अच्छाई सीखने का मतलब बुराई को भूल जाना होता है।
प्रत्येक सद्गुण किन्हीं दो अवगुणों के मध्य पाया जाता है।।
बहुत बेशर्म बुराई को भी देर तक अपना चेहरा छुपाने में शर्म आती है।
जिस बुराई को छिपाकर नहीं रखा जाता वह कम खतरनाक होती है।।
धन-सम्पदा, घर और सद्गुण मनुष्य की शोभा बढ़ाता है।
सद्गुण प्राप्ति का कोई बना-बनाया रास्ता नहीं होता है।।
बड़ी-बड़ी योग्यताएँ बड़े-बड़े सद्गुण मनुष्य की शोभा बढ़ाता है।
बुराई बदसूरत है वह मुखौटे से अपना चेहरा ढककर रखता है।।
नेक इंसान नेकी कर उसका ढोल नहीं पीटता है।
अवगुण की उपस्थिति में सद्गुण निखर उठता है।।
कोई बुराई अपनी सीमा के भीतर नहीं रह पाती है।
अच्छाई और सद्गुण इंसान की असली दौलत होती है।।