जय जय जय कालरात्रि मैया,
सप्तम रूप में तुम हो दया।
तम का तुम करती विनाश,
हर लेती हो सारे ही त्रास।
हाथ में खड्ग, हार है कांटों का,
शुभ फल देती, हरती पापों को।
गर्दभ पर बैठी, मन को भाती,
आरती जय कालरात्रि माता।
सप्तम रूप में तुम हो दया।
तम का तुम करती विनाश,
हर लेती हो सारे ही त्रास।
हाथ में खड्ग, हार है कांटों का,
शुभ फल देती, हरती पापों को।
गर्दभ पर बैठी, मन को भाती,
आरती जय कालरात्रि माता।
... कविता रावत


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