कब साकार होगा नशा मुक्त देवभूमि का सपना - Kavita Rawat Blog, Kahani, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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शुक्रवार, 28 अप्रैल 2017

कब साकार होगा नशा मुक्त देवभूमि का सपना

जब कोई हमारी प्रकृति की सुरम्य पहाड़ियों की गोद में बसे देवता, ऋषि-मुनियों एवं तपस्वियों की निवास स्थली देवभूमि उत्तराखंड की चर्चाएं मद्यपान के फलते-फूलते कारोबारी के रूप में करता है, तब ऐसी बातें सुनकर मन खट्टा होने लगता है। विश्वास नहीं होता कि सच में क्या यह हमारी वही देवभूमि है जिसके नाममात्र से हम उत्तराखंडी लोग अपने आप को गौरवान्वित महसूस करते हैं? अफसोस! आज जिस तरह से नशे का व्यापार हमारी देवभूमि में अपनी पैठ बनाकर उसकी जड़ों को खोखला करने में लगी है, उससे यह स्पष्ट होता है एक के बाद एक चोला बदलती हमारी सरकारें नींद के झौंके में विकास के नाम पर आम जनता को सुनहरे सपने दिखाकर केवल अपना उल्लू सीधा करने की फिराक भर में हैं।
आज शराब की सुगमता के कारण हमारे शांति प्रिय पहाड़ी गांव विकास के नाम पर ’सूरज अस्त, उत्तराखंड मस्त’ की पहचान बनाने में रमे हुए हैं, जिसमें बड़े-बुजुर्ग, युवा पीढ़ी से लेकर नौनिहाल तक नशे में धुत होकर हमारी पहाड़ी संस्कृति की जड़ों में मट्ठा डालकर खोखला करने में तुले हुए हैं। वे नशे में मग्न होकर भूल रहे हैं कि धीरे-धीरे वे मानसिक विकृति के शिकार हो रहे हैं, जिससे उनके घर-परिवार में जब-तब गाली-गलौज़, लड़ाई-झगड़े का माहौल निर्मित होने से अशांति के बादल मंडरा रहे हैं।  यद्यपि पहाड़ी क्षेत्रों में बहुत पहले से ही बीड़ी-तम्बाकू पीना आम बात है, लेकिन जब से यहाँं शराब रूपी दानव ने अपने पांव पसारे हैं, अधिकांश लोगों को इसकी लत लग चुकी है, जो तेजी से उनके तन-मन को खोखला करती जा रही है। शराब के सेवन से न केवल उनकी आंते सूख रहीं है, अपितु किडनी और लिवर सम्बन्धी बीमारियां बिन मांगे शरीर को दुर्बल और असहाय बना रही हैं, जिसके परिणामस्वरूप समाज और घर-परिवार बडे़ पैमाने पर बिखराव की कगार पर खड़े नजर आ रहेे हैं।
नशा नाश का दूसरा पहलू है। नशा करने या मद्यपान करने के अनेक दुर्गुण हैं। नशे में धुत होकर नशेड़ी अपना होश और विवेक खोकर अपने बच्चों और पत्नी की दुर्दशा करता है। अपना घर-परिवार भूलकर ऊल-जलूल बकते हुए लड़खड़ाते कदमों से गली-कूचों में बेदम पड़ा रहता है। जब कोई वाहन चालक शराब पीकर गाड़ी चलाता है तो वह न केवल अपनी, अपितु दूसरों की जान के लिए भी खतरनाक सिद्ध होता है। ऐसी हालात में कई  घर-परिवार असमय उजड़ते हैं, बर्बाद होते हैं। शराब मानव जाति के लिए किसी भी दृष्टिकोण से लाभदायक नहीं है, इस बात को समय-समय पर ज्ञानी, बुद्धिजीवी, लेखक, चिन्तक एवं विभिन्न समाज सेवी मनीषियों ने भी समझाया है। मिल्टन कहते हैं- ‘संसार की सारी सेनाएं मिलकर इतने मानवों और इतनी सम्पत्ति को नष्ट नहीं करतीं, जितनी शराब पीने की आदत।’ वाल्मीकि ने मद्यपान की बुराई करते हुए कहा है- ’पानादर्थश्च धर्मश्च कामश्च परिहीयते।’ अर्थात् मद्य पीने से अर्थ, धर्म और काम, तीनों नष्ट हो जाते हैं।’ दीर्घनिकाय का वचन है- ’मदिरा तत्काल धन की हानि करती है, कलह को बढ़ाती है, रोगों का घर है, अपयश की जननी है, लज्जा का नाश करती है और बुद्धि को दुर्बल बनाती है।’ मुंशी प्रेमचंद कहते हैं- ’जहां सौ में से अस्सी आदमी भूूखों मरते हों, वहांँ दारू पीना गरीबों का रक्त पीने के बराबर है।’ भगवतीप्रसाद वाजपेयी जी कहते हैं- ’शराब भी क्षय (टीबी) जैसा एक रोग है, जिसका दामन पकड़ती है, उसे समाप्त करके ही छोड़ती है।’ अकबर इलाहाबादी ने चुटकी ली है कि- "उसकी बेटी ने उठा रक्खी है दुनिया सर पर। खैरियत गुजरी कि अंगूर के बेटा न हुआ।।"
शराबबंदी को लेकर देवभूमि की जनता में इन तीनों तीव्र आक्रोश है, जिसमें महिलाओं की भूमिका मुख्य है; क्योंकि शराब पीने वाले तो पुरुष ही होते हैं, जिनका मुख्य काम खाना-पीना और, मारपीट के साथ लड़ाई-झगड़ा कर घर-परिवार और समाज के माहौल को बिगाड़ना भर रह गया है। घर-परिवार को संभालने का काम केवल महिलाओं के जिम्मे ही होता है, जिसे निभाना उन्हें भली-भांति आता है। यही कारण है कि आज महिलाएं शराबबंदी के लिए बढ़-चढ़कर जगह-जगह एक होकर आंदोलनरत हैं। शराब विरोधी  आंदोलन पहले भी हुए हैं लेकिन इस बार विरोध सम्पूर्ण देवभूमि से शराब रूपी  दानव के सदा के खात्मे के लिए है। जब से सुप्रीम कोर्ट के के एक फैसले के तहत् राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे वाली शराब की दुकानों को बंद कर दूसरी जगह स्थानांतरित किए जाने का निर्णय हुआ है, तब से पीड़ित और जागरूक महिलाओं में तीव्र आक्रोश भरा हुआ है। इसी बात को लेकर वे जहां एक तरफ कई जगह शराब की दुकानें खोले जाने के विरोधस्वरूप उग्र प्रदर्शन कर तोड़-फोड़ कर रही हैं, वहीं दूसरी ओर शांतिपूर्ण ढ़ंग से समाझाईश देकर शराबबंदी के लिए आन्दोलनरत हैं। आंदोलनकारी अपनी भूख-प्यास, नींद, चैन सबकुछ भूलकर शराबबंदी के लिए एकजुट हो विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैंैं, लेकिन बिडम्बना देखिए अभी तक सरकार के कानों में जूं तक नहीं रेंग पायी है। आखिर क्यों सरकार फैसला लेने में असमर्थ है? यह समझना अब आम जनता के लिए भी कोई टेढ़ी खीर नहीं रही है। इसका सीधा सा गणित उनकी भी समझ में आ रहा है शराब के कारोबार से सरकार जो सालाना लगभग 1900 करोड़ की आमदनी होती है, उसके आगे वे उनका दुःख-दर्द, सुख-चैन समझने में अपने आप को असमर्थ पा रहा है। उन्हें आम जनता की नहीं, अपितु इस बात की चिन्ता है कि अगर कहीं शराबबंदी हुई और उनकी आमदनी चली गई तो फिर वे कैसे राज्य के विकास की योजनाओं का खाका खींचने वाले सरकारी महकमों में तैनात अधिकारी/कर्मचारियों के वेतन-भत्ते निकालेंगे, मोटर मार्ग बनायेंगे, स्कूल खुलवायेंगे और बिजली-पानी का बन्दोबस्त करेंगे? इतनी बड़ी राशि का विकल्प न ढूंढ पाने में राज्य सरकार शराबबंदी हेतु असमर्थ और असहाय बनी हुई है। लेकिन आम जनता अब यह भी बखूबी समझने लगी है कि शराबबंदी के लिए सिर्फ यही कारण पर्याप्त नहीं हैं, बल्कि शराब कारोबारियों की राजनीति के गलियारों तक गहरी पहुंच होने एवं उनकी काॅकटेल पार्टियों के खर्च आदि वहन करने और उन्हें मालामाल करना भी है। 
          कुछ भी हो लेकिन अब सम्पूर्ण उत्तराखंड में हो रहे शराबबंदी के आंदोलनकारियों के इरादों से स्पष्ट है कि अब वे किसी भी प्रकार से सरकार के झांसे में नहीं आने वाले हैं। इसके लिए उन्होंने कमर कस ली है कि अब वे तभी मैदान से हटेंगे, जब उत्तराखंड सरकार पूर्ण शराबबंदी की घोषणा करने के लिए मजबूर न हो जाय। वे दृढ़ संकल्पित हैं कि इस बार वे ‘कोउ नृप होउ हमहि का हानी। चेरी छोड़ि अब होब कि रानी।“ की तर्ज पर सरकारों के चोलाबदली और जड़ राजनेताओं के झूठे आश्वासनों के दम पर नहीं, अपितु दुर्गा-काली बनकर देवभूमि से दानव रूपी शराब का खात्मा कर नशा मुक्त देवभूमि का सपना करेंगे।
नशा हटाओ देवभूमि बचाओ ...  कविता रावत 


14 टिप्‍पणियां:

  1. शराब तो दिखाई देती है। और भी नशे जो परोसे जा रहे हैं युवाओं को उसका क्या होगा? केवल पुरुष ही नहीं अब कुछ महिलाओ ने भी शुरु कर दिया है देव रस का रसपान करना।

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "उतना ही लो थाली में जो व्यर्थ न जाये नाली में “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. सही कहा कविता जी आपने शराब का नशा देवभूमि उत्तराखंड में दानव की तरह पसर रहा है ....
    पहले ही जहाँ पुरूष प्रधानता रही है औरतें ही ज्यादातर कामों को सम्हालती है अब नशे में पुरुष कैसे
    अपनी ........
    ऐसे में औरतों का यह आन्दोलन उठाना नीतिपरक है....
    बहुत ही अच्छा विचारणीय आलेख....

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  4. आदरणीय ,कविता जी ,चोला तो ये हमेशा बदलते हैं और बदलते रहेंगे ,एक जायेगा ,दूसरा आएगा ,ये भूल चुके हैं कि ये बादशाह नहीं जनता के नौकर हैं। इसकी वज़ह हमसब स्वयं एवं कुछ हमारे गरिमामयी संविधान की ख़ामियाँ ,जहाँ एक ओर हमें मत देने का अधिकार है वहीं इन जनप्रतिनिधियों को अच्छा काम न करने पर वापस फिर से बुलाने का अधिकार ( राइट टू रिकॉल ) हमें संविधान नहीं देता क्यों ? ये हमारे लोकतंत्र के साथ अन्याय है हम पर भ्रष्ट सरकारें पांच वर्ष के लिए नहीं थोपी जानी चाहिए। जब तक हमें "राइट टू रिकॉल" जैसा एक सशक्त माध्यम नहीं मिल जाता हम लोकतंत्र में पंगु हैं ,ये चोला बदलने वाले बहरूपिये हमेशा हमें छलेंगे। उम्दा लेख ! आभार

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  5. बहुत सुन्दर एवं विचारणीय लेख।

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  6. शादी ब्याह मे लोग शान और शौकत दिखाने के लिये शराब परोसते है यही से शुरूवात होनी चाहिये बन्दी करण की। सामाजिक समरसता का विच्छेदन करने पर तुली है शराब और शराबी।

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  7. उत्तराखंड के चार धामों की यात्रा की थी केदारनाथ त्रासदी से एक साल पहले ! मन करता था कि वहीं रह जाऊँ । उस देवभूमि को हर तरह के प्रदूषण से बचाने की जरूरत है, पर्यावरण प्रदूषण से भी और शराब या अन्य नशों के रूप में हो रहे सामाजिक व मानसिक प्रदूषण से भी । जागरूकता को प्रवृत्त करता आपका आलेख कविताजी !

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  8. सम्पूर्ण नशामुक्ति होना बहुत जरूरी है। तब ही एज स्वस्थ समाज की स्थापना होगी। सुंदर आलेख।

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  9. यह समस्या शहर से ज़्यादा गांवों को बरबाद कर रही है । पूरे देश में इसे प्रतिबंधित किया जाना चाहिए ।

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  10. पहाड़ की नहीं


    सच्ग पूछो तो पूरे समाज का माहोल ख़राब कर दिया है इस नशे ने और ये कारोबार इतना बड़ा हो चूका है की इससे निजात पाना टेड़ी खीर नजर अत है ... तंत्र से जुड़ा हर व्यक्ति इसका शिकार नज़र आता है आज ...

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  11. bhut hi accchi rachna h aap ki keep posting .....and keep visting on www.kahanikikitab.com

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  12. नशा मुक्त देवभूमि का सपना अभी सपना ही रहने वाला है। क्योंकि सरकारें राजस्व की खातिर इसके खिलाफ इतनी आसानी से कदम नहीं उठाएंगीं। भले ही सरकार रामराज्य की बात करने वाली ही क्यों न हो?

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  13. आपकी चिंता जायज है ... नशा न सिर्फ विनाश करती है बल्कि सोचने समझने की शक्ति भी ख़त्म करती है ... पर इतना आसान होगा इससे मुक्ति पाना लगता तो नहीं ... ये एक बहुत बड़ा रेवेन्यु का सोर्स रहता है हर सरकारके लिए ...

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