बरखा बहार आई। New Hindi song - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
ब्लॉग के माध्यम से मेरा प्रयास है कि मैं अपनी कविता, कहानी, गीत, गजल, लेख, यात्रा संस्मरण और संस्मरण द्वारा अपने विचारों व भावनाओं को अपने पारिवारिक और सामाजिक दायित्व निर्वहन के साथ-साथ सरलतम अभिव्यक्ति के माध्यम से लिपिबद्ध करते हुए अधिकाधिक जनमानस के निकट पहुँच सकूँ। इसके लिए आपके सुझाव, आलोचना, समालोचना आदि का हार्दिक स्वागत है।

शुक्रवार, 4 जुलाई 2025

बरखा बहार आई। New Hindi song


सूरज की तपन गई बरखा बहार आयी
झुलसी-मुरझाई धरा पर हरियाली छायी
बादल बरसे नदी-पोखर जलमग्न हो गए
खिले फूल, कमल मुकुलित बदन खड़े हुए
नदियां इतराती-इठलाती अठखेलियां करने लगी
तोड़ तट बंधन बिछुड़े पिय मिलन सागर को चली
गर्मी गई चहुंदिशा शीतल मधुर, सुगंधित छाया
जनजीवन उल्लसित, सैर-सपाटा मौसम आया
वन-उपवन, बाग-बगीचों में देखो यौवन चमका
धुली धूल धूसरित डालियां मुखड़ा उनका दमका
पड़ी सावनी मंद फुहार मयूर चंदोवे दिखा नाचने चले
देख ताल-पोखर मेंढ़क टर्र-टर्र-टर्र गला फाड़ने लगे
हरी-भरी डालियां नील गगन छुअन को मचल उठी
पवन वेग गुंजित-कंपित वृक्षावली सिर उठाने लगी
घर-बाहर की किचकिच-पिटपिट किसके मन भायी?
पर बरसाती किचकिच भली लगे बरखा बहार आयी!
...कविता रावत