अच्छाई सीखने का मतलब बुराई को भूल जाना होता है।
प्रत्येक सद्गुण किन्हीं दो अवगुणों के मध्य पाया जाता है।।
बहुत बेशर्म बुराई को भी देर तक अपना चेहरा छुपाने में शर्म आती है।
जिस बुराई को छिपाकर नहीं रखा जाता वह कम खतरनाक होती है।।
धन-सम्पदा, घर और सद्गुण मनुष्य की शोभा बढ़ाता है।
सद्गुण प्राप्ति का कोई बना-बनाया रास्ता नहीं होता है।।
बड़ी-बड़ी योग्यताएँ बड़े-बड़े सद्गुण मनुष्य की शोभा बढ़ाता है।
बुराई बदसूरत है वह मुखौटे से अपना चेहरा ढककर रखता है।।
नेक इंसान नेकी कर उसका ढोल नहीं पीटता है।
अवगुण की उपस्थिति में सद्गुण निखर उठता है।।
कोई बुराई अपनी सीमा के भीतर नहीं रह पाती है।
अच्छाई और सद्गुण इंसान की असली दौलत होती है।।
7 टिप्पणियां:
गुण, अवगुण और सद्गुण ... अच्छाई और बुराई के फर्क को बाखूबी सरल सहजता से कह दिया है आपने इन पंक्तियों में ... अब इंसान इन्हें समझ भी सके तो पूरा समाज रहने लायक हो जाता है ...
सुन्दर और सरल संदेश।
कोई बुराई अपनी सीमा के भीतर नहीं रह पाती है।
अच्छाई और सद्गुण इंसान की असली दौलत होती है।।
बहुत बढिया, कविता जी!
सुन्दर व सार्थक सन्देश ...
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 14-07-2016 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा
धन्यवाद
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 14-07-2016 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा
धन्यवाद
बहुत सुन्दर
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