूब..सुन्दर व सार्थक सन्देश. यही तो जिंदगी है.

Pankaj Trivedi ने कहा…

कविताजी,
आपने बहुत ही सटीक वर्णन किया है | अपने परिवार में भी संवेदना की कमी महसूस करतें है कभी.. आपके पास शब्द चित्रण करने की अनूठी कुशलता है | यह शब्द पज़ल की तरह नहीं है बल्कि मोतीयों की माला जैसे है... जिसका एक मूल्य है और सुन्दरता भी...
बहुत ही उम्दा कार्य करो और ख़ास तो आपके पास विषय वैविध्य है | आप चाहें धर्म की बात करें, परिवार की या धुप की... बहुत ही सुन्दर और पूर्णरूप से आत्मसात किएँ अनुभवों की पूंजी है... |
धन्यवाद
- पंकज त्रिवेदी

Pankaj Trivedi ने कहा…
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