शक्कर सफेद हो या भूरी उसमें उतनी ही मिठास रहेगी।।
कभी चित्रित फूलों से सुगंध नहीं आती है।
हर चमकदार वस्तु स्वर्ण नहीं होती है।।
धूप में धूल के कण भी चमकदार मालूम पड़ते हैं।
हाथी के खाने और दिखाने के अलग दाँत होते हैं।।
सुन्दर सेब के भीतर कीड़ा लगा तो वह किसी काम नहीं आता है।
बन्दर को शाही पोशाक पहना देने पर वह बंदर ही कहलाता है।।
किसी पेड़ को उसकी छाल से नहीं जाँचना चाहिए।
सिर्फ चेहरा देख उस पर विश्वास नहीं करना चाहिए।।
जंग में जाने वाले सब लोग सैनिक नहीं होते हैं।
दाढ़ी बढ़ा लेने पर सभी साधु नहीं बन जाते हैं।।
... कविता रावत
31 टिप्पणियां:
किसी पेड़ को उसकी छाल से नहीं जाँचना चाहिए।
सिर्फ चेहरा देख उस पर विश्वास नहीं करना चाहिए।।
...............कम से कम आज तो आँख मूंधकर कर विशवास कर लेने का ज़माना बिलकुल भी नहीं है .....
....उम्दा रचना
सुन्दर रचना कविता जी !
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है !
भावपूर्ण ,सशक्त, सुन्दर और नसीहत देती रचना
सभी पंक्तियाँ सुन्दर और शिक्षाप्रद !
सार्थक और सुन्दर प्रस्तुति....
बेहतरीन व उम्दा लेखन , पढ़कर बहुत हि अच्छा लगा , आपको धन्यवाद !
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सुन्दर आनुभूतिक सत्य ,निचोड़ .........-आभार !
कल 17/अक्तूबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !
सुन्दर सेब के भीतर कीड़ा लगा तो वह किसी काम नहीं आता है।
बन्दर को शाही पोशाक पहना देने पर वह बंदर ही कहलाता है।।
लोकोक्तियों के माध्यम से बहुत अच्छा सन्देश दिया है आपने...
गुलाब को कुछ भी नाम दो उससे उतनी ही सुगंध आयेगी।
शक्कर सफेद हो या भूरी उसमें उतनी ही मिठास रहेगी।।
,,,,,बहुत बहुत बढ़िया ................
बहुत सुन्दर लोकोक्ति में कविता !
इश्क उसने किया .....
बहुत बढ़िया....बेहद सटीक रचना..
अनु
गुलाब को कुछ भी नाम दो उससे उतनी ही सुगंध आयेगी।
शक्कर सफेद हो या भूरी उसमें उतनी ही मिठास रहेगी।।
बहुत सुन्दर सटीक रचना..
जॉच परख कर ही निर्णय करना चाहिए।
जबरदस्त
लाजवाब!
लाजवाब!
लोकोक्ति में सटीक कविता !
जंग में जाने वाले सब लोग सैनिक नहीं होते हैं।
दाढ़ी बढ़ा लेने पर सभी साधु नहीं बन जाते हैं।।
.........लेकिन आज ऐसों का ही जमाना है ....
सटीक कविता ......
किसी पेड़ को उसकी छाल से नहीं जाँचना चाहिए।
सिर्फ चेहरा देख उस पर विश्वास नहीं करना चाहिए।।
Behtreen.... Vicharniy Panktiyan Hain
जी सही बात
हमारी दाढ़ी भी बढ़ी
फिर भी
किसी काम की नहीं ।
बहुत सुन्दर चित्रण
Bilkul saarthak aur steek ... Koi shak nhi isme ... Umdaa prastuti !!
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सही कहा!
धूप में धूल के कण भी चमकदार मालूम पड़ते हैं।
हाथी के खाने और दिखाने के अलग दाँत होते हैं।।
गंभीर और सटीक बात। बेहद सुंदर
बहुत खूब!
लोकोक्तियों में समाये जीवन-दर्शन का सुन्दर उपयोग !
अच्छी ज्ञान-वर्द्धक प्रस्तुति !
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार,15 अक्तूबर 2015 को में शामिल किया गया है।
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