नवदुर्गा देवी आरती। नवरात्रि - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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रविवार, 21 सितंबर 2025

नवदुर्गा देवी आरती। नवरात्रि


जय जय जय शैलपुत्री माता,
प्रथम रूप में तुम हो विधाता।
हाथ में त्रिशूल, कमल विराजे,
नंदी पर तुम हो, हर दु:ख भाजे।
पर्वत पुत्री, भक्तों की रक्षा करो,
सुख-शांति का वरदान भरो।
आरती जय शैलपुत्री माता,
आरती जय जय शैलपुत्री माता।

जय जय जय ब्रह्मचारिणी मैया,
द्वितीय रूप में तुम हो दया।
तप का तेज, मन में विराजे,
शांत स्वरूप, मन को साजे।
हाथ में कमंडल, माला सोहे,
श्वेत वसन मन को मोहे।
ज्ञान की देवी, मोक्ष दात्री,
आरती जय ब्रह्मचारिणी माता।

जय जय जय चंद्रघंटा माता,
तृतीय रूप में तुम हो विधाता।
मस्तक पर घंटा, चंद्र का साया,
दुष्टों का संहार, तेरा ही माया।
हाथ में खड्ग, धनुष विराजे,
सिंह वाहिनी, भक्तों को साजे।
युद्ध की देवी, शत्रु संहारी,
आरती जय चंद्रघंटा माता।

जय जय जय कूष्मांडा मैया,
चतुर्थ रूप में तुम हो दया।
सृष्टि की देवी, ब्रह्मांड रचती,
अष्ट भुजा में तुम सब रखती।
हाथ में अमृत, कमंडल सोहे,
सिंह पर बैठी, मन को मोहे।
रोग, शोक का तुम हरण करो,
आरती जय कूष्मांडा माता।

जय जय जय स्कंदमाता मैया,
पंचम रूप में तुम हो दया।
कार्तिकेय की जननी कहलाती,
कमल पुष्प हाथ में सजाती।
सिंह वाहिनी, भक्तों को प्यारी,
प्रेम की देवी, दुख संहारी।
सच्चे मन से जो भी पुकारे,
आरती से मिटे कष्ट सारे।
आरती जय स्कंदमाता माता।

जय जय जय कात्यायनी माता,
षष्ठम रूप में तुम हो विधाता।
महर्षि की तुम पुत्री कहलाई,
दुष्टों का तुमने संहार कराई।
खड्ग हाथ में, कमल सोहे,
सिंह पर बैठी, मन को मोहे।
विवाह की देवी, प्रेम दात्री,
आरती जय कात्यायनी माता।

जय जय जय कालरात्रि मैया,
सप्तम रूप में तुम हो दया।
तम का तुम करती विनाश,
हर लेती हो सारे ही त्रास।
हाथ में खड्ग, हार है कांटों का,
शुभ फल देती, हरती पापों को।
गर्दभ पर बैठी, मन को भाती,
आरती जय कालरात्रि माता।

जय जय जय महागौरी माता,
अष्टम रूप में तुम हो विधाता।
गौर वर्ण, तुम जग को चमकाती,
मन में तुम ही शांति लाती।
हाथ में त्रिशूल, डमरू सोहे,
वृषभ पर बैठी, मन को मोहे।
मन की शुद्धि, तुम ही तो वर दो,
आरती से भक्तों का कष्ट हर लो।
आरती जय महागौरी माता।

जय जय जय सिद्धिदात्री माता,
नवम रूप में तुम हो विधाता।
आठों सिद्धि, नौ निधि की दात्री,
सुख-समृद्धि की तुम ही हो वर दात्री।
हाथ में चक्र, गदा भी सोहे,
कमल पर बैठी, मन को मोहे।
भक्तों को तुम सिद्धि प्रदान करो,
आरती जय सिद्धिदात्री माता।

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