बेवकूफ डंडा तो समझदार इशारे की भाषा समझता है - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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बुधवार, 15 जनवरी 2025

बेवकूफ डंडा तो समझदार इशारे की भाषा समझता है

बह चुके पानी से कभी चक्की नहीं चलाई जा सकती है
लोहे से कई ज्यादा सोने की जंजीरें मजबूत होती है

चांदी के एक तीर से पत्थर में भी छेद हो सकता है
एक मुट्ठी धन दो मुट्ठी सच्चाई पर भारी पड़ता है

निर्धन मनुष्य की जान-पहचान बहुत मामूली होती है
गरीब की जवानी और पौष की चांदनी बेकार जाती है

घर में दाने हों तो उसके पगले भी सयाने बनते हैं
गरीब अपने घर में भी परदेशी की तरह रहते हैं

अवसर बादल की तरह देखते-देखते गायब हो जाता है 
बेवकूफ डंडा तो समझदार इशारे की भाषा समझता है 

जरूरत से ज्यादा समझदार, समझदार नहीं कहलाते हैं 
भले लोग भेड़ जैसे जो किसी को हानि नहीं पहुँचाते हैं

...कविता रावत